जब कानून की चौखट पर वकील ही कटघरे में खड़ा हुआ: दरभंगा कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता अम्बर इमाम हाशमी की गिरफ्तारी पर गूंजा विद्रोह, न्यायिक गरिमा बनाम बार की अस्मिता पर उठे सवाल और वही रिपोर्ट जिसने दरभंगा की दीवारों को हिला दिया
दरभंगा की ऐतिहासिक न्यायभूमि ने बहुत से हाई-प्रोफाइल मुकदमों को देखा, सुना और सहा है, लेकिन 14 जून 2025 का दिन एक ऐसी तारीख बनकर उभरा जिसे न तो कानून भूल पाएगा, न वकालत। यह दिन उस अद्भुत सच्चाई का गवाह बना जब न्याय ने स्वयं को बचाने के लिए कानून के एक रक्षक को ही आरोपी की कुर्सी पर ला बिठाया। वरिष्ठ क्रिमिनल लॉयर अम्बर इमाम हाशमी की गिरफ्तारी ने दरभंगा व्यवहार न्यायालय को थर्रा दिया, और वकालत के सशक्त स्तंभों को हिला दिया. पढ़े पुरी खबर.......

दरभंगा की ऐतिहासिक न्यायभूमि ने बहुत से हाई-प्रोफाइल मुकदमों को देखा, सुना और सहा है, लेकिन 14 जून 2025 का दिन एक ऐसी तारीख बनकर उभरा जिसे न तो कानून भूल पाएगा, न वकालत। यह दिन उस अद्भुत सच्चाई का गवाह बना जब न्याय ने स्वयं को बचाने के लिए कानून के एक रक्षक को ही आरोपी की कुर्सी पर ला बिठाया। वरिष्ठ क्रिमिनल लॉयर अम्बर इमाम हाशमी की गिरफ्तारी ने दरभंगा व्यवहार न्यायालय को थर्रा दिया, और वकालत के सशक्त स्तंभों को हिला दिया।
ADVERTISEMENT
अतीत की परतें: जब अपराध के साथ वकालत का रिश्ता जुड़ने लगा: अम्बर इमाम हाशमी कोई साधारण वकील नहीं थे। अदालत की फिजाओं में उनका नाम गूंजता था, तर्कों की तलवार उनके लहजे में और फैसलों की धार उनके मस्तिष्क में थी। लेकिन 1992 का वह हत्याकांड, जिसमें तीन लोगों की निर्मम हत्या हुई थी, उसी मामले में उनका नाम आरोपी के रूप में दर्ज था। मामला वर्षों तक न्याय की गहराइयों में ठहरा रहा जैसे कोई शांत लेकिन मंथन करता हुआ समुद्र। अक्सर कहा जाता है कि समय सच्चाई को दबा सकता है, मिटा नहीं सकता। इस केस में भी वही हुआ। मामले की सुनवाई पुनः सक्रिय हुई और कोर्ट ने उन्हें पेश होने का आदेश दिया। लेकिन कानून के जानकार हाशमी साहब ने ही कानून से आँखें चुराईं।
ADVERTISEMENT
14 जून 2025: नाटक की तरह घटती घटनाएँ, न्यायालय के गलियारे में हतप्रभ अधिवक्ता: शुक्रवार का दिन था। अदालत की सामान्य कार्यवाही चल रही थी। हाशमी साहब ने फॉर्म-117 दाखिल किया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि वे ज़िले से बाहर हैं और पेश नहीं हो सकते। उसी दिन कोर्ट रूम नंबर 8 में एक अन्य केस की सुनवाई में वे खुद उपस्थित हो गए और बहस करने लगे। तभी उनकी उपस्थिति पर नजर गई एडीजे-3 सुमन कुमार दिवाकर की। उन्होंने बड़े ही शांति से पूछा: "आप तो अवकाश पर थे, फिर यहां कैसे?"
ADVERTISEMENT
यह सवाल नहीं था यह न्याय की ओर से चुनौती थी, वह भी एक ऐसे व्यक्ति को जिसने न्याय की भाषा को जीवनभर पढ़ाया और परखा था। इसके बाद जो हुआ, वह दरभंगा न्यायिक इतिहास में पहली बार घटा। तत्काल आदेश हुआ गिरफ्तार कर लिया जाए।
ADVERTISEMENT
हिरासत और हैरत: जब गाउन पहना आदमी हथकड़ी में चला: हाशमी साहब की गिरफ्तारी एक अद्वितीय घटना थी। जिन्हें अदालत की शोभा माना जाता था, वे अब पुलिस अभिरक्षा में थे। गाउन, ब्रीफकेस और आत्मविश्वास से भरे रहने वाले अधिवक्ता अब एकदम मौन, किंकर्तव्यविमूढ़, किंतु स्थिर दिखाई दे रहे थे।न्यायालय परिसर में खलबली मच गई। अधिवक्ता समुदाय जैसे अचानक सदमे में चला गया। कुछ ने इसे न्याय का अपमान कहा, कुछ ने इसे 'कानूनी सख्ती'। लेकिन जो हुआ वह हर दृष्टिकोण से ऐतिहासिक था।
ADVERTISEMENT
दरभंगा बार एसोसिएशन का आक्रोश: संघर्ष की घोषणा, न्यायिक बहिष्कार की हुंकार: वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव रंजन ठाकुर ने पत्रकारों से कहा: 1906 से स्थापित यह एसोसिएशन आज पहली बार अपने किसी सदस्य को न्याय के कटघरे में देख रही है। जब तक अम्बर हाशमी साहब को सशर्त रिहा नहीं किया जाता, हम न्यायिक कार्य से खुद को अलग रखेंगे।"
ADVERTISEMENT
शहर के अधिवक्ता आक्रोशित हो उठे। बार एसोसिएशन ने बैठक बुलाकर तत्काल प्रभाव से न्यायिक बहिष्कार का निर्णय लिया। दरभंगा व्यवहार न्यायालय की फिजाओं में प्रतिरोध की आवाज गूंजने लगी "ये गिरफ़्तारी नहीं, अपमान है!" लेकिन इस स्वर के समानांतर एक मूक लेकिन दृढ़ प्रतिज्ञा भी तैर रही थी "कानून सबके लिए बराबर है।"
ADVERTISEMENT
एडीजे सुमन कुमार दिवाकर: न्याय का निर्भीक चेहरा: सुमन कुमार दिवाकर कोई सामान्य न्यायाधिकारी नहीं हैं। वे वही जज हैं जिन्होंने हाल ही में भाजपा विधायक मिश्रीलाल यादव को दो साल की सजा और तत्काल हिरासत का आदेश सुनाया था। उनके फैसलों में डर नहीं, बल्कि संविधान की भावना होती है। उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि चाहे कोई कितनी भी बड़ी शख्सियत क्यों न हो, न्याय की आंखें न झुकती हैं, न डरती हैं।
ADVERTISEMENT
प्रश्न अनेक हैं, उत्तर भविष्य देगा: क्या हाशमी साहब की गिरफ्तारी न्याय की जीत है या वकालत की हार? क्या यह मिसाल बनेगी या महज एक अपवाद? क्या अधिवक्ताओं का बहिष्कार न्यायिक व्यवस्था पर दबाव डालेगा या और सशक्त बनाएगा? इन सभी सवालों का उत्तर आने वाला समय देगा। लेकिन आज इतना तय है कि दरभंगा की न्यायिक भूमि पर इतिहास लिखा गया है एक अधिवक्ता के खिलाफ, न्याय के समर्थन में।
ADVERTISEMENT
कहते हैं, जब वकालत अपने सिद्धांतों से भटकती है, तो कानून को अपनी तलवार निकालनी पड़ती है। अम्बर इमाम हाशमी की गिरफ्तारी उसी तलवार की झलक थी। एक चेतावनी, एक मिसाल, और शायद एक नई शुरुआत। वकालत की दुनिया में यह गिरफ्तारी एक तमाचा है उस सोच पर जो खुद को कानून से ऊपर मानने लगती है। और न्यायालय परिसर में गूंजती वह नीरवता, जो गिरफ्तारी के बाद छाई थी वह इस बात का प्रमाण थी कि न्याय अभी भी जीवित है।