सीएम कॉलेज बना डर और रहस्य का नया पता जहाँ 8:59 पर दाखिल हुई मोनिका, लेकिन कभी बाहर नहीं निकली! CCTV कैमरों ने देखना बंद कर दिया, प्रिंसिपल ने बोलना छोड़ दिया, और एक पिता की रूह अब दरभंगा की हवाओं में मदद की गुहार कर रही है क्या ये वही विश्वविद्यालय है, जहाँ बेटियाँ सपने बुनने आती थीं... या अब वो जगह है जहाँ उनका नाम तक मिटा दिया जाता है?

27 जून की सुबह थी। मौसम भी कुछ वैसा ही, जैसे कोई अनहोनी दस्तक देने को तैयार हो। समस्तीपुर से निकली एक मासूम लड़की, एक साधारण सी छात्रा मोनिका शर्मा अपने पीजी द्वितीय सेमेस्टर की कक्षाओं के लिए दरभंगा के प्रतिष्ठित सीएम कॉलेज पहुँची। ये वही कॉलेज है, जहाँ ज्ञान की मशाल जलाने की बात होती है, जहाँ विद्या की देवी का वास बताया जाता है। मगर उस दिन, शायद कॉलेज के गर्भ में कुछ और ही लिखा था. पढ़े पुरी खबर.......

सीएम कॉलेज बना डर और रहस्य का नया पता जहाँ 8:59 पर दाखिल हुई मोनिका, लेकिन कभी बाहर नहीं निकली! CCTV कैमरों ने देखना बंद कर दिया, प्रिंसिपल ने बोलना छोड़ दिया, और एक पिता की रूह अब दरभंगा की हवाओं में मदद की गुहार कर रही है क्या ये वही विश्वविद्यालय है, जहाँ बेटियाँ सपने बुनने आती थीं... या अब वो जगह है जहाँ उनका नाम तक मिटा दिया जाता है?
सीएम कॉलेज बना डर और रहस्य का नया पता जहाँ 8:59 पर दाखिल हुई मोनिका, लेकिन कभी बाहर नहीं निकली! CCTV कैमरों ने देखना बंद कर दिया, प्रिंसिपल ने बोलना छोड़ दिया, और एक पिता की रूह अब दरभंगा की हवाओं में मदद की गुहार कर रही है क्या ये वही विश्वविद्यालय है, जहाँ बेटियाँ सपने बुनने आती थीं... या अब वो जगह है जहाँ उनका नाम तक मिटा दिया जाता है?

दरभंगा: 27 जून की सुबह थी। मौसम भी कुछ वैसा ही, जैसे कोई अनहोनी दस्तक देने को तैयार हो। समस्तीपुर से निकली एक मासूम लड़की, एक साधारण सी छात्रा मोनिका शर्मा अपने पीजी द्वितीय सेमेस्टर की कक्षाओं के लिए दरभंगा के प्रतिष्ठित सीएम कॉलेज पहुँची। ये वही कॉलेज है, जहाँ ज्ञान की मशाल जलाने की बात होती है, जहाँ विद्या की देवी का वास बताया जाता है। मगर उस दिन, शायद कॉलेज के गर्भ में कुछ और ही लिखा था।

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सुबह 7 बजे समस्तीपुर से निकली ट्रेन में बैठी मोनिका ने अपने पिता पवन कुमार शर्मा को फ़ोन पर सूचित किया कि वह राजकुमारगंज पहुँच चुकी है। उन्होंने बेटी को आशीर्वाद दिया और जीवन के सामान्य क्रम में लिप्त हो गए। परंतु वह बात... वह कॉल... वह संवाद... शायद आख़िरी था। उसके बाद मोनिका का मोबाइल स्विच ऑफ हो गया, और उसी के साथ मानो पूरे परिवार की सांसें भी बंद हो गईं। पिता बेचैन हुए, दरभंगा दौड़े, कॉलेज पहुँचे। जब दरवाज़े से लेकर दीवारों तक आवाज़ लगाई गई, तो सन्नाटा मिला। न कोई सूचना, न कोई जवाब। किसी ने कुछ देखा नहीं, किसी ने कुछ सुना नहीं।

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CCTV कैमरा बना एकमात्र गवाह, मगर वह भी अधूरा: जब कॉलेज के CCTV फुटेज को खंगाला गया, तो उसमें मोनिका की झलक मिली। 8 बजकर 59 मिनट पर कॉलेज के मुख्य गेट से प्रवेश करती हुई वह दिखाई दी। 9 बजकर 2 मिनट पर वह कॉलेज के दूसरे तल्ले पर चढ़ती दिखी। उसके बाद? सन्नाटा। खालीपन। कोई दृश्य नहीं, कोई फ्रेम नहीं, कोई पल नहीं जैसे कॉलेज की दीवारों ने ही उसे निगल लिया हो। उसके बाहर निकलने की कोई फुटेज नहीं मिली। जैसे वह अंदर गई... और फिर हवा में विलीन हो गई। किसी रहस्यमय ग्रहण की तरह, किसी अनदेखे रहस्य की परछाईं में।

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प्रशासन का मौन और प्रिंसिपल की रहस्यमयी चुप्पी: पिता ने जब कॉलेज प्रबंधन से बात की, तो जो उत्तर मिला वो केवल औपचारिकताओं से भरा था। प्रिंसिपल ने 'पता नहीं', 'देखते हैं', 'जांच चल रही है' जैसे वाक्यों में अपनी जिम्मेदारी को घोल दिया। क्या कॉलेज का कर्तव्य केवल किताबें पढ़ाना भर है? क्या वहाँ की सुरक्षा, छात्राओं की निगरानी और जवाबदेही कोई मुद्दा नहीं?

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यह वही कॉलेज है जहाँ माता-पिता अपने बच्चों को सपनों के साथ भेजते हैं। मगर जब वही कॉलेज उन सपनों को चकनाचूर कर दे... तो क्या वो मंदिर रह जाता है या कोई श्मशान?

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थाना, प्राथमिकी और थकी उम्मीदें: पवन कुमार शर्मा ने नगर थाना में प्राथमिकी दर्ज करवाई। थानाध्यक्ष अरविंद कुमार ने दावा किया कि मोबाइल कॉल डिटेल्स निकाली जा रही है और छात्रा की जल्द बरामदगी होगी। मगर यह ‘जल्द’ अब चार दिन पुराना हो चुका है। हर बीतता क्षण, हर बीतता घंटा एक पिता के जीवन से उम्मीद को नोचता जा रहा है। क्या मोनिका स्वेच्छा से गई? क्या उसे किसी ने गुमराह किया? क्या कॉलेज परिसर में ही कुछ भयावह घटा? इन सब प्रश्नों की गूंज दरभंगा की गलियों में है, मगर उत्तर किसी के पास नहीं।

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क्या सीएम कॉलेज अब बेटियों के लिए सुरक्षित नहीं: इस पूरे घटनाक्रम ने सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा कर दिया है क्या हमारा शैक्षणिक परिसर अब बेटियों के लिए असुरक्षित हो चुका है? जब एक लड़की दिन के उजाले में कॉलेज के भीतर दाखिल हो, और फिर गायब हो जाए, तो इसका अर्थ केवल एक अपराध नहीं... एक संस्थागत विफलता है। CCTV कैमरे केवल एक सीमित निगरानी दे सकते हैं। जब तक मानवता की आँखें जागरूक न हों, जब तक प्रबंधन संवेदनशील न हो तब तक यह तकनीक केवल एक मशीन है, संवेदनाशून्य और निष्क्रिय।

माँ की आँखों में रात नहीं, बस इंतज़ार: मोनिका की माँ अब भी दरवाज़े की चौखट पर बैठी हैं। हर बार मोबाइल की घंटी बजती है, तो उम्मीद से देखती हैं शायद बेटी का फ़ोन होगा। हर बार दरवाज़े पर दस्तक होती है, तो दौड़कर आती हैं शायद मोनिका लौट आई होगी। मगर फिर वही सन्नाटा। वही जवाबहीन रातें। घर में उसका बैग रखा है, किताबें पड़ी हैं, और तकिए पर अब भी उसकी खुशबू बाकी है। मगर वो नहीं है। कहीं नहीं। कोई सुराग नहीं।

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दरभंगा की जनता जागे यह सिर्फ़ एक लड़की नहीं, हमारी व्यवस्था की चीरफाड़ है: यह मोनिका की कहानी नहीं, यह व्यवस्था की रूह कंपा देने वाली सच्चाई है। जब कॉलेज परिसर भी बेटियों के लिए कब्रिस्तान बन जाए, तो हमें सोचने की ज़रूरत है कि हम कैसा समाज गढ़ रहे हैं?

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प्रशासन, पुलिस, प्रबंधन सब अपनी-अपनी जिम्मेदारी से कन्नी काटते नज़र आ रहे हैं। अगर तीन दिन में एक लड़की का कोई सुराग नहीं मिल रहा, तो इसे सामान्य घटना कहना खुद अपराध है। कहीं कोई गुप्त सुरंग? कोई अनदेखा चेहरा? या कोई साज़िश?

कई सवाल हैं जो अब डर की तरह फैल चुके हैं:

क्या कॉलेज परिसर में कोई अंधा कोना है, जो कैमरों की नज़र से बचा हुआ है?

क्या कोई कर्मचारी या अजनबी व्यक्ति इस रहस्य का हिस्सा है?

क्या मोनिका पर कोई मानसिक दबाव था?

इन सवालों के उत्तर मिलना ज़रूरी है, वरना हर अभिभावक डर के साथ अपनी बेटी को कॉलेज भेजेगा।

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यह गुमशुदगी नहीं, एक चेतावनी है: मोनिका की कहानी को बस एक गुमशुदा लड़की की घटना मान लेना इस अपराध को छोटा करना होगा। यह घटना हमारे समाज के उस अंधेरे कोने की पहचान है, जहाँ बेटियाँ अब भी असुरक्षित हैं, जहाँ शिक्षा के नाम पर सिर्फ़ इमारतें हैं आत्मा नहीं। दरभंगा प्रशासन, मिथिला विश्वविद्यालय, सीएम कॉलेज सबके ऊपर इस घटना की ज़िम्मेदारी है। और अगर उन्होंने अब भी आँखें मूंद लीं, तो अगली मोनिका किसी और की बेटी नहीं, आपकी अपनी हो सकती है।

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विशेष अनुरोध: अगर कोई व्यक्ति मोनिका के संबंध में किसी भी जानकारी से अवगत है, तो कृपया नगर थाना, दरभंगा से संपर्क करें। एक सूचना, एक सुराग एक जीवन बचा सकता है।