राज्यसभा से उठा मैथिली की अस्मिता का उद्घोष: संजय कुमार झा की पहल पर तिरहुता/वैदेही लिपि को डिजिटल विश्व में प्रतिष्ठा दिलाने की निर्णायक माँग, मातृभाषा के संरक्षण से लेकर वैश्विक डिजिटल अभिव्यक्ति तक का सांस्कृतिक संघर्ष

मैथिली भाषा के संरक्षण, संवर्धन और समकालीन डिजिटल व्यवहार में उसके सशक्त समावेशन की दिशा में एक निर्णायक और दूरगामी पहल करते हुए जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय कुमार झा ने बुधवार को राज्यसभा के पटल पर एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय को मुखरता से उठाया। उन्होंने केंद्र सरकार से स्पष्ट और ठोस आग्रह किया कि मैथिली की प्राचीन, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध तिरहुता (वैदेही) लिपि को गूगल कीबोर्ड, एंड्रॉयड-आईओएस ऑपरेटिंग सिस्टम तथा प्रमुख सोशल मीडिया मंचों पर विधिवत स्थान दिया जाए, ताकि डिजिटल युग में मैथिली भाषियों की अभिव्यक्ति अपनी मूल लिपि में सहज, स्वाभाविक और सर्वसुलभ हो सके. आगे पढ़े.....

राज्यसभा से उठा मैथिली की अस्मिता का उद्घोष: संजय कुमार झा की पहल पर तिरहुता/वैदेही लिपि को डिजिटल विश्व में प्रतिष्ठा दिलाने की निर्णायक माँग, मातृभाषा के संरक्षण से लेकर वैश्विक डिजिटल अभिव्यक्ति तक का सांस्कृतिक संघर्ष
राज्यसभा से उठा मैथिली की अस्मिता का उद्घोष: संजय कुमार झा की पहल पर तिरहुता/वैदेही लिपि को डिजिटल विश्व में प्रतिष्ठा दिलाने की निर्णायक माँग, मातृभाषा के संरक्षण से लेकर वैश्विक डिजिटल अभिव्यक्ति तक का सांस्कृतिक संघर्ष

पटना, मिथिला जन जन की आवाज ब्यूरो। मैथिली भाषा के संरक्षण, संवर्धन और समकालीन डिजिटल व्यवहार में उसके सशक्त समावेशन की दिशा में एक निर्णायक और दूरगामी पहल करते हुए जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय कुमार झा ने बुधवार को राज्यसभा के पटल पर एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय को मुखरता से उठाया। उन्होंने केंद्र सरकार से स्पष्ट और ठोस आग्रह किया कि मैथिली की प्राचीन, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध तिरहुता (वैदेही) लिपि को गूगल कीबोर्ड, एंड्रॉयड-आईओएस ऑपरेटिंग सिस्टम तथा प्रमुख सोशल मीडिया मंचों पर विधिवत स्थान दिया जाए, ताकि डिजिटल युग में मैथिली भाषियों की अभिव्यक्ति अपनी मूल लिपि में सहज, स्वाभाविक और सर्वसुलभ हो सके।

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संजय कुमार झा ने कहा कि भाषा केवल संप्रेषण का उपकरण नहीं, बल्कि स्मृति, संस्कृति और सामूहिक चेतना का संवाहक होती है। जब तक भाषा की लिपि को डिजिटल मंचों पर प्रतिष्ठा और व्यवहारिक उपयोग नहीं मिलता, तब तक संरक्षण की सारी बातें आधी-अधूरी ही रह जाती हैं। उन्होंने रेखांकित किया कि तिरहुता/वैदेही लिपि मैथिली की आत्मा है जिसमें सदियों की बौद्धिक परंपरा, लोकजीवन, साहित्यिक वैभव और शास्त्रीय गरिमा अंतर्निहित है। इस लिपि को डिजिटल पारिस्थितिकी में स्थान दिलाना केवल तकनीकी सुधार नहीं, बल्कि सभ्यतागत उत्तराधिकार की रक्षा है।

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उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आज जब संचार, शिक्षा, व्यापार, प्रशासन और सामाजिक संवाद का अधिकांश हिस्सा डिजिटल माध्यमों पर केंद्रित है, तब किसी भाषा की लिपि का डिजिटल अभाव उस भाषा को हाशिये पर धकेल देता है। मैथिली भारत की प्राचीन भाषाओं में से एक है, संविधान की अष्टम अनुसूची में सम्मिलित है, और देश-विदेश में करोड़ों लोग इसे बोलते, समझते और जीते हैं। ऐसे में यदि मैथिली भाषी अपनी ही लिपि में मोबाइल, टैबलेट या सोशल मीडिया पर लिखने से वंचित रहें, तो यह डिजिटल अन्याय और सांस्कृतिक उपेक्षा की श्रेणी में आएगा।

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संजय झा ने केंद्र से आग्रह किया कि तिरहुता लिपि के लिए मानकीकरण, तकनीकी एकीकरण और प्लेटफॉर्म-स्तरीय सहयोग की प्रक्रिया को शीघ्रता से आगे बढ़ाया जाए। उन्होंने कहा कि यूनिकोड-संगतता, कीबोर्ड लेआउट, फॉन्ट विकास और यूज़र-फ्रेंडली इंटरफेस जैसे पहलुओं पर सुनियोजित कार्यवाही आवश्यक है, ताकि आम मैथिली भाषी बिना किसी तकनीकी बाधा के अपनी मातृलिपि में डिजिटल अभिव्यक्ति कर सके। यह कदम न केवल भाषा-संरक्षण की दृष्टि से अनिवार्य है, बल्कि डिजिटल लोकतंत्रीकरण की भावना के भी अनुरूप है।

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उन्होंने यह भी कहा कि वैश्वीकरण के इस दौर में जब प्रवासी मैथिली समुदाय विश्व के विभिन्न देशों में फैला हुआ है, तब डिजिटल मंच ही वह सेतु है जो उन्हें अपनी जड़ों से जोड़े रख सकता है। तिरहुता लिपि की डिजिटल उपलब्धता से प्रवासी मैथिली समाज को अपनी सांस्कृतिक पहचान सुदृढ़ करने, साहित्य-सृजन को बढ़ावा देने और नई पीढ़ी तक भाषा-परंपरा को हस्तांतरित करने में अप्रत्याशित बल मिलेगा।

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संसद में उठाया गया यह मुद्दा केवल एक भाषाई मांग नहीं, बल्कि बहुभाषी भारत की समावेशी डिजिटल नीति का स्वाभाविक विस्तार है। यह पहल बताती है कि तकनीक की दिशा वही होनी चाहिए, जहाँ वह स्थानीय भाषाओं और लिपियों को नष्ट नहीं, बल्कि पुष्ट करे; उन्हें विस्मृति में नहीं, बल्कि वैश्विक संवाद में प्रतिष्ठित करे।

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अंततः संजय कुमार झा की यह संसदीय पहल मैथिली के लिए एक डिजिटल पुनर्जागरण का शंखनाद मानी जा रही है जहाँ तिरहुता/वैदेही लिपि केवल संग्रहालयों और पांडुलिपियों तक सीमित न रहकर स्मार्टफोन की स्क्रीन, सोशल मीडिया की टाइमलाइन और वैश्विक संवाद के मंचों पर अपने स्वाभाविक अधिकार के साथ विराजमान होगी। यह कदम भाषा, लिपि और पहचान तीनों के लिए एक साथ न्याय करने की दिशा में मील का पत्थर सिद्ध हो सकता है।