जब अपहरण हुआ और फिरौती मांगी गई, तब कोतवाली थाना बना मिशन हेडक्वार्टर थानाध्यक्ष राहुल के शौर्य और आशिष कुमार की लेखनी ने रच दिया इतिहास

6 जून की रात दरभंगा में दो मेहनतकश गैस पाइप श्रमिकों का अपहरण एक ऐसी घटना जिसने एक ओर प्रशासनिक सतर्कता की परीक्षा ली, तो दूसरी ओर कोतवाली थानाध्यक्ष राहुल कुमार जैसे अफसर की निर्णायक क्षमता को पूरे राज्य के सामने स्थापित कर दिया। यह सिर्फ दो लोगों की वापसी की कहानी नहीं थी, यह एक ऑपरेशन था पुलिस कार्यशैली के आदर्श मॉडल की पुनर्परिभाषा. पढ़े पुरी खबर.......

जब अपहरण हुआ और फिरौती मांगी गई, तब कोतवाली थाना बना मिशन हेडक्वार्टर थानाध्यक्ष राहुल के शौर्य और आशिष कुमार की लेखनी ने रच दिया इतिहास
जब अपहरण हुआ और फिरौती मांगी गई, तब कोतवाली थाना बना मिशन हेडक्वार्टर थानाध्यक्ष राहुल के शौर्य और आशिष कुमार की लेखनी ने रच दिया इतिहास

दरभंगा: 6 जून की रात दरभंगा में दो मेहनतकश गैस पाइप श्रमिकों का अपहरण एक ऐसी घटना जिसने एक ओर प्रशासनिक सतर्कता की परीक्षा ली, तो दूसरी ओर कोतवाली थानाध्यक्ष राहुल कुमार जैसे अफसर की निर्णायक क्षमता को पूरे राज्य के सामने स्थापित कर दिया। यह सिर्फ दो लोगों की वापसी की कहानी नहीं थी, यह एक ऑपरेशन था पुलिस कार्यशैली के आदर्श मॉडल की पुनर्परिभाषा।

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घटना की रचना: अपराध का ताना-बाना कैसे बुना गया: पीड़ित मजदूर मो. मजूद्दीन (पिता मैनुद्दीन) और आवेश (पिता इसराइल), दोनों अररिया निवासी, दरभंगा के म्यूजियम गुमटी के पास कार्यरत थे। अचानक एक सफेद चारपहिया वाहन में दो युवक उतरते हैं, खुद को प्रोजेक्ट डायरेक्टर बताते हैं, और मजदूरों को 'साइट चेंज' के बहाने गाड़ी में बैठा लेते हैं। कुछ घंटों में मोबाइल छीना जाता है। फिर अगली सुबह दोनों के परिवार को फिरौती के लिए कॉल आता है दो लाख रुपये की मांग के साथ।

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यह एक हाई-प्रोफाइल प्लान था। अपराधियों ने न सिर्फ पूर्व नियोजित स्क्रिप्ट तैयार की, बल्कि मोबाइल साइलेंसिंग और वाहन चालान की व्यवस्था भी अपराध जगत की कुशलता से की थी। लेकिन उनकी योजना उस ज़मीन पर फलीभूत नहीं हो सकी, जहाँ कानून की एक और परिभाषा मौजूद थी दरभंगा कोतवाली।

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जाँच का ट्रिगर: जब गुमशुदगी, ऑपरेशनल केस में बदल गई: जैसे ही गुमशुदगी की सूचना दरभंगा कोतवाली थाने को मिली, थानाध्यक्ष राहुल कुमार ने परंपरागत FIR एंट्री से आगे सोचते हुए तत्काल गहन पूछताछ और घटना के पृष्ठभूमि विश्लेषण का आदेश दिया।

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उन्होंने निम्नलिखित रणनीतिक पहलुओं को पहचानते हुए कार्रवाई प्रारंभ की:

1.क्राइम पैटर्न एनालिसिस: मजदूरों का बिना विरोध जाना और मोबाइल का तत्काल बंद हो जाना यह सामान्य झगड़े या व्यक्तिगत दुश्मनी का संकेत नहीं था।

2. इंटेलिजेंस इनपुट: अपहरणकर्ता द्वारा इस्तेमाल की गई भाषा, आवाज़ और लोकेशन के आकलन से यह स्पष्ट हुआ कि घटना दरभंगा में जन्मी, पर अंजाम मुजफ्फरपुर में हो सकता है।

3.सर्विलांस एक्टिवेशन: तत्काल मोबाइल टॉवर डेटा से CDR निकालना और पीड़ितों के मोबाइल के अंतिम लोकेशन को जीआईएस मैपिंग में फिट करना।

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ऑपरेशन 'लौट चलें': एक अर्ध-एसटीएफ अभियान की कार्यशैली: राहुल कुमार ने इस केस को विशेष दर्जा दिया “Critical Priority Case with Hostage Rescue Mandate”. इसके तहत: तीन सदस्यीय फील्ड यूनिट गठित की गई एक टीम तकनीकी, एक निगरानी और एक गुप्त तैनाती के लिए।मुजफ्फरपुर पुलिस से समन्वय स्थापित किया गया, लेकिन उन्होंने ऑपरेशन के लीड को स्वयं संभाला ताकि सूचना लीक न हो।

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गुप्त गवाह प्रणाली को सक्रिय किया गया अपराधियों की पुरानी पृष्ठभूमि खंगाली गई, पूर्व अपराधियों के मुखबिरों से बातचीत हुई। लॉजिस्टिक इनहिबिटर्स जैसे सफेद स्कॉर्पियो वाहन की ट्रैकिंग, टोल नाका फुटेज खंगालना और क्रॉस-जिले समन्वय की ज़िम्मेदारी एक-एक सिपाही को सौंपी गई।

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बचाव स्थल: मुजफ्फरपुर के गाछी में मिला 'नरक से स्वर्ग तक' का रास्ता: लगातार 12 घंटे की सतत निगरानी के बाद कोतवाली पुलिस उस जगह तक पहुँची, जहाँ दोनों मजदूरों को एक गाछी में बंधक बनाकर रखा गया था। वहाँ पहुँचते ही पुलिस ने 'साइलेंट एनकाउंटर स्ट्रैटजी' अपनाई: कोई चेतावनी नहीं, कोई लाउड ऑपरेशन नहीं 360 डिग्री घेरा, मुख्य अपहर्ता अमित और अशोक को बिना गोली चलाए गिरफ्तार किया गया।

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मजदूरों को प्राथमिक चिकित्सा के साथ वहीं से पुनः दरभंगा भेजा गया। गिरफ्तार अपराधी: एक पूरा गिरोह, दो चेहरे:

1.अशोक कुमार, पिता अमरनाथ सिंह, थाना तुर्की, मुजफ्फरपुर

2.अमित कुमार, पिता उदय चौधरी, थाना जरंगी, मुजफ्फरपुर

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दोनों पर पूर्व में भी संगीन अपराध दर्ज हैं। पूछताछ में इन्होंने स्वीकार किया कि अपहरण के बाद पीड़ितों के मोबाइल बंद कर दिए गए और वाहन को एक अस्थायी गोदाम में छिपाया गया। यह भी खुलासा हुआ कि फिरौती की रकम पेटीएम/क्रिप्टो वॉलेट में लेने की योजना थी।

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थानाध्यक्ष राहुल कुमार: कोतवाली से कमांड पोस्ट तक: राहुल कुमार ने यह दिखाया कि थाना एक प्रशासनिक इकाई नहीं, बल्कि एक सामरिक केंद्र बन सकता है। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि: कोई भी सूचना मीडियाई शोर में न दबे, अपराधियों को मौका न मिले पलटवार का इसलिए पीड़ित परिवार को घटनाक्रम की नियमित जानकारी मिलती रहे, उनका यह 'डिसिप्लिन विद डिग्निटी' स्टाइल न केवल दरभंगा के लिए बल्कि बिहार पुलिस की नीतिगत सोच के लिए उदाहरण बना है।

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प्रशासनिक निष्कर्ष और राज्य स्तरीय महत्व: इस ऑपरेशन की सफलता ने कई प्रशासनिक बिंदुओं को जन्म दिया:

इंटरडिस्ट्रिक्ट को ऑर्डिनेशन का रोल मॉडल

लो-प्रोफाइल हाई इफेक्टिविटी पुलिसिंग का सफल उदाहरण

कानूनी दायरे में रहकर अत्यंत संवेदनशील ऑपरेशन को निष्पादित करने की कार्यशैली

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यह केस अब पटना के पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज में केस स्टडी के रूप में प्रस्तावित है। साथ ही DGP कार्यालय ने इसे 'क्रिटिकल रेस्क्यू विद मिनिमल रिसोर्सेज' मॉडल का दर्जा देने का प्रस्ताव रखा है।

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जन प्रतिक्रिया: जब दरभंगा ने कहा "सैल्यूट राहुल सर": मजदूरों के परिवार वालों से लेकर आम जनता तक एक ही भाव उमड़ा यह पुलिस पहले जैसी नहीं रही। यह वह पुलिस है, जो बिना वर्दी के रौब, बिना कैमरे के बयान और बिना तमगे के जनकल्याण करती है। सोशल मीडिया पर राहुल कुमार ट्रेंड कर रहे हैं, और लोग कह रहे हैं: "अगर हर थाने में एक राहुल कुमार हो, तो बिहार अपराधियों की नहीं, उम्मीदों की राजधानी बन जाएगा।"

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कानून के रक्षक जब जनसेवा और रणनीति का समन्वय बन जाएँ: राहुल कुमार जैसे पुलिस अधिकारी ने यह सिद्ध किया कि थाना सिर्फ एफआईआर की किताब नहीं होता वह जनविश्वास का किला होता है। इस ऑपरेशन में न कोई गोली चली, न प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई, परंतु परिणाम ऐसा कि अपराधियों की रूह काँप गई। दरभंगा कोतवाली आज सिर्फ एक थाना नहीं, एक मिशन है। और उसके सेनापति राहुल कुमार, एक ऐसा नाम जो अब केस फाइलों से निकलकर प्रशिक्षण मैन्युअल और जनगाथा में दर्ज हो चुका है।