पूर्णिया मेडिकल कॉलेज में उम्मीद का सूरज उग आया है: प्राचार्य डॉ. हरिशंकर मिश्र की कर्मठता से जागा अस्पताल, शुरू होने जा रही है हिस्टोपैथोलॉजी जांच की सुविधा — कैंसर जैसे रोग की पहचान अब यहीं संभव, मरीजों के चेहरों पर लौटी रौशनी

जब किसी संस्था के शीर्ष पर एक जागरूक, संवेदनशील और संकल्पशील व्यक्तित्व आ बैठता है, तो इमारतें भी सोचने लगती हैं और दीवारों से सपने झांकने लगते हैं। राजकीय मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल पूर्णिया इन दिनों ऐसे ही परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है — और इस परिवर्तन की धुरी हैं प्राचार्य डॉ. हरिशंकर मिश्र. पढ़े पुरी खबर......

पूर्णिया मेडिकल कॉलेज में उम्मीद का सूरज उग आया है: प्राचार्य डॉ. हरिशंकर मिश्र की कर्मठता से जागा अस्पताल, शुरू होने जा रही है हिस्टोपैथोलॉजी जांच की सुविधा — कैंसर जैसे रोग की पहचान अब यहीं संभव, मरीजों के चेहरों पर लौटी रौशनी
पूर्णिया मेडिकल कॉलेज में उम्मीद का सूरज उग आया है: प्राचार्य डॉ. हरिशंकर मिश्र की कर्मठता से जागा अस्पताल, शुरू होने जा रही है हिस्टोपैथोलॉजी जांच की सुविधा — कैंसर जैसे रोग की पहचान अब यहीं संभव, मरीजों के चेहरों पर लौटी रौशनी; फोटो: मिथिला जन जन की आवाज समाचार

पूर्णिया से संवाददाता। जब किसी संस्था के शीर्ष पर एक जागरूक, संवेदनशील और संकल्पशील व्यक्तित्व आ बैठता है, तो इमारतें भी सोचने लगती हैं और दीवारों से सपने झांकने लगते हैं। राजकीय मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल पूर्णिया इन दिनों ऐसे ही परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है — और इस परिवर्तन की धुरी हैं प्राचार्य डॉ. हरिशंकर मिश्र।

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उम्र के उस पड़ाव पर जहाँ बहुत से लोग कुर्सी को आरामगाह बना लेते हैं, वहीं डॉ. मिश्र ने कुर्सी को जनसेवा की चौकी बना डाला। वे जब अस्पताल परिसर में सुबह की सैर करते हैं, तो हवा भी उन्हें सलाम करती है। डॉक्टरी की पढ़ाई से लेकर प्रशासकीय व्यवस्था तक, हर मोर्चे पर उन्होंने एक ही मंत्र को जीया है — “सिस्टम ऐसा बनाओ, जिसमें मरीज की साँसों को सुकून मिले।”

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अब उनके नेतृत्व में मेडिकल कॉलेज में शुरू होने जा रही है ‘हिस्टोपैथोलॉजी जांच’ की सुविधा: यह वह जांच है, जो ऑपरेशन के बाद शरीर से निकाले गए ऊतकों को सूक्ष्मदर्शी से देखकर यह तय करती है कि रोगी को कहीं कैंसर या अन्य गंभीर रोग तो नहीं है। यह सुविधा अब तक पूर्णिया में उपलब्ध नहीं थी। मरीजों को दरभंगा, पटना या निजी लैबों में भेजा जाता था। इलाज से ज्यादा तनाव इस बात का होता था कि रिपोर्ट कब आएगी, कैसे आएगी, और भरोसेमंद होगी भी या नहीं। लेकिन अब इस घुटनभरे इंतज़ार पर पूर्णविराम लगने जा रहा है। अब जांच यहीं होगी, रिपोर्ट यहीं बनेगी, और इलाज भी यहीं शुरू होगा। यह केवल सुविधा नहीं, यह अस्पताल के भीतर गूंजती एक नई चेतना है।

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डॉ. मिश्र — एक प्रशासक नहीं, अस्पताल का वास्तुशिल्पी: डॉ. मिश्र को देखकर लगता है कि उन्होंने अस्पताल को एक मरीज की तरह समझा है — जिसकी हर नब्ज़ को पढ़ा, हर दर्द को महसूस किया, और फिर उसका इलाज किया। वे सिर्फ योजनाएं नहीं बनाते, उसे ज़मीन पर उतार कर खुद निगरानी करते हैं। डॉक्टरों के साथ बैठक, स्टाफ की क्लास, और मरीजों से सीधे संवाद ये उनके रोज़मर्रा का हिस्सा हैं।

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कभी मेडिकल कॉलेज के गलियारे उदास थे, रिसेप्शन पर अफरातफरी, मरीजों के चेहरे पर चिंता की लकीरें। पर अब तस्वीर बदल रही है। रिसेप्शन मुस्कुराने लगा है, वार्ड में व्यवस्था दिखने लगी है, और डॉक्टरों के पास अब सिर्फ स्टेथोस्कोप ही नहीं, समय और सहानुभूति भी है।

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हिस्टोपैथोलॉजी जांच की सुविधा क्यों है ऐतिहासिक? क्योंकि यह वह जांच है जो कैंसर की पुष्टि करती है। किसी भी ऑपरेशन के बाद डॉक्टर यह जानना चाहते हैं कि रोगी में कोई खतरनाक कोशिकाएं तो नहीं पनप रही हैं। इस जांच के लिए अब तक मरीजों को बाहर भेजा जाता था, जिससे समय, पैसा और मनोबल तीनों की क्षति होती थी। अब जब यह सुविधा यहीं शुरू होगी, तो मरीज की सोच से लेकर उसकी सच्चाई तक — सब एक छत के नीचे उपलब्ध होगा।

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सेंट्रल पैथोलॉजी: जांचों का मंदिर: यहां अब 145 से अधिक जांचें नियमित हो रही हैं। 24 घंटे चलने वाला यह विभाग आउटडोर और इनडोर दोनों ही मरीजों के लिए वरदान बन चुका है। खासकर गरीब, दूर-दराज से आने वाले मरीजों के लिए यह व्यवस्था जीवनदायिनी है।

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डॉ. मिश्र का दिन सूरज से पहले उगता है, और उनकी फाइलें देर रात तक जागती हैं। कभी-कभी लगता है कि वे शरीर से डॉक्टर हैं, लेकिन आत्मा से कवि। उनकी भाषा में आदेश कम, आग्रह ज़्यादा होता है। वे सिर्फ काम नहीं करवाते, अपने व्यवहार से काम करने की प्रेरणा जगाते हैं।

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"जब कोई डॉक्टर सिस्टम से लड़ना शुरू करता है, तो मरीजों की तकदीरें मुस्कुराना शुरू कर देती हैं।"

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पूर्णिया अब सिर्फ इलाज नहीं देता, यह अब भरोसा भी देता है। और इस भरोसे के पीछे खड़े हैं डॉ. हरिशंकर मिश्र, एक नाम नहीं, एक नर्म लेकिन निर्णायक हस्ताक्षर।