जनप्रतिनिधि जब जनहित को भूलकर बन गया भय का प्रतीक, और अदालत ने पन्नों में लिखी इंसाफ की इबारत: समेला में उमेश मिश्रा पर हुए हमले के 6 साल बाद दरभंगा की विशेष अदालत से मिश्री लाल यादव को दो साल की सजा और जुर्माने का फैसला, बिहार की सियासत में मचा हड़कंप

दरभंगा, मिथिला की सांस्कृतिक राजधानी और अब एक बार फिर से न्याय की जननी बनकर देशभर की सुर्खियों में है। यह सिर्फ एक सज़ा नहीं है, यह संविधान के उस अध्याय का जीवंत प्रमाण है जहाँ सत्ता की चादर किसी को कानून के सवालों से बचा नहीं सकती. पढ़े पुरी खबर.........

जनप्रतिनिधि जब जनहित को भूलकर बन गया भय का प्रतीक, और अदालत ने पन्नों में लिखी इंसाफ की इबारत: समेला में उमेश मिश्रा पर हुए हमले के 6 साल बाद दरभंगा की विशेष अदालत से मिश्री लाल यादव को दो साल की सजा और जुर्माने का फैसला, बिहार की सियासत में मचा हड़कंप
जनप्रतिनिधि जब जनहित को भूलकर बन गया भय का प्रतीक, और अदालत ने पन्नों में लिखी इंसाफ की इबारत: समेला में उमेश मिश्रा पर हुए हमले के 6 साल बाद दरभंगा की विशेष अदालत से मिश्री लाल यादव को दो साल की सजा और जुर्माने का फैसला, बिहार की सियासत में मचा हड़कंप

दरभंगा, मिथिला की सांस्कृतिक राजधानी और अब एक बार फिर से न्याय की जननी बनकर देशभर की सुर्खियों में है। यह सिर्फ एक सज़ा नहीं है, यह संविधान के उस अध्याय का जीवंत प्रमाण है जहाँ सत्ता की चादर किसी को कानून के सवालों से बचा नहीं सकती।

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2019 में रैयाम थाना अंतर्गत समेला गांव की चुप गलियों में जो कुछ घटा, वह उस समय कई के लिए एक मामूली घटना थी एक साधारण व्यक्ति उमेश मिश्रा के साथ हुए कथित मारपीट का मामला। परन्तु पांच वर्षों की लंबी न्यायिक यात्रा के बाद अब जब अदालत ने अलीनगर के भाजपा विधायक मिश्री लाल यादव को दोषी करार देते हुए दो साल की सजा और एक लाख रुपये का जुर्माना ठोंका, तो यह एक अदालती फैसला नहीं रहा यह बन गया एक उदाहरण।

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समेला की वह काली सुबह: जब राजनीति की लाठी आम आदमी की पीठ पर टूटी: 30 जनवरी, 2019 तारीख जो उमेश मिश्रा के जीवन में भूचाल बनकर आई। समेला गांव के यह निवासी, सुबह की सैर पर निकले थे, बिल्कुल उसी भरोसे के साथ जैसे एक नागरिक अपने गांव की हवाओं पर करता है। लेकिन अचानक, वह हवाएं बदल गईं। आरोप है कि विधायक मिश्री लाल यादव और उनके सहयोगी सुरेश यादव ने उन्हें रोका, और बिना किसी उकसावे के उनके साथ मारपीट की।

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उमेश मिश्रा ने रैयाम थाना में शिकायत दर्ज करवाई, और वह शिकायत धीरे-धीरे एक गंभीर मुकदमे में तब्दील हुई। लेकिन न्याय की गति भारत में धीमी होती है। वक्त गुजरा, सत्ताएं बदलीं, लेकिन अदालत की सीढ़ियों पर उमेश मिश्रा की उम्मीदें कभी नहीं डगमगाईं।

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दरभंगा की अदालत में न्याय का दीपक जला: 24 मई 2025 को, दरभंगा के विशेष एमपी-एमएलए न्यायालय के माननीय न्यायाधीश सुमन कुमार दिवाकर ने वह फैसला सुनाया, जिसकी गूंज अब पूरे राज्य में सुनाई दे रही है। पहले चरण में विधायक को धारा 323 (जानबूझकर चोट पहुँचाना) के तहत तीन महीने की सजा और 500 रुपये जुर्माना सुनाया गया। कोर्ट की सख्ती का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि विधायक की अपील को तत्काल खारिज कर उन्हें सीधे हिरासत में ले लिया गया और मंडल कारा, दरभंगा भेज दिया गया। परंतु कहानी यहीं खत्म नहीं हुई।

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धारा 506 में मिली बड़ी सजा: धमकी देना भी बना अपराध: सोमवार को विधायक को दोबारा अदालत में लाया गया, इस बार भारतीय दंड संहिता की धारा 506 (आपराधिक धमकी) की सुनवाई के लिए। अदालत ने इस धारा में उन्हें आंशिक रूप से दोषी माना लेकिन सज़ा में बढ़ोतरी करते हुए दो साल की सश्रम कारावास और एक लाख रुपये का जुर्माना सुनाया। यह एक ऐसा फैसला था जो यह बताता है कि धमकी देना भी अब ‘राजनीतिक विशेषाधिकार’ नहीं रहा। न्यायपालिका ने यह साफ संदेश दिया कि जनता की आवाज़ दबाने की कोशिश, चाहे वह किसी विधायक के जरिए हो या किसी प्रभावशाली नेता के, अब कानून की पकड़ से बाहर नहीं है।

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राजनीतिक भूचाल और सन्नाटा: बीजेपी के अंदरूनी गलियारों में हलचल: मिश्री लाल यादव, अलीनगर से दो बार विधायक रह चुके हैं। उनका क्षेत्र में अच्छा जनाधार माना जाता है और बीजेपी में उन्हें एक मजबूत नेता के रूप में देखा जाता रहा है। लेकिन इस फैसले के बाद पार्टी के लिए यह संकट की घड़ी बन गई है। चुनावी मौसम की आहट और जनता की निगाहें अब उन मूल्यों की तरफ़ मुड़ चुकी हैं जिन्हें अक्सर चुनावी पोस्टरों में ही देखा जाता है नैतिकता, जवाबदेही और कानून का सम्मान।

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हालांकि, विधायक ने मीडिया से संक्षेप में कहा, “हम इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील करेंगे। न्याय की ऊपरी सीढ़ियाँ अभी बाकी हैं।” उनके वकील का भी कहना है कि यह फैसला अंतिम नहीं है, लेकिन इस समय वे न्यायिक हिरासत में हैं।

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पीड़ित की प्रतिक्रिया: पाँच साल की प्रतीक्षा, न्याय की जीत: उमेश मिश्रा, जो अब लगभग 60 के आसपास हैं, भावुक होते हुए मीडिया से बोले, “हमें लगता था कि हमारी आवाज़ सत्ता की शोर में खो जाएगी, पर आज न्याय ने साबित कर दिया कि सच में दम होता है। पाँच साल का संघर्ष आज सफल हो गया।

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न्याय की दीवारें बोलती हैं... इस पूरे मामले में अदालत की सक्रियता और तटस्थता प्रशंसनीय रही। यह एक ऐसी मिसाल है, जो आगे किसी भी जनप्रतिनिधि को यह सोचने पर मजबूर करेगी कि ‘विधायक’ की पहचान न्याय की परिधि के बाहर नहीं हो सकती। दरभंगा कोर्ट का यह निर्णय न केवल बिहार, बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बन चुका है। सोशल मीडिया पर इसे लेकर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ है कहीं लोग इसे "कानून की जीत" कह रहे हैं, तो कहीं इसे "राजनीतिक नैतिकता की वापसी का संकेत"।

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क्या यह फैसला भारतीय राजनीति के लिए एक नया मानक बनेगा? क्या अब हर उमेश मिश्रा को न्याय मिलेगा, भले ही सामने कोई मिश्री लाल ही क्यों न हो? न्याय की यह मशाल बुझनी नहीं चाहिए, क्योंकि समेला जैसे हजारों गांव अब इसे अपना दीपक मान बैठे हैं। और यदि यह रोशनी बनी रही, तो शायद अगली सुबह सिर्फ समेला के लिए नहीं, पूरे बिहार के लिए सुनहरी होगी।