दरभंगा के राजकुमार गंज में तिहरे हत्याकांड पर न्याय की गूंज शिव कुमार झा, भाष्कर कुमार, अभिमन्यु राउत उर्फ़ बाबा और मिथिलेश पासवान को उम्रकैद की सजा; उस आग में जो जली थी गर्भस्थ मासूम की सांसें, आज अदालत ने सुनाया इंसाफ... साबित कर दिया भगवान के घर देर है, लेकिन अंधेर नहीं!
कभी कहा गया था भगवान के घर देर है, लेकिन अंधेर नहीं। आज वही पंक्ति, दरभंगा की अदालत की चौखट पर सच बनकर उतर आई। तीन इंसानों की चीखों से गूँजा था राजकुमार गंज का आसमान... एक गर्भवती बहन की कोख में पल रहे आठ महीने के शिशु की नन्ही सांसें उस दिन राख हो गई थीं... और आज उस आग की राख से न्याय का दीप जल उठा है. पढ़े पूरी खबर......
दरभंगा। कभी कहा गया था भगवान के घर देर है, लेकिन अंधेर नहीं। आज वही पंक्ति, दरभंगा की अदालत की चौखट पर सच बनकर उतर आई। तीन इंसानों की चीखों से गूँजा था राजकुमार गंज का आसमान... एक गर्भवती बहन की कोख में पल रहे आठ महीने के शिशु की नन्ही सांसें उस दिन राख हो गई थीं... और आज उस आग की राख से न्याय का दीप जल उठा है।

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वो शाम जो नरक बन गई थी... 10 फरवरी 2022 की वह संध्या जब दरभंगा शहर के गिरिन्द्र मोहन पथ, राजकुमार गंज की गलियों में आग और सिसकियों का तांडव था। संजय झा के घर पर ‘जमीन माफिया’ के रूप में उतरे ये चार दरिंदे शिव कुमार झा, भाष्कर कुमार, अभिमन्यु सिंह राजपूत उर्फ बाबा और मिथिलेश पासवान ने इंसानियत की सारी सीमाएँ तोड़ दी थीं। वो मकान, जो चालीस साल से इस परिवार का आशियाना था, उसे कब्ज़ा करने की हवस ने इन चारों को इतना अंधा बना दिया कि उन्होंने पेट्रोल छिड़क कर उस घर को आग के हवाले कर दिया।

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संजय झा जिनकी आंखों में अपनी बहनों के लिए सुरक्षा का भाव था जलते हुए भी चिल्ला रहे थे, भगवान! इन्हें छोड़ना मत! पर अग्नि ने सब निगल लिया पिंकी कुमारी अपने गर्भस्थ शिशु समेत उसी आग में समा गईं। नीकि कुमारी बुरी तरह झुलस गईं पर बचीं, ताकि इस अन्याय की गवाही दे सकें। आज अदालत में वही नीकि खड़ी थीं... कांपती आवाज़, पर लौह संकल्प के साथ। आँखों से आँसू गिरते रहे, पर होंठों से बस एक ही बात निकली सर, मेरे घर को राख कर देने वालों को भगवान ने देर से ही सही, पर सजा दिला दी। सिविल कोर्ट, दरभंगा के अपर सत्र न्यायाधीश तृतीय सुमन कुमार दिवाकर की अदालत ने आज इन चारों दोषियों को उम्रकैद और चालीस हजार रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई। भादवि की धारा 147, 436, 427, 341, 307, 302 और 120(बी) में दोष सिद्ध हुआ।

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कोर्ट में सन्नाटा था... जैसे समय थम गया हो। लोक अभियोजक अमरेंद्र नारायण झा और एपीपी रेणु झा की दलीलों ने उस आग की चीख को फिर से अदालत में जिंदा कर दिया। रेणु झा ने अदालत में 14 गवाहों की गवाही पेश की हर गवाही, हर सबूत ने यह साबित कर दिया कि जमीन का लालच, इंसानियत की कब्र खोद देता है। राज दरभंगा की सेवा करने वाले आत्माओं की आत्मा आज शांत हुई। कहते हैं, जो लोग राज दरभंगा के सिंहासन की सेवा में अपना जीवन खपा गए, उनके वंशजों को आज वही दर्द झेलना पड़ा घर खाली करने की धमकी, आग से जलते शरीर, और समाज की चुप्पी। पर आज शायद वो आत्माएं जो महाराज के दरबार में न्याय और धर्म के प्रहरी बने रहे कहीं ऊपर से देख रही होंगी और कह रही होंगी अब हमारे बच्चों को इंसाफ मिला।

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दरभंगा की जनता के लिए यह फैसला एक संदेश है की चाहे अपराधी कितना भी ताकतवर क्यों न हो, न्याय की किताब में हर पन्ना लिखा जाता है बस सही समय आने की देर होती है। आज राजकुमार गंज की उसी गली में जहाँ कभी धुआँ उठता था, लोग एक-दूसरे से कहते सुने गए भगवान के घर देर है... लेकिन अंधेर नहीं। यह वाक्य आज न्यायालय की दीवारों पर नहीं, बल्कि उस बहन की आँखों के आँसू में लिखा गया है जो सब कुछ खोकर भी इंसाफ पा गई।
