पिस्तौल की नोक पर मांगा गया इंसाफ, आंख फोड़ी गई, दस्तावेज लूटे गए और पुलिस ने कहा नाम बताना जरूरी नहीं! आशिष कुमार की रिपोर्ट ने खोल दी है केवटी थाने की कार्यशैली की परतें!
शाम की ढलती रौशनी में जब एक डॉक्टर अपनी दिनभर की सेवाओं से लौट रहा था, तब रास्ते में उसका स्वागत फूलों से नहीं, बल्कि लोहे की रॉड, पिस्तौल और गुंडागर्दी से हुआ। जगह थी अनदामा गांधी चौक केवटी थाना क्षेत्र का एक चौराहा, जहां कानून से ज़्यादा ताकतवर हो गए हैं दो युवक, जिनके हौसले इतने बुलंद हैं कि वे न सिर्फ़ बीच सड़क एक चिकित्सक की गाड़ी को रोकते हैं, बल्कि पिस्तौल निकालकर उसकी जिंदगी पर भी वार कर देते हैं. पढ़े पुरी खबर......

दरभंगा: शाम की ढलती रौशनी में जब एक डॉक्टर अपनी दिनभर की सेवाओं से लौट रहा था, तब रास्ते में उसका स्वागत फूलों से नहीं, बल्कि लोहे की रॉड, पिस्तौल और गुंडागर्दी से हुआ। जगह थी अनदामा गांधी चौक केवटी थाना क्षेत्र का एक चौराहा, जहां कानून से ज़्यादा ताकतवर हो गए हैं दो युवक, जिनके हौसले इतने बुलंद हैं कि वे न सिर्फ़ बीच सड़क एक चिकित्सक की गाड़ी को रोकते हैं, बल्कि पिस्तौल निकालकर उसकी जिंदगी पर भी वार कर देते हैं। घटना 7 जुलाई 2025, शाम 5:30 बजे की है। पीड़ित डॉ. अनवर अशरफ, पिता डॉ. मोहम्मद मुर्तुजा, निवासी शेखपुर दानी, थाना- केवटी, दरभंगा। स्थान अनदामा गांधी चौक, वही चौराहा जहां पीड़ा को कुछ युवाओं ने अपने रौब और रॉड की ताकत से लहूलुहान कर दिया।
अपराध की परत-दर-परत: डॉ. अशरफ अपनी शिवधारा क्लिनिक से लौट रहे थे। जैसे ही उनकी कार अनदामा चौक पहुंची, दो युवक अमित यादव और मिथिलेश यादव, पिता प्रमेश्वर यादव, ग्राम- अनदामा ने अपनी बुलेट सड़क पर खड़ी कर दी। हॉर्न पर प्रतिक्रिया शून्य रही। जैसे जानबूझ कर रोकने का इंतजाम हो। जब डॉक्टर ने कार रोकी, तो दोनों युवक खिड़कियों पर चढ़ आए। अमित यादव बोला "तुम बहुत कमाते हो, हमें भी खाने-पीने को चाहिए। ₹10,000 दो, वरना अंजाम भुगतना पड़ेगा।" डॉक्टर के विरोध करने पर दोनों ने लोहे की रॉड से कार पर हमला कर दिया, शीशा तोड़ा, हैंडल उखाड़ा और डॉक्टर को खींचकर कार से नीचे गिरा दिया। फिर जो हुआ, वो किसी फिल्मी दृश्य जैसा नहीं, बल्कि समाज की हकीकत जैसा भयावह था।
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अमित यादव ने कमर से पिस्तौल निकाली और डॉक्टर के सर पर तान दी। फिर बट से उनके सिर, गाल और कंधे पर वार किया। मिथिलेश यादव ने लोहे की रॉड से उनकी दाहिनी आंख पर जानलेवा वार किया। लहूलुहान डॉक्टर ज़मीन पर गिर पड़े। तभी वे उनका मोबाइल (Samsung), जिसमें दो सिम (Airtel-9006484001 और Vodafone-9155128888), पर्स में ₹12,000 नकद और एक बैग जिसमें खुद और उनकी पत्नी के मूल शैक्षणिक प्रमाण पत्र, पासबुक, चेक बुक थे, छीन कर फरार हो गए।
उपचार और जीवन की जद्दोजहद: गंभीर स्थिति में डॉक्टर किसी तरह नया टोला हुलास भागे, 112 पर कॉल किया। पुलिस आई। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, केवटी से डॉक्टर को DMCH रेफर किया गया, जहां डॉक्टर की जान किसी तरह बच सकी।
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हमने किया पुलिस से संवाद: जब हमने इस गंभीर वारदात की पुष्टि हेतु केवटी थाना के सरकारी नंबर पर संपर्क साधा, तो कॉल एक महिला पुलिसकर्मी ने रिसीव किया। हमने जब उनसे एफआईआर और कार्रवाई की स्थिति पूछी तो उन्होंने संक्षिप्त उत्तर में कहा "एफआईआर हो गया है, कार्यवाई चल रही है।" जब हमने उनका नाम जानना चाहा, तो उन्होंने उसे बताना उचित नहीं समझा और फोन काट दिया।
प्रश्न जो गूंज रहे हैं: क्या आज दरभंगा में डॉक्टर होना भी एक खतरा बन चुका है?
क्या अपराधियों का दुस्साहस इतना बढ़ गया है कि वे खुलेआम डॉक्टर से पिस्तौल की नोक पर रंगदारी माँगने लगे हैं?
जब पीड़ित एफआईआर करता है, तब भी थानों में संवाद की गोपनीयता क्यों?
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पुलिसकर्मी का नाम पूछना क्या अपराध है?
कानून के नाम पर खामोशी: यह घटना न सिर्फ़ एक डॉक्टर पर हमले की है, बल्कि कानून के सामने अपराधियों के सीना तान कर खड़े हो जाने की चुनौती है। एक पढ़ा-लिखा, समाजसेवी डॉक्टर जिसकी भूमिका कोरोना काल से लेकर अब तक दरभंगा के स्वास्थ्य जगत में सराही जाती रही है आज एक घायल फरियादी बन कर थाना केवटी की चुप्पी और अपराधियों की अट्टहास के बीच फंसा पड़ा है।
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इस पूरे प्रकरण ने एक बड़ा सवाल समाज, पुलिस और शासन व्यवस्था के सामने लाकर रख दिया है "क्या पिस्तौल और पावर अब पुलिस और कानून से बड़ा हो चला है?"
"क्या एक डॉक्टर की चीखें भी अब सिर्फ एफआईआर की फाइलों में दब कर रह जाएंगी?"
अब ये जनता तय करे कि किसकी खामोशी ज्यादा घातक है पिस्तौल की या पुलिस की।
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पढ़िए हमारी विशेष रिपोर्ट "एक डॉक्टर की आंख से टपकते लहू की पुकार" जाँच का अपडेट हम आगे भी आप तक पहुँचाते रहेंगे।