कहां चले गए वो दो दीये, जो अंधेरे में भी सच्चाई का उजाला जलाए रखते थे... दरभंगा प्रेस क्लब में श्रद्धांजलि सभा के दौरान जब मोहन चंद्रवंशी और रविकांत ठाकुर (नंदू जी) के नाम गूंजे तो हर कलम थम गई, हर कैमरा झुक गया, और हर पत्रकार ने महसूस किया कि सच की धरती आज कुछ और वीरान हो गई है....

आज का दिवस दरभंगा की पत्रकारिता के इतिहास में एक वेदना-दिन बनकर अंकित हो गया। शब्द जैसे शोकाकुल थे, कैमरे की नज़रें झुकी हुई थीं, और कलमों की नोक पर नमी थी क्योंकि शहर ने खो दिए अपने दो अमर पत्रकार, मोहन चंद्रवंशी और रविकांत ठाकुर (नंदू जी)। इन दोनों पत्रकारों की पावन स्मृति में सोमवार को दरभंगा प्रेस क्लब के प्रांगण में एक भावविह्वल श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया, जहाँ उपस्थित हर व्यक्ति अपने आँसुओं में अपनी कलम की निष्ठा को डुबोए हुए था। सभा की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार कौशल किशोर कर्ण ने की तथा संचालन का दायित्व राकेश कुमार झा ने सँभाला. पढ़े पूरी खबर........

कहां चले गए वो दो दीये, जो अंधेरे में भी सच्चाई का उजाला जलाए रखते थे... दरभंगा प्रेस क्लब में श्रद्धांजलि सभा के दौरान जब मोहन चंद्रवंशी और रविकांत ठाकुर (नंदू जी) के नाम गूंजे तो हर कलम थम गई, हर कैमरा झुक गया, और हर पत्रकार ने महसूस किया कि सच की धरती आज कुछ और वीरान हो गई है....
कहां चले गए वो दो दीये, जो अंधेरे में भी सच्चाई का उजाला जलाए रखते थे... दरभंगा प्रेस क्लब में श्रद्धांजलि सभा के दौरान जब मोहन चंद्रवंशी और रविकांत ठाकुर (नंदू जी) के नाम गूंजे तो हर कलम थम गई, हर कैमरा झुक गया, और हर पत्रकार ने महसूस किया कि सच की धरती आज कुछ और वीरान हो गई है....

दरभंगा। आज का दिवस दरभंगा की पत्रकारिता के इतिहास में एक वेदना-दिन बनकर अंकित हो गया। शब्द जैसे शोकाकुल थे, कैमरे की नज़रें झुकी हुई थीं, और कलमों की नोक पर नमी थी क्योंकि शहर ने खो दिए अपने दो अमर पत्रकार, मोहन चंद्रवंशी और रविकांत ठाकुर (नंदू जी)। इन दोनों पत्रकारों की पावन स्मृति में सोमवार को दरभंगा प्रेस क्लब के प्रांगण में एक भावविह्वल श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया, जहाँ उपस्थित हर व्यक्ति अपने आँसुओं में अपनी कलम की निष्ठा को डुबोए हुए था। सभा की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार कौशल किशोर कर्ण ने की तथा संचालन का दायित्व राकेश कुमार झा ने सँभाला। कार्यक्रम के आरंभ में दो मिनट का मौन रखा गया पर वह मौन भी साधारण नहीं था। वह एक ऐसा मौन था, जिसमें पत्रकारिता की पीड़ा, पेशे की तपस्या और सच्चाई की शपथ गूँज रही थी।

स्मृतियों की संध्या जहाँ हर शब्द श्रद्धांजलि बना: सभा में जब जिला सूचना एवं जनसंपर्क पदाधिकारी सत्येंद्र प्रसाद ने कहा की “मोहन चंद्रवंशी जी का अस्तित्व केवल एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पत्रकारिता की आत्मा का प्रतीक था।” तो सभागार में उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति की आँखें छलक उठीं। वरिष्ठ पत्रकार संजय मिश्र ने भावावेश में कहा मोहन जी की लेखनी में संवेदना का वह ताप था, जो न केवल समाज को जगाता था, बल्कि सत्ता के गलियारों तक आत्मा का कंपन पहुँचा देता था। उनका जाना दरभंगा के मीडिया-जगत के लिए एक अनुत्तरित प्रश्न है क्या अब वैसी निष्ठा फिर लौटेगी?

आफताब हुसैन जिलानी ने अपने शब्दों में भावनाओं की गहराई उकेरते हुए कहा “मोहन जी पुराने पत्रकारिता-काल के उन विरल हस्ताक्षरों में से एक थे, जो समाचार को सनसनी नहीं बनने देते थे, बल्कि उसे सच्चाई का आईना बना देते थे। उनका व्यक्तित्व शीतल गंगा की तरह निर्मल और उनकी दृष्टि हिमालय की तरह ऊँची थी।”

नंदू जी जो हर हँसी में छिपा लेते थे अपने दुःखों का संसार: सभा के दौरान रविकांत ठाकुर (नंदू जी) का नाम आते ही वातावरण एकाएक गम्भीर हो उठा। सहकर्मी पत्रकारों ने बताया कि नंदू जी की मुस्कान में जीवन की तपस्या और कर्तव्य की शुचिता दोनों समाहित थीं। वह पत्रकारिता के उन सिपाहियों में से थे जो बिना मंच, बिना तमगे, केवल सच्चाई के साहस से जीते थे। उनका जाना दरभंगा के पत्रकारिता जगत के उस अंतर्मन को शून्य कर गया है, जहाँ सच्चाई अपनी आवाज़ तलाशती थी।

श्रद्धा, संवेदना और संगति की पराकाष्ठा: सभा में दर्जनों पत्रकार उपस्थित रहे अमर कुमार मिश्रा, इम्तियाज अहमद, गौरव झा, रमन कुमार चौधरी, पप्पू सिंह, जीएम फिरोज, मो. जाहिद अनवर, नीरज कुमार राय, विनय ठाकुर, अफजल खान, अब्दुल कलाम (गुड्डू राज), राजकुमार रंजन, नवेंदु शेखर पाठक, अभिषेक कुमार, सोनू झा, फैज अकरम, जुनेद आलम, मनोज झा, अजीत कुमार सिंह, प्रिंस राज, सूरज कुमार, गिरीश कुमार, लालबाबू अंसारी, वरुण ठाकुर, विक्की, अमित कुमार, चंद्रप्रकाश कर्ण ‘टिंकू’, नफीस करीम आदि। हर कोई अपनी तरह से बोल रहा था कोई स्मृति सुना रहा था, कोई आँख पोंछ रहा था, कोई बस मौन था। पर उन सबके बीच एक बात समान थी उन दोनों दिवंगत पत्रकारों के प्रति असीम आदर और अविरल प्रेम।

पत्रकारिता के परिजनों का प्रण: सभा के समापन पर सर्वसम्मति से यह कहा गया की “मोहन चंद्रवंशी और रविकांत ठाकुर अब भले इस संसार से विदा हो गए हों, पर उनकी सादगी, उनकी निर्भीकता, उनकी सच्चाई और उनकी आत्मीयता इस मिट्टी की स्मृतियों में सदैव जीवित रहेगी। वे अब दरभंगा की पत्रकारिता की अनश्वर धरोहर हैं।” सभा के अंत में सभी पत्रकारों ने दीप प्रज्वलित कर उनके चित्रों के समक्ष “ओम शांति” का सामूहिक उच्चारण किया। कई चेहरों पर आँसुओं की धार थी, पर वह आँसू दुर्बलता के नहीं कृतज्ञता और गौरव के आँसू थे।

अंतिम शब्द शब्दों की समाधि पर पुष्पांजलि: कभी-कभी जीवन में कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं, जो जाते नहीं बस आकार बदल लेते हैं। मोहन जी और नंदू जी अब हमारे बीच भले न हों, पर जब भी किसी संवाददाता की कलम से सच निकलेगा, जब भी कोई पत्रकार अपनी हिम्मत के लिए संघर्ष करेगा उनकी आत्मा वहीं होगी, प्रेरणा बनकर। ईश्वर से प्रार्थना है “दिवंगत आत्माओं को चिरशांति प्रदान करें, और उनके परिजनों को इस असह्य शोक को सहने की शक्ति दें।” दरभंगा की धरती आज भी उनके पदचिह्नों को पहचानती है जहाँ उन्होंने स्याही से नहीं, अपने जीवन से पत्रकारिता लिखी थी।