“हथकड़ी टूटी नहीं थी, लेकिन शासन की नींव दरक गई थी बेनीपुर उपकारा से सूरज की दूसरी फरारी पर सनसनीख़ेज़ रिपोर्ट”

रविवार की सुबह दरभंगा के डीएमसीएच अस्पताल में कुछ नहीं टूटा ना दरवाज़ा, ना हथकड़ी, ना किसी पुलिसकर्मी की नींद… फिर भी एक विचाराधीन बंदी—सूरज कुमार—सरकार के सुरक्षा तंत्र को मुँह चिढ़ाते हुए ICU के शौचालय से फरार हो गया। यह वही सूरज है जो पहले भी 2021 में पीएमसीएच से फरार हो चुका है। सवाल यह नहीं कि वह भागा—सवाल यह है कि वो फिर से कैसे भागा?.... पढ़े पुरी खबर.......

“हथकड़ी टूटी नहीं थी, लेकिन शासन की नींव दरक गई थी बेनीपुर उपकारा से सूरज की दूसरी फरारी पर सनसनीख़ेज़ रिपोर्ट”
“हथकड़ी टूटी नहीं थी, लेकिन शासन की नींव दरक गई थी बेनीपुर उपकारा से सूरज की दूसरी फरारी पर सनसनीख़ेज़ रिपोर्ट”

दरभंगा/बेनीपुर: रविवार की सुबह दरभंगा के डीएमसीएच अस्पताल में कुछ नहीं टूटा ना दरवाज़ा, ना हथकड़ी, ना किसी पुलिसकर्मी की नींद… फिर भी एक विचाराधीन बंदी—सूरज कुमार—सरकार के सुरक्षा तंत्र को मुँह चिढ़ाते हुए ICU के शौचालय से फरार हो गया। यह वही सूरज है जो पहले भी 2021 में पीएमसीएच से फरार हो चुका है। सवाल यह नहीं कि वह भागा सवाल यह है कि वो फिर से कैसे भागा?

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सूरज कुमार: एक अपराधी या सरकार के भीतर छिपा एक रहस्य?

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मछैता गांव का निवासी सूरज कुमार, घनश्यामपुर थाना क्षेत्र के दो संगीन मामलों में नामजद आरोपी है। एक ऐसा नाम, जिसे जेल की दीवारें पहचान चुकी हैं और अदालतें याद कर चुकी हैं। 2021 में वो पीएमसीएच के कैदी वार्ड से फरार हुआ था, और अब 2025 में डीएमसीएच के ICU से भी निकल भागा। क्या यह महज़ संयोग है? या फिर किसी सोची-समझी मिलीभगत का हिस्सा?

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डीएमसीएच का ICU: अस्पताल नहीं, अफसरशाही की असहायता का आईना शनिवार को सूरज को पेट दर्द की शिकायत के बाद डीएमसीएच के ICU में भर्ती कराया गया। तीन पुलिसकर्मी उसकी निगरानी में तैनात थे। एक तरफ बीमारी का नाटक, दूसरी तरफ सिस्टम का भरोसा। रविवार की सुबह वह शौचालय जाने की बात कहता है… और उसके बाद सूरज नहीं दिखता। ना गोली चली, ना चिल्लाहट हुई, ना ज़मीन टूटी, लेकिन एक कैदी… हथकड़ी समेत… ‘ग़ायब’ हो गया।

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बेनीपुर उपकारा: जहाँ कैदी अभिनय करता है और वर्दी तमाशबीन बनती है जेल सूत्रों की मानें तो सूरज हमेशा ‘विक्षिप्त’ की एक्टिंग करता था। कभी अगरबत्ती स्टैंड से पेट और गला काटकर आत्महत्या का नाटक… कभी कैदियों से बेवजह झगड़ा… उसका व्यवहार किसी मनोरोगी का नहीं, बल्कि एक चालाक अभिनेता का था जो प्रशासन की सहानुभूति बटोरकर अस्पताल की चारदीवारी तक पहुँच सके।

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और वही हुआ तीन पुलिसकर्मी, एक अपराधी और जीरो ज़िम्मेदारी: सवाल अब इन तीन पुलिसकर्मियों पर उठता है। जब सूरज फरार हुआ, तो क्या वे ड्यूटी पर थे? क्या कोई छुट्टी या बहाना बनाया गया था? क्या कोई लेन-देन की बू इस पूरी घटना में है?

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CCTV खामोश है। जवाबदेही शून्य है। और फरार सूरज कुमार अब फिर आज़ाद हवा में साँस ले रहा है।

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ये लापरवाही नहीं, ये एक तरह की आपराधिक साठगांठ है।

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अब जनता पूछेगी, प्रशासन को जवाब देना होगा SSP दरभंगा किसे ज़िम्मेदार मानेंगे? जेल अधीक्षक की भूमिका क्या थी? क्या उन तीन पुलिसकर्मियों को तत्काल निलंबित किया जाएगा? क्या बिहार सरकार इस घटना को सामान्य मानकर फाइल बंद कर देगी?

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अगर जवाब नहीं मिला, तो यह घटना आने वाले अपराधों की जमीन तैयार करेगी।

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सूरज भागा नहीं है… उसने इस सिस्टम की तिजोरी से भरोसा चुरा लिया है: “यह फरारी नहीं थी – यह उस सरकार का परिहास था जो एक बंदी को ढंग से पकड़ भी नहीं सकती।” यह कैदी नहीं भागा – यह प्रशासन की आत्मा को कूड़े में फेंककर चला गया।” “वह हथकड़ी पहनकर गया, लेकिन हमारी पूरी व्यवस्था को निर्वस्त्र कर गया।