लहेरियासराय की गलियों में घूमता था जो बेखौफ़... वही ललन साह पुणे के खौफ़ का राजा निकला! अलंकार ज्वेलर्स लूटकांड की मेरी रिपोर्ट ने जो कहा था, वो सच निकला!
वर्ष 2020। महामारी की उथल-पुथल के बीच एक खबर ने दरभंगा की शांत दीवारों को चीर डाला था शहर के बीचोबीच, दरभंगा टावर के पास, अलंकार ज्वेलर्स में 5 करोड़ से अधिक की सोना और हीरे की लूट ने अपराध की दुनिया में हलचल मचा दी थी। आज, पाँच वर्षों के बाद, एक बार फिर उसी गली के दरवाज़े पर पुलिस की दस्तक हुई है इस बार महाराष्ट्र से आई पुलिस टीम ने बेलवागंज मोहल्ले में दबिश दी और एक ऐसे शख़्स को गिरफ्तार किया जिसे इतिहास भुला देना चाहता था... पर उसने अपराध की राख में फिर से अपनी पहचान खोज ली. पढ़े पुरी खबर........

दरभंगा: वर्ष 2020 महामारी की उथल-पुथल के बीच एक खबर ने दरभंगा की शांत दीवारों को चीर डाला था शहर के बीचोबीच, दरभंगा टावर के पास, अलंकार ज्वेलर्स में 5 करोड़ से अधिक की सोना और हीरे की लूट ने अपराध की दुनिया में हलचल मचा दी थी। आज, पाँच वर्षों के बाद, एक बार फिर उसी गली के दरवाज़े पर पुलिस की दस्तक हुई है इस बार महाराष्ट्र से आई पुलिस टीम ने बेलवागंज मोहल्ले में दबिश दी और एक ऐसे शख़्स को गिरफ्तार किया जिसे इतिहास भुला देना चाहता था... पर उसने अपराध की राख में फिर से अपनी पहचान खोज ली।
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बेलवागंज में एक 'शांत आदमी' पर पुणे में एक संदिग्ध चोर: गुरुवार की सुबह थी। बेलवागंज मोहल्ले की गलियों में आम दिनों की तरह ही लोग अपने काम में व्यस्त थे। पर अचानक दो गाड़ियों के रुकने से सबकी नज़रें ठहर गईं। महाराष्ट्र से आई पुलिस टीम, लहेरियासराय थाना की टीम के साथ चुपचाप एक मकान में दाखिल हुई और कुछ ही मिनटों में ललन साह नामक व्यक्ति को पकड़ कर बाहर निकाला गया। पहचान हुई खगड़िया जिले के चौथम गांव का मूल निवासी, वर्तमान में बेगूसराय के बखरी थाना क्षेत्र के आदर्श नगर में रहने वाला ललन साह, पिता स्व. शिवजी साह।
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लोगों ने देखा कोई हंगामा नहीं, कोई बहस नहीं। न मीडिया को बुलाया गया, न कोई औपचारिक बयान दिया गया। जैसे सब कुछ पहले से तय था, सिर्फ़ अदालत की मोहर बाकी थी।
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पुणे से दरभंगा तक अपराध की कड़ी टेक्निकल सर्विलांस से गिरफ्तारी: पुणे रेलवे स्टेशन से जुड़े एक ताजा सोना चोरी कांड में पुणे रेलवे पुलिस पहले ही एक आरोपी को गिरफ्तार कर चुकी थी। सूत्रों का कहना है कि टेक्निकल सेल की निगरानी में जब उसके कॉल डिटेल्स और लोकेशन रिकॉर्ड खंगाले गए, तब एक नया नाम उभरा ललन साह। इलेक्ट्रॉनिक सबूत, मोबाइल ट्रेसिंग, पुराने आपराधिक रिकॉर्ड्स और नेटवर्क विश्लेषण के आधार पर तय किया गया कि ललन दरभंगा में है। फिर क्या था एक टीम गठित की गई और बिना किसी लोकल शोर-शराबे के गुरुवार को वह टीम दरभंगा में उतरी। गिरफ्तारी के बाद, दरभंगा न्यायालय से अनुमति ली गई और आरोपी को पुणे लेकर चला गया।
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2020 का लूटकांड: दरभंगा में सोने की सबसे बड़ी लूट की गूंज: वापस लौटते हैं वर्ष 2020 की उस दोपहरी में, जब दरभंगा टावर के पास एक अलंकार ज्वेलर्स नाम के आउटलेट से 5 करोड़ से अधिक की लूट हुई थी। योजना सटीक थी, और क्रूरता भी। बंदूक की नोंक पर लूटे गए सोने-हीरे को लेकर आरोपी फरार हुए, और महीनों चली जांच में 32 से अधिक आरोपी गिरफ्तार हुए।
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इन्हीं में एक नाम था ललन साह, जिस पर आरोप था कि उसने एक किलो सोना गलवाया था। उस वक़्त वह करीब 18 महीने तक जेल में रहा, फिर जमानत पर बाहर आया और गायब हो गया। दरभंगा पुलिस की फाइलों में ललन का नाम धीरे-धीरे धुंधला पड़ गया पर अपराध के दस्तावेज़ों में उसका सिलसिला जारी रहा।
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दरभंगा पुलिस की चुप्पी सिर्फ़ सहयोग या कुछ और?
इस पूरी कार्रवाई के दौरान लहेरियासराय थाना पुलिस की भूमिका "सहायता" तक सीमित रही। स्थानीय मीडिया द्वारा पूछे जाने पर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई। महाराष्ट्र पुलिस ने भी “मामला संवेदनशील है” कहकर चुप्पी साध ली। क्या वाकई यह सिर्फ़ एक सहयोगात्मक गिरफ्तारी थी? या दरभंगा पुलिस भी जानती थी कि अतीत का कोई पन्ना अभी अधूरा है? क्या सोना लूटकांड का कोई छोर आज भी मिथिला में छिपा बैठा है?
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सवालों की फेहरिस्त और जवाबों का इंतजार: क्या ललन पुणे की नई चोरी का भी मास्टरमाइंड है?
क्या वह अपने पुराने नेटवर्क के जरिए सक्रिय था?
दरभंगा पुलिस की ओर से कोई पूछताछ क्यों नहीं हुई?
क्या लूट के सोने का कुछ हिस्सा अब भी बाजार में घुम रहा है?
और क्या दरभंगा के पुराने केस में और भी गिरफ्तारी होनी बाकी है?
इन सभी सवालों का जवाब फिलहाल जांच एजेंसियों के पास है, और पत्रकारों की आंखें अब महाराष्ट्र की ओर टिकी हुई हैं।
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अपराध की नीयत और समाज की चुप्पी एक चिंतन: ललन साह जैसा शख्स जो जेल गया, फिर बाहर आकर शांत जीवन जीने का अभिनय करता रहा अगर दोबारा उसी रास्ते पर गया, तो सवाल उठता है कि सुधार की कौन सी व्यवस्था असफल रही? क्या हमारे जेल, हमारी जमानत प्रक्रिया, और समाज का तंत्र एक अपराधी को दूसरा मौका देने के बजाय उसे फिर उसी गर्त में धकेलते हैं? क्या हम अपराधियों के पुनर्वास की प्रक्रिया को सिर्फ़ काग़ज़ी मानते हैं?
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सोना सिर्फ़ धातु नहीं, कभी-कभी यह नीयत की भी परीक्षा है: ललन साह अब पुणे की पुलिस हिरासत में है। वहां की अदालतें तय करेंगी कि वह दोषी है या नहीं। लेकिन दरभंगा की ज़मीन पर एक सवाल तैरता रहेगा क्या एक बार सोना चुराने वाला दोबारा वही करेगा? या हम ही हैं जो किसी को सुधारने का मौका ही नहीं देते?अपराध केवल कानून का मामला नहीं है, यह समाज के अंदर की दरारों का आईना भी है। और जब तक हम उन दरारों की मरम्मत नहीं करेंगे, तब तक ऐसे ललन पैदा होते रहेंगे कभी दरभंगा में, कभी पुणे में... और हम सिर्फ़ रिपोर्ट लिखते रह जाएंगे।