Darbhanga in Deep Mourning: माउंट समर स्कूल के बाद अब पर्यवेक्षण गृह में लटका मासूम सात महीने में तीसरी मौत, और सिस्टम अब भी ‘Investigation Mode’ में सो रहा है… आखिर इस शहर को किसकी नज़र लग गई है....पढ़ें हमारी ये Exclusive Report, जो खोलती है दरभंगा की सड़ती हुई व्यवस्था और मौन प्रशासन का पूरा सच!

कभी सरस्वती की नगरी कहे जाने वाला यह शहर, अब मौत और रहस्यों की नगरी बनता जा रहा है। कभी किसी स्कूल के हॉस्टल से मासूम की लाश मिलती है, तो कभी पर्यवेक्षण गृह से नाबालिग का शव लटकता मिलता है। सवाल उठता है दरभंगा, तू आखिर कहाँ जा रहा है? तेरी मिट्टी में ये मातम कैसे उतर आया? शनिवार की सुबह दरभंगा के पर्यवेक्षण गृह से आई खबर ने पूरे प्रशासनिक महकमे को हिला दिया। सिर्फ़ 16 साल का भरत दास, जो ज़िंदगी की पहली गलती पर “सुधार गृह” में भेजा गया था, आज उसी सुधार गृह की दीवार से लटकता मिला. पढ़े पूरी खबर......

Darbhanga in Deep Mourning: माउंट समर स्कूल के बाद अब पर्यवेक्षण गृह में लटका मासूम सात महीने में तीसरी मौत, और सिस्टम अब भी ‘Investigation Mode’ में सो रहा है… आखिर इस शहर को किसकी नज़र लग गई है....पढ़ें हमारी ये Exclusive Report, जो खोलती है दरभंगा की सड़ती हुई व्यवस्था और मौन प्रशासन का पूरा सच!
Darbhanga in Deep Mourning: माउंट समर स्कूल के बाद अब पर्यवेक्षण गृह में लटका मासूम सात महीने में तीसरी मौत, और सिस्टम अब भी ‘Investigation Mode’ में सो रहा है… आखिर इस शहर को किसकी नज़र लग गई है....पढ़ें हमारी ये Exclusive Report, जो खोलती है दरभंगा की सड़ती हुई व्यवस्था और मौन प्रशासन का पूरा सच!

दरभंगा। कभी सरस्वती की नगरी कहे जाने वाला यह शहर, अब मौत और रहस्यों की नगरी बनता जा रहा है। कभी किसी स्कूल के हॉस्टल से मासूम की लाश मिलती है, तो कभी पर्यवेक्षण गृह से नाबालिग का शव लटकता मिलता है। सवाल उठता है दरभंगा, तू आखिर कहाँ जा रहा है? तेरी मिट्टी में ये मातम कैसे उतर आया? शनिवार की सुबह दरभंगा के पर्यवेक्षण गृह से आई खबर ने पूरे प्रशासनिक महकमे को हिला दिया। सिर्फ़ 16 साल का भरत दास, जो ज़िंदगी की पहली गलती पर “सुधार गृह” में भेजा गया था, आज उसी सुधार गृह की दीवार से लटकता मिला।

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“सुधार गृह” या “मौत का घर”?

घटना की सूचना मिलते ही डीएम कौशल कुमार और एसएसपी जगुनाथ रेड्डी जलारेड्डी मौके पर पहुंचे।एफएसएल की टीम ने हर साक्ष्य जुटाया, पर सवाल वही आख़िर नाबालिग बच्चे की जान कैसे गई? क्या उसने खुद फांसी लगाई, या किसी ने उसकी आवाज़ हमेशा के लिए बंद कर दी? भरत का शव जब बाथरूम से बरामद हुआ, तो वहां मौजूद अन्य किशोरों की आँखों में सिर्फ़ भय था। वो भय जो शब्दों में नहीं, बल्कि सन्नाटे में गूंजता है। जिस संस्थान में बच्चों को सुधरना था, वहां मौतें सुधरने लगी हैं।

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ग़ुस्से से गूंजा दरभंगा-समस्तीपुर मार्ग: भरत की मौत की ख़बर आग की तरह फैली। लोग सड़कों पर उतर आए, दरभंगा-समस्तीपुर मार्ग पर जाम लगा दिया। टायरों में आग लगी, आँखों में आक्रोश था, और होंठों पर सवाल "अगर यह आत्महत्या है, तो पर्यवेक्षण गृह के दरवाज़े इतने बंद क्यों हैं?" परिजनों का कहना है कि शुक्रवार को ही भरत से मुलाकात हुई थी। वह बिल्कुल ठीक था। “अगर उसे मरना ही था, तो मुस्कुराकर विदा क्यों किया?” पिता सकलदेव दास की टूटी आवाज़ अब पूरे मिथिला की चीख बन गई है।

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सात महीने में तीन मौतें, पर सिस्टम मौन!

सिर्फ़ भरत नहीं, इससे पहले भी दरभंगा पर्यवेक्षण गृह तीन बार खून से रंग चुका है। 12 अप्रैल को अमरजीत कुमार, 4 अगस्त को दिलखुश चौपाल, और अब 11 अक्टूबर को भरत दास। तीनों किशोर, तीनों मौतें, और हर बार जांच की वही औपचारिकता। कागज़ पर रिपोर्ट, मीडिया में बयान, और फिर सन्नाटा... क्या यह संयोग है या सुनियोजित लापरवाही? क्या इस गृह की दीवारें अब मौत की आदी हो चुकी हैं?

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“कश्यप” की याद जब स्कूल बना था मौत का मैदान: याद कीजिए, कुछ ही दिन पहले दरभंगा के प्रतिष्ठित माउंट समर स्कूल में भी एक मासूम छात्र कश्यप का शव हॉस्टल में मिला था। उस वक्त भी प्रशासन की गाड़ियाँ आईं, कैमरे चमके, बयान दिए गए, पर कश्यप की मौत भी रहस्य बनकर फाइलों में गुम हो गई। अब भरत की मौत भी उसी रहस्य की अगली कड़ी बनती जा रही है।लगता है, इस शहर में अब मौतों का “पैटर्न” बन चुका है कभी स्कूल में, कभी जेल में, कभी पर्यवेक्षण गृह में...

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दरभंगा की आत्मा पर सवाल: कभी विद्यानगर कहलाने वाला दरभंगा अब सवालों का शहर बन गया है। यह वही धरती है जहाँ संस्कृत की गूंज हुआ करती थी, जहाँ कवि विद्यापति के गीतों से हवा महकती थी। पर अब वही दरभंगा मातम में डूबा है। हर कुछ महीनों पर किसी न किसी माँ की गोद उजड़ जाती है। हर दीवार पर कोई न कोई लटकता हुआ “क्यों?” छूट जाता है। क्या प्रशासन की नज़र कमजोर है, या किसी और की नज़र इस शहर पर भारी पड़ गई है? आख़िर दरभंगा को किसकी नज़र लग गई है... दरभंगा के पर्यवेक्षण गृह में तीन मौतें... माउंट समर स्कूल के हॉस्टल में एक मौत... ये महज़ आंकड़े नहीं हैं, ये एक शहर की खोई हुई संवेदनाओं का हिसाब है। जब तक इन मौतों का सच सामने नहीं आएगा, हर भरत, हर कश्यप, हर दिलखुश इस शहर की सड़कों पर न्याय मांगते रहेंगे और दरभंगा का आकाश पूछता रहेगा "क्या इस शहर में अब ज़िंदा रहना भी जुर्म बन गया है?"