जब मधुबनी के भाजपा सांसद अशोक कुमार यादव के बेटे विभूति यादव ही दरभंगा के बंगाली टोला से रहस्यमयी ढंग से लापता हो जाएं, तो क्या अब भी कोई कह सकता है कि बिहार सुरक्षित है? यह सिर्फ एक गुमशुदगी नहीं, बल्कि लोकतंत्र की नींव हिला देने वाली ख़ामोशी है... ‘मिथिला जन जन की आवाज़’ की विशेष खोजपरक पड़ताल से उठते वे सवाल जो सत्ता की चुप्पी को चीर रहे हैं!
दरभंगा का बंगाली टोला उस शाम कुछ ज़्यादा ही चुप था। आम दिनों में जहां बच्चों की हँसी, बाइक की गड़गड़ाहट और ठेले वालों की आवाज़ें गूंजती थीं, वहीं रविवार की वह दोपहर एक अजीब-सा सन्नाटा ओढ़े हुए थी। इस सन्नाटे की वजह थी मधुबनी से बीजेपी सांसद अशोक कुमार यादव के पुत्र विभूति कुमार यादव का अचानक रहस्यमयी ढंग से गायब हो जाना. पढ़े पुरी खबर........

दरभंगा का बंगाली टोला उस शाम कुछ ज़्यादा ही चुप था। आम दिनों में जहां बच्चों की हँसी, बाइक की गड़गड़ाहट और ठेले वालों की आवाज़ें गूंजती थीं, वहीं रविवार की वह दोपहर एक अजीब-सा सन्नाटा ओढ़े हुए थी। इस सन्नाटे की वजह थी मधुबनी से बीजेपी सांसद अशोक कुमार यादव के पुत्र विभूति कुमार यादव का अचानक रहस्यमयी ढंग से गायब हो जाना। एक शिक्षित, सजग, और सामान्य-सी ज़िंदगी जीने वाला युवक यूं अचानक बाजार के बहाने घर से निकले और फिर लौटकर न आए यह घटना केवल एक गुमशुदगी नहीं है, यह एक गहरी, राजनीतिक और सामाजिक व्याख्या की मांग कर रही है।
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अतीत की परछाई और वर्तमान की बेचैनी: विभूति कुमार यादव, जो दिल्ली में लॉ की पढ़ाई कर रहे थे, हाल ही में अपने घर दरभंगा लौटे थे। उनका व्यक्तित्व शांत, सौम्य और समझदार युवक के रूप में जाना जाता था। घर लौटने के कुछ ही दिन बाद एक सामान्य-सी दोपहर वह बंगाली टोला स्थित अपने आवास से बाजार जाने की बात कहकर निकले और फिर... जैसे समय की रेखा से गायब हो गए। ना कोई कॉल, ना कोई सन्देश, ना कोई गवाह। यह कोई आम नागरिक नहीं, बल्कि एक सांसद का बेटा है उस पार्टी का सांसद, जो केंद्र और राज्य दोनों में सत्ता में है। अगर सत्ता के सर्वोच्च गलियारों से जुड़े परिवार भी सुरक्षित नहीं हैं, तो आमजन की सुरक्षा की कल्पना करना कितना तार्किक है?
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गुमशुदगी का दस्तावेज़, थाने की हलचल और सीसीटीवी की खामोशी: परिजनों के मुताबिक जब देर रात तक विभूति नहीं लौटे, तो चिंता ने गहराने की भूमिका लिखनी शुरू कर दी। मोबाइल स्विच ऑफ, दोस्तों को कोई जानकारी नहीं, आसपास के सीसीटीवी में कोई स्पष्ट छवि नहीं। आखिरकार, लहेरियासराय थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई गई। पुलिस हरकत में आई, सर्च ऑपरेशन शुरू हुआ, शहर के चप्पे-चप्पे पर नजर डाली गई, लेकिन कुछ भी ठोस हाथ नहीं लगा।
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थाना परिसर में अफरातफरी थी, लेकिन वही पुराना सरकारी ढर्रा। कुछ पुलिसवाले मोबाइल में व्हाट्सएप स्क्रॉल कर रहे थे, तो कुछ विवेचना के नाम पर केवल खानापूर्ति कर रहे थे। परिजनों की आँखों में भय, और जनता के मन में यह सवाल: क्या अब बिहार सुरक्षित है?
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राजनीतिक संरचनाओं की पोल खोलता मौन: यह घटना इसलिए भी गंभीर है क्योंकि अशोक कुमार यादव केवल एक सांसद नहीं हैं। वे वरिष्ठ भाजपा नेता हुकुमदेव नारायण यादव के पुत्र हैं और स्वयं तीन बार केवटी से विधायक रह चुके हैं। उनके घर का सुरक्षा घेरा, पार्टी का रसूख और प्रशासन की सीधी पहुंच सबके बावजूद उनके बेटे का यूं लापता हो जाना एक बहुत बड़ा संकेत है। क्या यह राजनीतिक विरोधियों का कोई संकेत है? या फिर यह उस ढहती हुई सुरक्षा व्यवस्था का परिणाम है, जिसकी बातें हर मंच से जोरशोर से की जाती हैं?
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बिहार की सुरक्षा व्यवस्था पर कड़ा प्रश्नचिन्ह: यदि राजधानी पटना से कुछ ही किलोमीटर दूर दरभंगा जैसे शहरी और राजनीतिक रूप से सजग ज़िले में यह घटना घट सकती है, तो सोचिए, सीमांचल, मिथिला या कोसी के दुर्गम इलाकों की स्थिति क्या होगी? जब सत्ता पक्ष के बेटे भी इस तरह से लापता हो जाते हैं और पुलिस के पास उनके बारे में जानकारी जुटाने के लिए कोई ठोस तकनीकी या मानवीय संसाधन नहीं होते, तो यह सुरक्षा तंत्र की विफलता का सबसे बड़ा उदाहरण है। क्या अब भी हम यह कह सकते हैं कि बिहार में “कानून का राज” है?
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परिवार की पीड़ा: एक बाप का टूटा हुआ हौसला: एक सांसद, जो हज़ारों की भीड़ को संबोधित करते हैं, आज अपने बेटे की एक तस्वीर हाथ में लिए दरभंगा की गलियों में खड़े हैं। अशोक यादव का मौन, उनके चेहरे की थकान, और आंखों की बेचैनी बता रही है कि सत्ता और शक्ति का भी एक अंत होता है वह अंत तब होता है जब अपना लापता हो जाए और सिस्टम खामोश बैठा हो। विभूति की माँ की चीखें, घर के आंगन की चुप्पी, और दीवारों पर टंगे कैलेंडर की टिक-टिक सब कुछ मानो यह चीख-चीखकर कह रहे हैं: “हमें हमारे बेटे को वापस लाओ।”
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सोशल मीडिया और जनचेतना की नई लहर: सोशल मीडिया पर यह मामला आग की तरह फैल गया। #BringBackVibhuti, #DarbhangaMissingBoy और #SafeBihar जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। युवाओं, छात्रों और समाज के जागरूक तबकों ने सरकार से सवाल करना शुरू कर दिया है। लोग यह जानना चाहते हैं कि आखिर एक सांसद के पुत्र की सुरक्षा भी बिहार में सुनिश्चित नहीं हो सकती तो फिर आम नागरिकों का क्या होगा?
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एक राज्य, जहां सियासत हावी और सुरक्षा निष्क्रिय: बिहार में राजनीति हमेशा से सामाजिक संरचना की धुरी रही है, लेकिन अब यही राजनीति सुरक्षा के सवाल पर चुप्पी साधे हुए है। न तो मुख्यमंत्री की ओर से कोई बयान, न ही गृहमंत्री की तरफ से संवेदना मानो ये घटना आम खबरों की भीड़ में कहीं दबकर रह गई हो।क्या सत्ता पक्ष के लिए एक सांसद के बेटे का लापता होना भी अब कोई 'बड़ी बात' नहीं रही?
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शुरुआत है यह प्रश्नों की श्रृंखला की: विभूति कुमार यादव की वापसी की हम सब दुआ करते हैं। लेकिन यह घटना केवल एक लापता युवक की कहानी नहीं, यह बिहार की सुरक्षा व्यवस्था, प्रशासनिक निष्क्रियता, और राजनीतिक चुप्पी की एक परत-दर-परत उधड़ी हुई परत है। यह उस समाज के लिए चेतावनी है जो हर घटना को केवल 'अखबार की खबर' समझ कर आगे बढ़ जाता है।
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आज विभूति हैं, कल कोई और हो सकता है। सवाल वही रहेगा: क्या अब भी हम कह सकते हैं बिहार सुरक्षित है?