दरभंगा के प्रो. प्रेम मोहन मिश्रा के पुत्र और ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय की शैक्षणिक परंपरा के गौरवशाली वारिस अमर सौरभ ने महज़ दो घंटे में बना डाला अपना कृत्रिम बुद्धिमत्ता सहायक, और पहुँचे कैलिफोर्निया की पेपाल कंपनी तक; मिथिला की माटी से उठी प्रतिभा ने दुनिया को दिखाया मानव बुद्धि का चमत्कार!
जब मशीनें सोचने लगीं, तब एक मनुष्य ने यह साबित कर दिया कि सोच की असली शक्ति अब भी मानव के भीतर है। यह कहानी है उस युवा की, जिसने हार को भी प्रेरणा बना डाला, असफलता को भी शिक्षक और तकनीक को भी साथी। यह कहानी है दरभंगा के लाल, अमर सौरभ की जो मिथिला की मिट्टी से निकले और कैलिफोर्निया के आसमान पर अपनी प्रतिभा की चमक बिखेर दी. पढ़े पूरी रिपोर्ट......
विशेष रिपोर्ट। मिथिला जन जन की आवाज: जब मशीनें सोचने लगीं, तब एक मनुष्य ने यह साबित कर दिया कि सोच की असली शक्ति अब भी मानव के भीतर है। यह कहानी है उस युवा की, जिसने हार को भी प्रेरणा बना डाला, असफलता को भी शिक्षक और तकनीक को भी साथी। यह कहानी है दरभंगा के लाल, अमर सौरभ की जो मिथिला की मिट्टी से निकले और कैलिफोर्निया के आसमान पर अपनी प्रतिभा की चमक बिखेर दी।

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शिक्षा की जड़ों से नवाचार की ऊँचाइयों तक: अमर सौरभ का बचपन दरभंगा की उन्हीं गलियों में बीता, जहाँ बुद्धि और संस्कृति दोनों साथ चलते हैं। वे ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय के पूर्व डीन प्रो. प्रेम मोहन मिश्रा के पुत्र हैं यानी शिक्षा और चिंतन उनकी रगों में बहता है। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दरभंगा में पूरी की, और फिर इंजीनियरिंग की दुनिया में कदम रखा। उनकी प्रतिभा ने जल्द ही अंतरराष्ट्रीय कंपनियों का ध्यान खींचा। पहले Meta (Facebook) में और फिर TikTok में उन्होंने तकनीकी और प्रोडक्ट डेवलपमेंट के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई।

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जब ChatGPT से उम्मीद टूटी, तब खुद बना डाला नया भविष्य: हर सफल कहानी के पीछे कुछ संघर्ष छिपे होते हैं। अमर जब अपने करियर की नई दिशा खोज रहे थे, उन्होंने नौकरी की तलाश में ChatGPT का सहारा लिया। लेकिन जल्द ही उन्होंने पाया यह कृत्रिम बुद्धिमत्ता मशीन तो है, पर इंसान की संवेदना से कोसों दूर। कभी यह गलत कंपनी का नाम डाल देता, कभी अनुभवों को गलत संदर्भ में प्रस्तुत करता। कभी उनके वर्षों की मेहनत को एक साधारण वाक्य में समेट देता। लेकिन अमर ठहरने वाले नहीं थे। उन्होंने न मशीन से हार मानी, न परिस्थिति से। बल्कि केवल दो घंटे में उन्होंने ऐसा चमत्कार कर दिखाया, जो दुनिया के बड़े-बड़े डेवलपर भी महीनों में नहीं कर पाते उन्होंने बना डाला अपना खुद का कृत्रिम बुद्धिमत्ता सहायक (Custom GPT) जो सिर्फ़ उनका नहीं, बल्कि उनकी सोच, उनके अनुभव और उनकी आत्मा का विस्तार था।

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जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता ‘व्यक्तिगत’ हो गई: अमर सौरभ का यह कस्टम एआई महज़ एक सॉफ्टवेयर नहीं था यह एक ‘डिजिटल आत्मकथा’ थी। इसमें उन्होंने अपने पूरे करियर का हर अनुभव, हर प्रोजेक्ट, हर सफलता और हर लक्ष्य को फीड किया। उन्होंने इसे इस तरह प्रशिक्षित किया कि यह हर कंपनी, हर नौकरी और हर पद की प्रकृति को समझ सके और उसी अनुरूप उनके अनुभव को सबसे सटीक और आकर्षक रूप में प्रस्तुत करे। अब हर जॉब एप्लिकेशन उनके व्यक्तित्व की झलक लिए होता था। हर कवर लेटर उनके आत्मविश्वास की भाषा बोलता था। और हर रिज्यूमे ऐसा लगता था जैसे किसी ने उनके भीतर झाँककर लिखा हो।

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जब दुनिया ने पहचाना मिथिला का जीनियस: अमर के इस प्रयोग ने न सिर्फ़ उनके काम की गुणवत्ता बढ़ाई, बल्कि नौकरी की खोज में एक नई गति दे दी। दो महीने के भीतर ही उन्हें सात प्रतिष्ठित टेक कंपनियों से इंटरव्यू कॉल आए। हर इंटरव्यू में वे सिर्फ़ जवाब नहीं देते थे, बल्कि सोच की नई परिभाषा पेश करते थे। उनकी गहराई, प्रस्तुति और तकनीकी समझ से इंटरव्यू लेने वाले भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। आख़िरकार, उनके इस नवाचार और दृढ़ता को सलाम करते हुए, दुनिया की अग्रणी ऑनलाइन पेमेंट कंपनी PayPal ने उन्हें अपने साथ जोड़ लिया। आज अमर सौरभ कैलिफोर्निया के सन मेटियो में कार्यरत हैं जहाँ वे नए विचारों और तकनीकी नवाचारों पर काम कर रहे हैं।

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मिथिला की मिट्टी जहाँ विचार भी फसल बनते हैं: मिथिला की धरती सदियों से ज्ञान की भूमि रही है। यहाँ खेतों में अन्न के साथ विचार भी उपजते हैं। और अमर सौरभ उसी फसल का आधुनिक रूप हैं जिन्होंने यह दिखाया कि तकनीक सिर्फ़ मशीनों का खेल नहीं, बल्कि संवेदना और समझ का संगम है। उनकी सफलता इस बात की गवाही है कि जहाँ लोग एआई का इस्तेमाल कर रहे हैं, वहीं उन्होंने एआई को सिखाया कि इंसान होना क्या होता है। उन्होंने साबित कर दिया कृत्रिम बुद्धिमत्ता वही तक है, जहाँ तक इंसान उसे दिशा देता है। असली क्रांति तो तब होती है, जब इंसान खुद अपनी दिशा तय करे।

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अमर सौरभ की यात्रा हमें सिखाती है कि परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हों, अगर सोच सच्ची और इरादे पक्के हों, तो दो घंटे में भी दुनिया बदली जा सकती है। उन्होंने यह भी सिखाया कि तकनीक का असली उद्देश्य नौकरी पाना नहीं, बल्कि नौकरी के तरीक़े बदल देना है। दरभंगा के इस लाल ने यह दिखा दिया कि मिथिला की मिट्टी आज भी चमत्कार पैदा कर सकती है।जहाँ से राजा जनक ने ज्ञान की परंपरा शुरू की थी, वहीं से अब डिजिटल युग के नये जनक अमर सौरभ ने सोच की नई क्रांति छेड़ दी है।
