जब आसमान रोया... और धरती पर मातम छा गया: बिहार में वज्रपात बना कहर, एक ही सुबह में बुझ गए चार चिराग

बिहार की धरती आज उस पीड़ा से थर्रा उठी, जिसे न कोई मौसम समझ पाया, न कोई चेतावनी रोक पाई। सुबह के आसमान में काले बादल उमड़े थे, जैसे कोई रोष से भरा देवता धरती को देख रहा हो। देखते ही देखते बिजली चमकी, और उसी रोशनी के साथ चार घरों के चिराग बुझ गए. पढ़े पुरी खबर......

जब आसमान रोया... और धरती पर मातम छा गया: बिहार में वज्रपात बना कहर, एक ही सुबह में बुझ गए चार चिराग
जब आसमान रोया... और धरती पर मातम छा गया: बिहार में वज्रपात बना कहर, एक ही सुबह में बुझ गए चार चिराग; फोटो: मिथिला जन जन की आवाज़

बिहार की धरती आज उस पीड़ा से थर्रा उठी, जिसे न कोई मौसम समझ पाया, न कोई चेतावनी रोक पाई। सुबह के आसमान में काले बादल उमड़े थे, जैसे कोई रोष से भरा देवता धरती को देख रहा हो। देखते ही देखते बिजली चमकी, और उसी रोशनी के साथ चार घरों के चिराग बुझ गए।

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मधुबनी में मां-बेटी और एक किसान ने गंवाई जान: झंझारपुर की पिपरौलिया पंचायत में 47 वर्षीय दुर्गा देवी अपने गोइठा को बारिश से बचाने खेत गई थीं। किसे पता था कि जिसे वह बचाने जा रही थीं, उसी चादर के नीचे उनका जीवन छिप जाएगा। एक तेज़ कड़क के साथ आकाशीय बिजली उनके जिस्म पर गिरी और वहीं सब कुछ शांत हो गया। पति रमन कुमार महतो पंजाब में मजदूरी कर रहे थे। जैसे ही यह खबर मिली, उन्होंने ट्रेन तो पकड़ी, पर शायद अब कोई उम्मीद नहीं बची थी कि स्टेशन पर मुस्कुराकर उनका इंतज़ार करने वाली कोई होगी।

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उधर रुद्रपुर के अलपुरा गांव में एक पिता और उसकी नन्ही सी बेटी, खेत में गेहूं की कटी फसल को ढकने निकले थे। साथ में बेटा भी था। तीनों में से लौटे केवल एक। वज्रपात की चपेट में आए पिता-पुत्री वहीं खेत में दम तोड़ बैठे। बेटा सहमा खड़ा था, उसके सामने उसका संसार पल में खत्म हो गया।

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दरभंगा में भी विधाता ने ऐसा ही एक खेल रच दिया: लदहो कटैया गांव के बुजुर्ग जवाहर चौपाल अपने खेत से गेहूं समेटने गए थे। सुबह 7:45 की वह घड़ी, जब कड़क के साथ बिजली उनके सीने पर गिरी और जीवन की आखिरी सांस वहीं थम गई। उनके पीछे छूट गया वो थ्रेसर, जिसे वे अपने परिवार की उम्मीद समझकर संभालने निकले थे।

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एक पल में उजड़ गए चार घर: चार घरों से हंसी चली गई, चूल्हे ठंडे पड़ गए, और गांवों में मातम का सन्नाटा छा गया। कोई किसी से नज़र नहीं मिला पा रहा, कोई किसी को ढांढस नहीं बंधा पा रहा। प्रशासन अपनी प्रक्रिया में है, लेकिन मां-बाप, बच्चे, भाई-बहन – वो सब अब एक खालीपन के सामने खड़े हैं, जिसे न कोई मुआवजा भर सकता है, न कोई अफसर।

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जब बादल गरजते हैं अब, इन गांवों के लोग डरते हैं: क्योंकि उन्हें मालूम हो गया है कि बारिश सिर्फ भीगने के लिए नहीं आती... कभी-कभी वह अपने साथ एक अंधकार भी लाती है, जो जीवन भर पीछा नहीं छोड़ता।