दरभंगा की सियासी फिजाओं में गिरा एक और पत्ता: अलीनगर से विधायक मिश्री लाल यादव की सदस्यता समाप्त, जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8 और संविधान की गूंज ने किया सत्ता को नतमस्तक
राजनीति में कब कौन गिर जाए, इसका अंदाज़ा लगाना उतना ही कठिन होता है जितना कि किसी टूटते हुए पत्ते को हवा में स्थिर देखना। अलीनगर से विधायक बने मिश्री लाल यादव की सदस्यता समाप्त हो चुकी है। अब वे एक आम आदमी बन चुके हैं, फर्क इतना है कि उनके चारों ओर सुरक्षाकर्मी अब सम्मान से नहीं, कानून की कठोरता में बंधे हैं। जिस विधानसभा में वे कभी गरजते थे, वहां अब उनका नाम केवल नोंद में शेष रह गया है. पढ़े पुरी खबर........

दरभंगा, बिहार। राजनीति में कब कौन गिर जाए, इसका अंदाज़ा लगाना उतना ही कठिन होता है जितना कि किसी टूटते हुए पत्ते को हवा में स्थिर देखना। अलीनगर से विधायक बने मिश्री लाल यादव की सदस्यता समाप्त हो चुकी है। अब वे एक आम आदमी बन चुके हैं, फर्क इतना है कि उनके चारों ओर सुरक्षाकर्मी अब सम्मान से नहीं, कानून की कठोरता में बंधे हैं। जिस विधानसभा में वे कभी गरजते थे, वहां अब उनका नाम केवल नोंद में शेष रह गया है।
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27 मई 2025, तारीख भले ही साधारण लगे, लेकिन यह दिन बिहार की राजनीति के लिए एक और नजीर बन गया। दरभंगा स्थित एमपी/एमएलए कोर्ट ने भाजपा विधायक मिश्री लाल यादव को दो साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई और उसी दिन से उनकी विधानसभा सदस्यता भी समाप्त हो गई। यह फैसला एडीजे-3 सुमन कुमार दिवाकर की अदालत ने सुनाया।
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कानूनी प्रावधान और संवैधानिक धारा की तलवार: जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 और संविधान के अनुच्छेद 191(3) के तहत, यदि किसी विधायक या सांसद को दो वर्ष या उससे अधिक की सजा हो जाती है, तो उसकी सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाती है। यह कानून भले ही संविधान के पन्नों में पुराना हो, पर हर बार इसका असर किसी राजनीतिक पहाड़ को ध्वस्त करता है। मिश्री लाल यादव इसी धारा के शिकार बने। और यह केवल कानून का मामला नहीं था, बल्कि एक लंबे समय से चलते आ रहे जन-आक्रोश और न्याय की प्रतीक्षा का नतीजा था।
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प्रकरण का बीज: एक फरसे की धार से निकला फैसला: 30 जनवरी 2019 को समैला निवासी उमेश मिश्र ने दरभंगा के संबंधित थाना में प्राथमिकी दर्ज कराई थी। उनके अनुसार, मिश्री लाल यादव और उनके सहयोगी सुरेश यादव ने उन्हें घेरकर फरसे से हमला किया और लूटपाट की। यह घटना राजनीति से उठकर सीधे जनता की पीड़ा का स्वर बन गई। पहले निचली अदालत ने तीन महीने की सजा सुनाई थी, लेकिन अपील के बाद उच्च न्यायालय ने इसे बढ़ाकर दो वर्ष कर दिया। अब वही दो साल की सजा विधायक की सियासी नाव को डुबोने के लिए पर्याप्त सिद्ध हुई।
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विधान परिषद से विधानसभा तक: एक राजनीतिक सफर जो अब थम गया: 68 वर्षीय मिश्री लाल यादव का राजनीतिक सफर एक दिलचस्प मगर अब विषादपूर्ण कहानी बन चुका है। वे पहले मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी में थे और उसी टिकट पर 2020 में अलीनगर से विधायक बने। बाद में उन्होंने भाजपा का दामन थामा और सत्तासीन ताकत का हिस्सा बन गए। 2003 से 2009 तक वे विधान परिषद सदस्य भी रह चुके थे। परंतु, आज वही शख्स न्यायालय के आदेश के बाद भारी सुरक्षा घेरे में कोर्ट से बाहर निकलता दिखता है जिसे न कोई कार्यकर्ता “माननीय” कहता है, न कोई मंत्री “साथी”।
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तीसरे गिरे हुए पत्ते: बिहार की राजनीति की नई परंपरा: 2020 से 2025 के कार्यकाल में बिहार ने तीन विधायकों को न्यायालय द्वारा दोषी ठहराते हुए सदस्यता से हाथ धोते देखा है। पहले अनंत सिंह, फिर माले के मनोज मंजिल और अब मिश्री लाल यादव। एक के बाद एक गवाही और सबूतों के बाद अदालतें जिस स्पष्टता से निर्णय सुना रही हैं, वह लोकतंत्र में कानून के पुनर्जागरण की ओर संकेत करता है।
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उपचुनाव की अनिश्चितता और जनता की उदासी: अनंत सिंह की जगह उनकी पत्नी नीलम देवी मोकामा से जीत चुकी हैं। मनोज मंजिल की सीट पर भी उपचुनाव हो चुका है। लेकिन अब जबकि विधानसभा कार्यकाल अंतिम दौर में है, मिश्री लाल यादव की अलीनगर सीट पर उपचुनाव की संभावना लगभग खत्म हो चुकी है। यह उस क्षेत्र के मतदाताओं के लिए एक प्रतिनिधित्वविहीन शून्य है, जहां अब उनके वोट की गूंज विधानसभा तक नहीं पहुंचेगी।
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सवालों की भीड़: क्या यही है राजनीति की नियति: सवाल यह नहीं है कि मिश्री लाल दोषी थे या नहीं क्योंकि अदालत ने अपना निर्णय दे दिया है। सवाल यह है कि क्या राजनीति का स्तर इतना नीचे गिर चुका है कि अब वहां से अपराध और सत्ता का फासला मिट चुका है? क्या यह जरूरी हो गया है कि हर तीसरे विधायक को जनता नहीं, अदालत बाहर करे?
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एक अंतिम दृश्य: जब सत्ता का अहंकार न्याय की चौखट पर सिर झुकाता है: तस्वीरों में मिश्री लाल यादव सफेद कुर्ता-पायजामा और चेकदार गमछे में दिखते हैं। पर अब यह परिधान सत्ता का नहीं, सजायाफ्ता का प्रतीक बन गया है। उनके चेहरे पर लज्जा, क्रोध, पश्चाताप कुछ भी स्पष्ट नहीं। पर जो स्पष्ट है वह यह कि अब वह जनप्रतिनिधि नहीं, बल्कि कानून की दृष्टि में दोषी हैं।उनकी गिरफ़्तारी और सजा न केवल एक व्यक्ति की हार है, बल्कि यह लोकतंत्र की जीत भी है। यह एक सबक है उन सभी जनप्रतिनिधियों के लिए, जो जनसेवा की शपथ लेकर सत्ता के मद में न्याय को कुचलने लगते हैं।
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मिश्री लाल यादव की सदस्यता समाप्त होना एक कानूनी घटना है, पर इसका निहितार्थ कहीं अधिक गहरा और व्यापक है। यह सत्ताधीशों के लिए एक चेतावनी है कि जनता का विश्वास और संविधान की मर्यादा सबसे ऊपर है। राजनीति केवल कुर्सी की दौड़ नहीं, बल्कि जनभावना की जिम्मेदारी है। और जो इस जिम्मेदारी से मुंह मोड़ेगा, उसे कानून की अदालत से होकर जनता की अदालत में खड़ा होना ही पड़ेगा।