दरभंगा की गलियों में अब गूंजता है डर, न कि चूड़ियों की खनक विश्वविद्यालय थाना के SHO सुधीर कुमार और लहेरियासराय थाना के SHO अमित कुमार के क्षेत्र में महिलाओं को अब कहना पड़ रहा है: 'मत पहनो चैन... कहीं कोई Apachi बाइक वाले न आ जाए!' पढ़िए एक ऐसी रिपोर्ट जो आपको झकझोर देगी, डर की जड़ तक ले जाएगी और सुरक्षा के खोखले दावों की पोल खोल देगी...
जब चूड़ियों की खनक किसी गली से गुजरती थी, तो लगता था कि दरभंगा ज़िंदा है। अब उन्हीं गलियों में बाइक की गड़गड़ाहट और झपटमारी की वारदातें सुनाई देती हैं। कभी शांति का पर्याय रहे मोहल्ले अब डर के गलियारे बन चुके हैं। शहर में अपराधियों का दुस्साहस अब इस हद तक पहुँच चुका है कि वे पुलिस मुख्यालय की छाया में भी चैन छीन ले रहे हैं और साथ ही, चैन भी. पढ़े पुरी खबर.......

दरभंगा:- जब चूड़ियों की खनक किसी गली से गुजरती थी, तो लगता था कि दरभंगा ज़िंदा है। अब उन्हीं गलियों में बाइक की गड़गड़ाहट और झपटमारी की वारदातें सुनाई देती हैं। कभी शांति का पर्याय रहे मोहल्ले अब डर के गलियारे बन चुके हैं। शहर में अपराधियों का दुस्साहस अब इस हद तक पहुँच चुका है कि वे पुलिस मुख्यालय की छाया में भी चैन छीन ले रहे हैं और साथ ही, चैन भी!
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मंगलवार की सुबह का वक्त था, दिन के 10-11 बजे के बीच का समय। रौशनी अपने चरम पर थी, और लोग रोजमर्रा के कार्यों में व्यस्त थे। लहेरियासराय थाना क्षेत्र के जीएनगंज मोहल्ले में रानी झा, पत्नी गंगेश गुंजन, के साथ जो हुआ, वह दरभंगा की कानून व्यवस्था पर करारा तमाचा है।
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बाज़ार से घर की राह, और भय का आलिंगन: रानी झा बाजार से लौट रही थीं। उनकी चाल में थकावट थी, पर मन घर पहुँचने की तसल्ली से भरा था। राना मार्केट की संकरी गली में जैसे ही उन्होंने कदम रखा, एक काली Apachi बाइक उलटी दिशा से आई। उस पर दो युवक सवार थे एक ने झपट्टा मारा, रानी झा के गले से सोने की चैन छीनने की कोशिश की।
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लेकिन यह कोई सामान्य महिला नहीं थीं। रानी झा ने हिम्मत दिखाई, और पूरे बल से अपनी चैन पकड़ ली। झपटमार का टी-शर्ट भी पकड़ लिया, जिससे वह छूट न सके। झगड़ते हुए चैन टूट गई, और उसमें जड़े डायमंड का लॉकेट और सोने की हनुमानी लेकर लुटेरे भाग निकले। ये लुटेरे अकेले नहीं थे। सीसीटीवी फुटेज में साफ दिखा कि थोड़ी दूरी पर एक और होंडा SP 125 बाइक पर दो युवक खड़े थे। चैन लेकर लौटे लुटेरे ने अपने साथी को लॉकेट दिखाया, और फिर दोनों बाइकें फरार हो गए।
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सीसीटीवी में कैद हुई बेबसी: घटना स्थल के आसपास लगे सीसीटीवी में पूरी वारदात कैद हो गई है। चेहरे साफ़ नहीं हैं, पर चाल-ढाल और बाइक का रंग पुलिस के लिए सबूत हैं। अब सवाल ये है कि इन सबूतों का पुलिस कितना सही उपयोग कर पाती है?
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शनिवार को भी चुप नहीं बैठे थे ये साए: इस वारदात से दो दिन पहले यानी शनिवार, 24 मई को भी दरभंगा के ही सुंदरपुर मोहल्ले में एक बुजुर्ग महिला से छिनतई हुई थी। सावित्री देवी, जो बापू चौक स्थित अपने घर से सुबह टहलने निकली थीं, परमेश्वर चौक के पास जैसे ही पहुँचीं, वही काली अपाची और वही स्टाइल गले से 11.66 ग्राम की सोने की चैन झपटी गई। इसकी कीमत ₹1,38,000 आँकी गई। यह इलाका विश्वविद्यालय थाना क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
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अब बड़ा सवाल हैं: विश्वविद्यालय थाना के SHO सुधीर साहब, देखिए ये खेल! नज़र रखिए इन दोनों शातिर बाइकर्स पर। क्या अब हमारी माँ-बहनों को सिंगार करना छोड़ देना चाहिए? क्या अब हम अपने ही मोहल्ले में असहाय हो जाएँ? आईये, अपने फॉर्म में लौटिए खुद कीजिए अपने क्षेत्र की मॉनिटरिंग!
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SHO साहब, आपकी कुर्सी सिर्फ रिपोर्ट दर्ज करने के लिए नहीं है। यह कुर्सी एक भरोसे की चौकी है उस भरोसे की, जो अब दरक रहा है। ये बाइकर्स हर हफ्ते नए गहने लेकर भाग जाते हैं, और आप? आप बस 'जांच जारी है' का राग अलापते हैं। आपके क्षेत्र की सड़कों पर महिलाएँ अब अपने गहनों से ज़्यादा अपनी जान को लेकर चिंतित हैं। क्या अब बेटियों से कहें कि वह पायल छोड़ें, माँ से कहें कि मंगलसूत्र उतार दें? अब नहीं चलेगा बहाना। अब चाहिए एक्शन। अब चाहिए वो SHO जो वर्दी पहनने का मतलब जानता है, और डर की इन गलियों को फिर से भरोसे की बस्ती बना सके।
दोनों लुटेरे के दो अन्य सहयोगी भी थे जो हौंडा SP-125 बाइक पर थोड़ी दूर पर खड़े थे।
प्रशासन से चंद कदमों की दूरी पर अपराध की निर्भीकता: जीएनगंज की यह घटना दरभंगा पुलिस मुख्यालय और लहेरियासराय अनुमंडल कार्यालय से महज़ कुछ सौ मीटर की दूरी पर घटी। ये वही इलाका है जहाँ दिन-रात पुलिस गश्ती का दावा होता है। पर हकीकत? एक महिला अपने ही दरवाज़े पर चैन बचाने की जंग लड़ती है और अपराधी फरार हो जाते हैं। दरभंगा में एक सुनियोजित छिनतई गिरोह सक्रिय हो चुका है। ये लुटेरे महज़ अपराधी नहीं, बल्कि कानून व्यवस्था पर व्यंग्य की जीती-जागती मिसाल हैं। वे जानते हैं कि कैमरे हैं, पुलिस है, थाने हैं पर कार्रवाई? "सबूत जुटाए जा रहे हैं" की रट में महीनों निकल जाते हैं।
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महिलाओं के लिए गली नहीं, रणभूमि! अब दरभंगा की महिलाएँ घर से निकलने से पहले गहने उतारती हैं, फोन बंद करके रखती हैं, और हर बाइक की आवाज़ पर एक बार पीछे मुड़ती हैं। ये डर नहीं है, यह सिस्टम पर से उठे भरोसे की अंतिम परिणति है। क्यों नहीं हो रही सघन चेकिंग? क्या CCTV केवल चुनावी विज्ञापनों में काम आते हैं? शहर की जनता को सुरक्षा की गारंटी कौन देगा?
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जब गली ही डर का दूसरा नाम बन जाए... दरभंगा को अब अपराधियों से नहीं, लचर प्रशासनिक सोच से खतरा है। अब भी यदि इस गिरोह को समय रहते न पकड़ा गया, तो अगली रपट किसी और महिला की चीख में दर्ज होगी। समाचार खत्म नहीं हुई है, ये शुरुआत है उस संघर्ष की जो एक पत्रकार, एक महिला, एक नागरिक और एक शहर को लड़नी है अपराध के खिलाफ, व्यवस्था की नाकामी के विरुद्ध, और न्याय की जीत के लिए!