मिथिला के लोकतंत्र में नहीं चलेगी वर्दी की धौंस : संजय सरावगी ने आर.के. मिश्रा को बताया विभाजनकारी नेता, कहा जनता विकास चाहती है, भय नहीं; जमानत-जब्ती के भय से मिश्रा कर रहे अनुचित प्रलाप

मिथिला की पवित्र भूमि पर इस समय चुनावी तापमान अपने चरम पर है। राजनीतिक मर्यादाओं का क्षरण और व्यक्तिगत कटाक्षों की झड़ी के बीच, मंगलवार को दरभंगा विधानसभा क्षेत्र में एक बार फिर राजनीतिक शालीनता और अहंकार की पराकाष्ठा आमने-सामने आ गई। घटना की पृष्ठभूमि के अनुसार, जनसुराज पार्टी के प्रत्याशी आर.के. मिश्रा और राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री संजय सरावगी के समर्थकों के मध्य रविवार को हुए तीखे वाद-विवाद ने शहर की राजनीतिक फिज़ा में उबाल ला दिया. पढ़े पूरी खबर......

मिथिला के लोकतंत्र में नहीं चलेगी वर्दी की धौंस : संजय सरावगी ने आर.के. मिश्रा को बताया विभाजनकारी नेता, कहा जनता विकास चाहती है, भय नहीं; जमानत-जब्ती के भय से मिश्रा कर रहे अनुचित प्रलाप
मिथिला के लोकतंत्र में नहीं चलेगी वर्दी की धौंस : संजय सरावगी ने आर.के. मिश्रा को बताया विभाजनकारी नेता, कहा जनता विकास चाहती है, भय नहीं; जमानत-जब्ती के भय से मिश्रा कर रहे अनुचित प्रलाप

दरभंगा। मिथिला की पवित्र भूमि पर इस समय चुनावी तापमान अपने चरम पर है। राजनीतिक मर्यादाओं का क्षरण और व्यक्तिगत कटाक्षों की झड़ी के बीच, मंगलवार को दरभंगा विधानसभा क्षेत्र में एक बार फिर राजनीतिक शालीनता और अहंकार की पराकाष्ठा आमने-सामने आ गई। घटना की पृष्ठभूमि के अनुसार, जनसुराज पार्टी के प्रत्याशी आर.के. मिश्रा और राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री संजय सरावगी के समर्थकों के मध्य रविवार को हुए तीखे वाद-विवाद ने शहर की राजनीतिक फिज़ा में उबाल ला दिया। 

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सूत्रों के अनुसार, यह विवाद उस समय प्रारंभ हुआ जब सरावगी समर्थकों ने जनसुराज प्रत्याशी के धरना-स्थल पर उनकी कथित बयानबाज़ी पर आपत्ति जताई। उसी क्षण से मिश्रा के तेवर और अधिक आक्रामक हो गए और फिर शुरू हुआ शब्दों का वह अनर्गल प्रलाप, जिसने प्रशासनिक गरिमा तक को चुनौती दे डाली। राजस्व मंत्री संजय सरावगी ने इस घटनाक्रम पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा आर.के. मिश्रा जी चुनाव परिणाम से पूर्व ही अपनी जमानत-जब्ती की आशंका से व्याकुल हैं। इसी भय के कारण वे विचलित मनोदशा में असंगत वाक्-प्रयोग कर रहे हैं।

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मंत्री ने कहा कि दरभंगा की धरती सदैव शांति, सौहार्द और विवेक की प्रतीक रही है। मिश्रा जी, पूर्व में एक आईपीएस अधिकारी रह चुके हैं, किंतु अब भी वे अपनी पुरानी वर्दी के प्रभाव और अहंकार का प्रदर्शन कर रहे हैं। अधिकारियों के मान-सम्मान के साथ जिस प्रकार का खिलवाड़ उन्होंने किया है, वह न केवल निंदनीय है, बल्कि लोकतांत्रिक मर्यादाओं के प्रतिकूल भी है। श्री सरावगी ने कहा कि बिहार में अब क़ानून का शासन और जनतंत्र की प्रतिष्ठा स्थापित है। यहाँ भय, रौब और दबाव की राजनीति अब नहीं चल सकती। मिश्रा जी को यह भलीभांति समझ लेना चाहिए कि वे अब पुलिस अधिकारी नहीं, बल्कि एक राजनैतिक दल के प्रतिनिधि हैं और राजनीति में जनता की भावना सर्वोच्च होती है, वर्दी का आदेश नहीं।

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मंत्री ने कहा कि उनके कार्यकर्ताओं ने चुनाव के दौरान अभूतपूर्व अनुशासन और संयम का परिचय दिया है।बावजूद इसके, विरोधी गुट के नेताओं ने कई बार भड़काऊ बयान देकर माहौल को विषाक्त करने का प्रयास किया। हमारे कार्यकर्ताओं ने संयम नहीं खोया, क्योंकि हम जानते हैं कि लोकतंत्र में मर्यादा ही सबसे बड़ी शक्ति है, संजय सरावगी ने तीखे स्वर में यह भी कहा आर.के. मिश्रा जैसे चुनावी अवसरवादियों को दरभंगा की जनता भलीभांति पहचान चुकी है। ये लोग चुनावी मौसम के नेता हैं चुनाव खत्म होते ही अपने पुराने ठिकानों में समा जाएंगे। जनता की पीड़ा से इनका कोई सरोकार नहीं, बस कैमरे और माइक की चकाचौंध में कुछ दिन का अभिनय कर रहे हैं।

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उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मिश्रा ने समाज को जातिगत आधार पर विभाजित करने की योजनाबद्ध चेष्टा की, किन्तु दरभंगा की प्रबुद्ध जनता ने उस प्रयास को सिरे से अस्वीकार कर दिया। दरभंगा की चेतनशील जनता जानती है कि मिथिला की आत्मा जाति से नहीं, संस्कृति से परिचालित होती है। यहाँ विभाजन की राजनीति कभी सफल नहीं हो सकती। मंत्री सरावगी ने अंत में कहा लोकतंत्र में जनता का निर्णय ही परमादेश होता है। 14 नवंबर को जब जनादेश उद्घोषित होगा, तो दरभंगा यह दिखा देगा कि मिथिला में नफरत नहीं, विकास और समरसता की राजनीति ही प्रबल है।

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राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस समूचे प्रकरण ने दरभंगा की चुनावी सरगर्मी को नई दिशा दे दी है। जहाँ एक ओर एनडीए प्रत्याशी संजय सरावगी अपने शांत, विकासोन्मुखी और संगठनात्मक कार्यों के माध्यम से जनता के बीच साख बना चुके हैं, वहीं दूसरी ओर आर.के. मिश्रा की आक्रामक बयानबाज़ी और प्रशासनिक धौंस की प्रवृत्ति जनता के बीच संदेह का विषय बन चुकी है। दरभंगा के वरिष्ठ नागरिकों का कहना है कि जिस व्यक्ति ने दशकों तक पुलिस की वर्दी में अनुशासन और मर्यादा का पाठ पढ़ाया, वही यदि अब जनतंत्र में अमर्यादित आचरण करे, तो यह समाज के लिए अनुकरणीय नहीं बल्कि विचलित करने वाला उदाहरण है।

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दरभंगा की गलियों में अब एक ही प्रश्न गूंज रहा है वर्दी का रौब या जनता का भरोसा? 14 नवंबर को मतगणना के साथ यह स्पष्ट हो जाएगा कि मिथिला की जनता ने किस ओर अपना विश्वास रखा विकास के प्रतीक संजय सरावगी की ओर, या विभाजन की राह पर चल पड़े आर.के. मिश्रा की ओर।