दरभंगा की वो माँ, जो सिर्फ़ सब्ज़ी लेने निकली थी मगर लौटते वक्त उसकी गोदी में भरोसे की लाश थी: लहेरियासराय के बेलवागंज की सावित्री देवी से 'प्रणाम' कहकर छल करने वालों पर 'मिथिला जन जन की आवाज' की रिपोर्ट ने खोले शहर में मासूमियत को निगलती चालबाज़ी के राज़

कभी लूट हथियारों के बल पर होती थी, अब लूट मानसिकता के धारदार किनारों से की जाती है। कभी डर दिखाकर छीना जाता था, अब झुककर प्रणाम करके लूटा जा रहा है। बदलते समय में अपराध की शैली भी बदल गई है। दरभंगा की गलियां अब अपराध के इन नए प्रयोगों की गवाह बन रही हैं। यह कहानी लहेरियासराय थाना क्षेत्र के बेलवागंज मोहल्ले में हुई एक ऐसी घटना पर केंद्रित है जहाँ एक वृद्धा के गले से उसकी जिंदगी भर की कमाई उसकी आस्था, उसकी यादें, और उसका गर्व एक सादे कागज़ के बदले में चुरा लिया गया. पढ़े पुरी खबर........

दरभंगा की वो माँ, जो सिर्फ़ सब्ज़ी लेने निकली थी मगर लौटते वक्त उसकी गोदी में भरोसे की लाश थी: लहेरियासराय के बेलवागंज की सावित्री देवी से 'प्रणाम' कहकर छल करने वालों पर 'मिथिला जन जन की आवाज' की रिपोर्ट ने खोले शहर में मासूमियत को निगलती चालबाज़ी के राज़
दरभंगा की वो माँ, जो सिर्फ़ सब्ज़ी लेने निकली थी मगर लौटते वक्त उसकी गोदी में भरोसे की लाश थी: लहेरियासराय के बेलवागंज की सावित्री देवी से 'प्रणाम' कहकर छल करने वालों पर 'मिथिला जन जन की आवाज' की रिपोर्ट ने खोले शहर में मासूमियत को निगलती चालबाज़ी के राज़

दरभंगा: कभी लूट हथियारों के बल पर होती थी, अब लूट मानसिकता के धारदार किनारों से की जाती है। कभी डर दिखाकर छीना जाता था, अब झुककर प्रणाम करके लूटा जा रहा है। बदलते समय में अपराध की शैली भी बदल गई है। दरभंगा की गलियां अब अपराध के इन नए प्रयोगों की गवाह बन रही हैं। यह कहानी लहेरियासराय थाना क्षेत्र के बेलवागंज मोहल्ले में हुई एक ऐसी घटना पर केंद्रित है जहाँ एक वृद्धा के गले से उसकी जिंदगी भर की कमाई उसकी आस्था, उसकी यादें, और उसका गर्व एक सादे कागज़ के बदले में चुरा लिया गया। यह सिर्फ चोरी नहीं थी, यह विश्वास पर वार था, यह उस संस्कृति पर प्रहार था जहाँ ‘प्रणाम’ एक पवित्र परंपरा मानी जाती रही है।

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घटना की सुबह: एक सामान्य दिन, असामान्य मोड़ के साथ: दिनांक: बुधवार। समय: सुबह 8:25। स्थान: बेलवागंज, दरभंगा। 75 वर्षीय सावित्री देवी, स्व. रामचंद्र साह की पत्नी, रोज की तरह घर से निकलकर सब्जी लेकर लौट रही थीं। यह वही रास्ता था, वही मोहल्ला, जहां हर सुबह जीवन अपनी सामान्य गति से बहता था।पर उस दिन, एक मोड़ पर समय ने करवट बदली। एक निजी अस्पताल के पास जैसे ही सावित्री देवी पहुंचीं, दो व्यक्ति बाइक से उतरे। उनमें से एक ने झुककर हाथ जोड़े, जैसे किसी पुत्र ने अपनी मां को प्रणाम किया हो। इस भावभंगिमा में वह आत्मीयता थी जो आंखों से छलक पड़ती है। वृद्धा ठिठकी।

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"माँजी, प्रणाम। साहब बुला रहे हैं। चेकिंग चल रही है। बड़ी घटना घटी है शहर में। सबको हिदायत दी गई है कि गहने घर पर रखें।"

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किसी साधारण महिला के लिए ये शब्द कोई विशेष महत्व नहीं रखते, पर एक बुजुर्ग के लिए, जिसने जीवन के सत्तर पार किए हों, यह एक आदेश जैसा लगता है खासकर जब सामने खड़े लोग आत्मीयता के मुखौटे में सत्य की तरह बोले।

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ठगी की विधि: आस्था, अभिनय और अदला-बदली का मनोवैज्ञानिक खेल: जिस चतुराई से इस घटना को अंजाम दिया गया, वह सिर्फ लूट नहीं, एक सुनियोजित ‘मनोवैज्ञानिक प्रयोग’ था। लुटेरों ने वृद्धा को कहा कि सारे गहने एक सादे कागज़ पर उतार लें और उसे अपने पर्स में रख लें ताकि पुलिस की चेकिंग में कोई परेशानी न हो। इतना ही नहीं, उनके साथ एक और व्यक्ति था जो वृद्धा के सामने अपना भी चेन निकालकर उसी कागज़ पर रखने का नाटक करता है। वृद्धा को यह लगा कि जब यह व्यक्ति भी ऐसा कर रहा है, तो शायद सच में कोई बड़ी बात हुई है। वह अपने गले से डेढ़ लाख का सोने का चेन और 30 हजार की अंगूठी उतारकर उस सादे कागज़ पर रख देती हैं। कुछ ही क्षणों में, कागज़ बदला जाता है। वृद्धा को नकली चेन और नकली अंगूठी वाला कागज़ दे दिया जाता है। और असली जेवर लेकर तीनों ‘कलाकार’ गली की भीड़ में ऐसे गुम हो जाते हैं, जैसे रेत में पानी।

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वृद्धा की पीड़ा: जिंदगी भर की कमाई गई सोना, चुटकी में उड़ गया बेटा... सावित्री देवी, जिन्होंने न जाने कितनी बार अपने गहनों को साफ किया होगा, जो गहने उनके विवाह की स्मृति थे, जो गहने उनके स्व. पति की आखिरी निशानी थे अब बस एक झूठे कागज़ में तब्दील हो चुके हैं। उनकी आंखें अब भी डरी हुई हैं, हाथ कांपते हैं। वे कहती हैं: "एक बेटा बम्बई में है, उसी ने भेजा था ये चेन। अब क्या बताएं उसे? कौन समझेगा इस उम्र में गहना सिर्फ गहना नहीं होता, जीवन की थाती होता है।"

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पुलिस की कार्रवाई: जांच जारी, CCTV के भरोसे उम्मीद: घटना की सूचना मिलते ही लहेरियासराय थाना की पुलिस सक्रिय हुई। थानाध्यक्ष अमित कुमार ने मौके पर पहुंचकर आसपास के सभी सीसीटीवी कैमरों की जांच शुरू करवाई। अब तक की जानकारी के अनुसार, तीनों ठगों की तस्वीरें कुछ फुटेज में आ सकती हैं।

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थानाध्यक्ष ने कहा: "हम जल्द ही आरोपियों की पहचान कर लेंगे। CCTV फुटेज खंगाले जा रहे हैं। महिला का आवेदन लिया गया है।"

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सामाजिक विश्लेषण: जब अपराध संस्कृति की परछाई बन जाए: दरभंगा जैसे शहरों में, जहाँ बुजुर्गों की सामाजिक प्रतिष्ठा अब भी जीवित है, जहाँ ‘प्रणाम’ करना संस्कृति का हिस्सा है वहीं अब यह शब्द ही अपराधियों का हथियार बन गया है। यह घटना केवल एक वृद्धा की लूट नहीं, बल्कि उस सामाजिक विश्वास की भी हत्या है जो पीढ़ियों से बनता रहा है। कभी 'राम-राम', कभी 'जय श्रीराम', कभी 'प्रणाम' ये शब्द अब मासूम नहीं रहे। हमारी संस्कृति की आत्मा जब ठगी का चोला पहन ले, तो केवल पुलिस नहीं, पूरे समाज को चेतने की ज़रूरत है।

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ऐसी घटनाएं पहले भी हुई हैं: एक बढ़ती हुई प्रवृत्ति: दरभंगा में इस प्रकार की घटनाएं पहले भी सामने आई हैं। सामान्यतः बुजुर्ग महिलाएं, अकेली चल रही होती हैं और अपराधी उन्हें किसी सरकारी आदेश, साहब की चेकिंग, या पुलिस के डर से गहने उतारने को कहते हैं।

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2019 में किलाघाट के पास इसी तरह एक वृद्धा को नकली इंस्पेक्टर बनकर ठग लिया गया था। 2022 में कुशेश्वरस्थान में एक महिला को एम्बुलेंस से उतरकर ऐसा ही झांसा देकर ठगा गया था। अब बेलवागंज की घटना ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह कोई संयोग नहीं, बल्कि सुनियोजित योजना है।

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“प्रणाम” अब डराने लगा है, और “कागज़” चुरा लेता है यादें: जब अपराध प्रणाम की मुद्रा में आए, जब भरोसे को सादे कागज़ पर बदला जाए, तो समझिए लूट सिर्फ जेवर की नहीं, संस्कार की भी हो रही है। दरभंगा पुलिस को इस घटना को एक गंभीर चेतावनी मानते हुए, इन गिरोहों पर न सिर्फ कानूनी बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण से कार्रवाई करनी चाहिए। और समाज को भी अब सतर्क होने की ज़रूरत है। क्योंकि अगली बार वो कागज़ आपकी मां के हाथ में हो सकता है।