दरभंगा में जब कानून खुद सड़क किनारे बिकने लगा: दरभंगा के दिल्ली मोड़ पर ट्रैफिक जवान उमेश यादव की रिश्वतखोरी की तस्वीर ने किया व्यवस्था के विवेक का अंतिम संस्कार
सड़कें महज़ गंतव्य तक पहुँचने का मार्ग नहीं होतीं। वे साक्षी होती हैं व्यवस्था के संस्कार की, समाज की चेतना की और कानून के चरित्र की। लेकिन जब वही सड़कें रिश्वत की रेखाओं से कटने लगें, जब चौराहे न्याय के नहीं, सौदों के केंद्र बन जाएँ, और जब वर्दी पहने लोग नीयत के नहीं, नोटों के रक्षक बन जाएँ तब समाज को सिर्फ ट्रैफिक नहीं रोकना होता, बल्कि अंधेरगर्दी की उस गाड़ी को भी रोकना होता है जो पूरी व्यवस्था को कुचलने पर आमादा है. पढ़े पुरी खबर.....

दरभंगा: सड़कें महज़ गंतव्य तक पहुँचने का मार्ग नहीं होतीं। वे साक्षी होती हैं व्यवस्था के संस्कार की, समाज की चेतना की और कानून के चरित्र की। लेकिन जब वही सड़कें रिश्वत की रेखाओं से कटने लगें, जब चौराहे न्याय के नहीं, सौदों के केंद्र बन जाएँ, और जब वर्दी पहने लोग नीयत के नहीं, नोटों के रक्षक बन जाएँ तब समाज को सिर्फ ट्रैफिक नहीं रोकना होता, बल्कि अंधेरगर्दी की उस गाड़ी को भी रोकना होता है जो पूरी व्यवस्था को कुचलने पर आमादा है। दरभंगा के दिल्ली मोड़ पर 08 जुलाई 2025 की दोपहर ठीक 3:00 बजे ऐसी ही एक ‘मौन दुर्घटना’ हुई जहाँ जान नहीं गई, पर भरोसा जरूर घायल हुआ।
ADVERTISEMENT
चित्र से चरित्र तक: जब कैमरा बन गया चौराहा: वीडियो में एक ट्रक, ट्रैफिक के नियमों को ठेंगा दिखाता हुआ ‘नो एंट्री’ में घुस रहा है। लेकिन कोई रोक नहीं, कोई टोक नहीं... बल्कि स्वागत है। स्वागत उस 'शुल्क' के साथ जिसे बी०एच०जी०/300329 उमेश यादव अपने हाथ में ऐसे थामते हैं, जैसे वह कर्तव्य की नहीं, ‘कृपा’ की मुद्रा हो। इस वीडियो ने पूरे मिथिलांचल को झकझोर दिया। और जब ये चित्र सोशल मीडिया पर उभरा, तो शब्दों ने शोर मचाया "क्या वर्दी अब खुलेआम बिकने लगी है?"
ADVERTISEMENT
प्रेस विज्ञप्ति की पंक्तियों के पीछे छिपी सच्चाई: वरीय पुलिस अधीक्षक, दरभंगा द्वारा 09 जुलाई 2025 को जारी प्रेस विज्ञप्ति में इस घटना को स्वीकारते हुए लिखा गया है कि उमेश यादव पर वायरल वीडियो के आधार पर थानाध्यक्ष, यातायात थाना द्वारा जांच की गई। जांच में यह पुष्टि हुई कि 08 जुलाई को दोपहर 3 बजे उक्त ट्रैफिक जवान द्वारा एक ट्रक चालक से पैसे लिए गए। यह न सिर्फ ड्यूटी के प्रति लापरवाही थी, बल्कि कर्तव्य से विश्वासघात भी। प्रेस विज्ञप्ति भले ही औपचारिक भाषा में हो, पर उसके हर शब्द के पीछे छुपा है उस कानून का लज्जित चेहरा, जो चौराहों पर चुपचाप खड़ा होकर अपना ही अपमान देख रहा है।
ADVERTISEMENT
वर्दी की इज़्ज़त बिकती है, बस कैमरा न हो: यह कोई पहली घटना नहीं। बस इस बार कैमरा था। हर सुबह दरभंगा शहर की गलियों में जब सूरज की किरणें लाठी की नोक पर टिकी वर्दी से टकराती हैं, तो लगता है मानो व्यवस्था जाग गई है। लेकिन असल में वो सिर्फ ड्यूटी का दिखावा है, जो दोपहर की चिलचिलाती धूप में ‘चाय-पानी’ में तब्दील हो जाती है। कहावत है “जो पकड़ा जाए, वही चोर।” उमेश यादव की गलती इतनी नहीं कि उसने पैसे लिए, बल्कि इतनी थी कि उसने कैमरे को नजरअंदाज कर दिया।
ADVERTISEMENT
प्रशासन की त्वरित प्रतिक्रिया: कार्रवाई या खानापूरी?
जाँच में पुष्टि होते ही जिलाधिकारी, दरभंगा को अनुशासनिक कार्रवाई हेतु संस्तुति भेज दी गई। मगर जनता का सवाल सीधा है:
क्या केवल निलंबन से यह व्यवस्था सुधर जाएगी?
ट्रक चालक, जो अवैध रूप से ‘नो एंट्री’ में घुसा, उस पर कोई कार्रवाई?
क्या उमेश यादव अकेले थे या इस भ्रष्टाचार की कोई श्रृंखला है?
क्या आने वाले दिनों में अन्य चौराहों की भी सीसीटीवी समीक्षा होगी?
ADVERTISEMENT
सड़क पर बहता न्याय: ट्रैफिक या ट्रैजेडी?
वो ‘दिल्ली मोड़’ जहाँ से लोग राजधानी की ओर उम्मीदों का टिकट लेकर निकलते हैं, अब घूस की चुप्पी से गूंज रहा है। यह सिर्फ एक ट्रैफिक जवान की गलती नहीं, बल्कि उस संपूर्ण प्रणाली की असफलता है जहाँ कागज़ों पर 'सेवा, सुरक्षा और सहयोग' लिखा होता है, लेकिन ज़मीन पर 'सेवा शुल्क' वसूला जाता है।
ADVERTISEMENT
गणेश ठाकुर, एक दुपहिया चालक कहते हैं: ट्रैफिक वाले हेलमेट न हो तो चालान करते हैं, लेकिन अगर ट्रक वाला हज़ार का नोट थमा दे तो नो एंट्री भी ओपन हो जाती है। यह नियम सिर्फ आम जनता के लिए हैं, बड़े वाहनों के लिए अलग संविधान है शायद।
ADVERTISEMENT
रिंकू देवी, एक महिला शिक्षिका का दर्द: हमने तो सोचा था कि हमारे बच्चे ट्रैफिक पुलिस देखकर सुरक्षित महसूस करेंगे, लेकिन अब तो डर लगता है कि कहीं पैसे न हों तो नियमों में ही फँसा दें।
ADVERTISEMENT
व्यवस्था का आईना: चौराहे अब वसूली केंद्र?
हर चौराहा अब एक वसूली केंद्र बन चुका है। पहले गाड़ी रोकी जाती है, फिर बहाना ढूंढा जाता है बीमा एक्सपायर, कागज़ अधूरा, नंबर प्लेट छोटी, या फिर हेलमेट नदारद। और जब बहाना भी न मिले, तो खुद ही कह दिया जाता है कुछ हो जाए तो देख लेंगे साहब, बस थोड़ा सहयोग करिए। उमेश यादव की तस्वीर उसी सहयोग की सरकारी मूर्तिमान तस्वीर है।
ADVERTISEMENT
इस रिपोर्ट को समाप्त नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह एक प्रश्न है जो हर दरभंगावासी के मन में गूंज रहा है क्या सिर्फ एक उमेश यादव की बलि से व्यवस्था सुधर जाएगी? या फिर... हर चौराहे पर कोई कैमरा तैनात हो, हर वर्दी के पीछे कोई ज़मीर जागे, हर जेब से पहले हाथ संविधान की ओर बढ़े।
ADVERTISEMENT
मिथिला जन जन की आवाज का निवेदन है कि यह केवल कार्रवाई की खबर न बनकर आत्मनिरीक्षण का क्षण बने। वरना अगली बार जब आपका बच्चा सड़क पार करेगा, तो उसके सिर पर कानून नहीं, लाल बत्ती के पीछे छुपा सौदा होगा।