जब वर्दी की साख दांव पर थी, तब हरिकिशोर राय बने न्याय की आवाज़: रक्सौल के दलदल में सड़ रही व्यवस्था को चीरता एक साहसी डीआईजी, जिसने दलालों से गिरे डीएसपी की सच्चाई को बेनकाब कर दी
जब देश की सरहदें रक्सौल की मिट्टी को चूमती हैं, तब देशभक्ति का भाव केवल गीतों तक सीमित नहीं रहता, वह वर्दियों के भीतर भी सांस लेने लगता है। पर क्या हो जब वही वर्दी दलालों की जेबों में सिकुड़ जाए, और ईमानदारी की परिभाषा केवल भाषणों का विषय बनकर रह जाए? यह कहानी है एक ऐसे वर्दीधारी की, जिसने रक्षक की भूमिका से भटककर शोषण का सौदागर बनने की हिमाकत की और एक ऐसे अधिकारी की, जिसने तमाम दबावों, गठजोड़ों और तिलिस्मी चुप्पियों को तोड़ते हुए न्याय का परचम थाम लिया. पढ़े पुरी खबर.......

रक्सौल: जब देश की सरहदें रक्सौल की मिट्टी को चूमती हैं, तब देशभक्ति का भाव केवल गीतों तक सीमित नहीं रहता, वह वर्दियों के भीतर भी सांस लेने लगता है। पर क्या हो जब वही वर्दी दलालों की जेबों में सिकुड़ जाए, और ईमानदारी की परिभाषा केवल भाषणों का विषय बनकर रह जाए? यह कहानी है एक ऐसे वर्दीधारी की, जिसने रक्षक की भूमिका से भटककर शोषण का सौदागर बनने की हिमाकत की और एक ऐसे अधिकारी की, जिसने तमाम दबावों, गठजोड़ों और तिलिस्मी चुप्पियों को तोड़ते हुए न्याय का परचम थाम लिया।
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व्यापारी की व्यथा: एक टुन्नू की पुकार, एक टुकड़ा सच का: कहानी की शुरुआत होती है रक्सौल के उस गली से जहाँ कपड़े की दुकान पर बैठा टुन्नू प्रसाद नामक व्यापारी, रोज़ की तरह कपड़े मोड़ रहा था। उसे क्या पता था कि जिनके लिए वह कपड़ा उधार दे रहा है, वही उसे नंगा करने वाले हैं कानून के उन ठेकेदारों के हाथों, जिनकी वर्दी पर लगे सितारे भीतर की सड़ांध को ढंक नहीं पाए।
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टुन्नू ने डीएसपी धीरेंद्र कुमार और रक्सौल थानाध्यक्ष राजीव नंदन सिन्हा पर आरोप लगाया कि उनसे ₹1.80 लाख का कपड़ा उधार लिया गया, और जब भुगतान माँगा गया, तो अपहरण के झूठे केस में फंसा दिया गया। वह न्याय की गुहार लेकर डीआईजी हरिकिशोर राय के द्वार पहुँचा। और यहीं से शुरू होती है सच्चाई की वह तहकीकात, जिसने पूरे विभाग को झकझोर कर रख दिया।
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डीआईजी हरिकिशोर राय: साहस का साक्षात्कार: हरिकिशोर राय उन अफसरों में हैं जो 'सुनो सबकी, करो अपने विवेक की' के सिद्धांत पर चलते हैं। उन्होंने टुन्नू के आवेदन को न केवल गंभीरता से लिया, बल्कि पूरे मामले की जांच अपने स्तर से शुरू की। जिस सूक्ष्मता और साहस से उन्होंने भ्रष्टाचार की परतें उधेड़ीं, वह प्रशंसनीय ही नहीं, बल्कि अनुकरणीय भी है।
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जांच की धूप में झुलसता डीएसपी: जांच के दौरान डीआईजी को ऐसे तथ्य मिले, जिनसे भ्रष्टाचार की बू नहीं, बल्कि उसका दुर्गंध निकलने लगा। डीएसपी धीरेंद्र कुमार के संपर्क में रहने वाले दो कथित दलालों की मोबाइल लोकेशन लगातार डीएसपी कार्यालय के आसपास पाई गई। डीएसपी ने गंभीर अपराधों के मामलों में बिना स्थल निरीक्षण के केस पर्यवेक्षण किया। डीएसपी कार्यालय में तैनात सिपाही नीरज कुमार की भूमिका भी संदेह के घेरे में आई। डीएसपी द्वारा मोतीहारी में की गई संदिग्ध जमीन खरीद की भी जांच शुरू हुई। यानी एक अफसर केवल अपनी कलम नहीं, अपनी आत्मा भी गिरवी रख चुका था।
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कार्रवाई की श्रृंखला: व्यवस्था की सुगबुगाती आत्मा: जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, पुलिस महकमे में उथल-पुथल मचने लगी। डीआईजी की रिपोर्ट के आधार पर: रक्सौल थानाध्यक्ष और चौकीदार को निलंबित कर दिया गया। डीएसपी के करीबी कथित दलाल को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। डीएसपी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की संस्तुति की गई। सिपाही नीरज कुमार के विरुद्ध जांच के निर्देश दिए गए। यह कार्रवाई किसी तात्कालिक दबाव का परिणाम नहीं थी, बल्कि यह उस आस्था का पुनर्जन्म था जिसे जनता 'पुलिस' शब्द से जोड़ती है।
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पर सवाल अभी बाकी हैं... क्या यह कार्रवाई अंतिम है? क्या सस्पेंशन और विभागीय कार्रवाई से उस व्यापारी का आत्मसम्मान लौट आएगा? क्या जिन हाथों ने झूठा केस गढ़ा, उन्हें सजा मिलेगी? इन सवालों का उत्तर भविष्य के गर्भ में है। लेकिन इतना तय है कि अगर हर जिले में हरिकिशोर राय जैसे अफसर होंगे, तो यह व्यवस्था केवल 'संविधान' की किताबों में नहीं, आम जन के जीवन में भी दिखाई देगी।
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सड़ांध से सर्जरी तक: रक्सौल की यह घटना हमें बताती है कि भ्रष्टाचार कोई अचानक उपजा कीट नहीं, यह वर्षों से खाद-पानी पाकर बढ़ा एक 'घाव' है जो केवल औपचारिक मरहम से नहीं, ऑपरेशन से ठीक होगा। डीआईजी राय ने पहला चीरा जरूर लगाया है, लेकिन शल्य चिकित्सा तब पूरी मानी जाएगी जब ऐसे डीएसपी या थानेदार दोबारा वर्दी पहनने लायक न रहें। और टुन्नू जैसे व्यापारी? वे प्रतीक हैं उस आम जन के जो व्यवस्था से डरते नहीं, उसे जगाने की हिम्मत रखते हैं।