जब दरभंगा की सोशल मीडिया पर बजने लगी सरकार की योजनाओं की नगाड़ियां: डीएम राजीव रौशन की डिजिटल दृष्टि, सत्येन्द्र प्रसाद की लेखनी और प्रशंसा-पत्रों की चमक के बीच एक युग का अवसान, और अब कौशल कुमार के कंधों पर नये भरोसे का भार
कभी राजमहलों की गूंजती पगडंडियों पर गौरवगाथाएं रची जाती थीं, आज उन्हीं धरोहरों की धरती से सोशल मीडिया पर सियासत, समाज और सेवा की मिसालें गढ़ी जा रही हैं। यह कोई संयोग नहीं, बल्कि संकल्प और समर्पण का परिणाम है कि आज दरभंगा सिर्फ किला, कर्पूरी, कवि और कनकवर्णी गौरव की ज़मीन नहीं, बल्कि डिजिटल युग की सशक्त उपस्थिति बनकर उभरा है. पढ़े पुरी खबर.......

लहेरियासराय, दरभंगा। कभी राजमहलों की गूंजती पगडंडियों पर गौरवगाथाएं रची जाती थीं, आज उन्हीं धरोहरों की धरती से सोशल मीडिया पर सियासत, समाज और सेवा की मिसालें गढ़ी जा रही हैं। यह कोई संयोग नहीं, बल्कि संकल्प और समर्पण का परिणाम है कि आज दरभंगा सिर्फ किला, कर्पूरी, कवि और कनकवर्णी गौरव की ज़मीन नहीं, बल्कि डिजिटल युग की सशक्त उपस्थिति बनकर उभरा है।
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मंगलवार की सुबह जब मुख्य सचिव की आवाज़ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जिलाधिकारी डॉ. राजीव रौशन के ऑफिस में गूंजी, तो केवल रिपोर्ट नहीं, बल्कि दरभंगा के मेहनती हाथों का मान बढ़ा। मुख्य सचिव ने खुद स्वीकार किया “प्रचार-प्रसार में पूरे बिहार में दरभंगा सबसे आगे है। यह एक मिशन है, एक मॉडल है।”
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जब सोशल मीडिया बना दरभंगा की आत्मा का विस्तार: फेसबुक की पोस्टों में सरकार की योजनाएं नाचती हैं, ट्विटर पर नीतियों की झलकियां तैरती हैं, इंस्टाग्राम की रीलों में नवाचार मुस्कुराते हैं और यूट्यूब की स्क्रीन से दरभंगा की तस्वीरें दुनिया देखती है। यह डिजिटल महायात्रा आसान नहीं थी। लेकिन इसके पीछे थे वो कुछ चेहरे जो लाइमलाइट में नहीं दिखते, मगर पूरी ताकत से पर्दे के पीछे काम करते हैं।
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इन्हीं में एक नाम है सत्येन्द्र प्रसाद, उप निदेशक, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग: उनके हाथों में न कोई तलवार थी, न कोई झंडा पर उनके की-बोर्ड की टक-टक ने न जाने कितनों को सरकारी योजनाओं का हिस्सा बना दिया। मंगलवार को जब जिलाधिकारी डॉ. राजीव रौशन ने उन्हें प्रशस्ति पत्र सौंपा, तो वह केवल एक अधिकारी का सम्मान नहीं था वह दरभंगा की डिजिटल अंतरात्मा का उत्सव था।
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सम्मान का स्वर, टीम भावना का शोर: सिर्फ सत्येन्द्र प्रसाद ही क्यों? उनके दो मजबूत सहयोगी राजेश कुमार और मनीष कुमार आनंद जो कभी कैमरे के पीछे, कभी स्टोरीबोर्ड में, कभी डिज़ाइन में और कभी कैप्शन में पूरी ताकत झोंक देते हैं, उन्हें भी प्रशस्ति पत्र देकर न केवल सम्मानित किया गया, बल्कि यह साबित कर दिया गया कि "बैकएंड" ही असली "फ्रंटलाइन" होता है।
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"हम सिर्फ तस्वीरें नहीं पोस्ट करते, भरोसा बुनते हैं" सत्येन्द्र प्रसाद: सम्मान के बाद बेहद सधे शब्दों में सत्येन्द्र प्रसाद ने कहा “हमारे लिए यह नौकरी नहीं, एक जन आंदोलन है। सरकार की योजनाएं सिर्फ अखबारों में नहीं, बल्कि हर मोबाइल स्क्रीन तक पहुंचे यह ही मिशन है। जिलाधिकारी महोदय के नेतृत्व में हम हर दिन एक नई डिजिटल ईंट जोड़ते हैं।” उन्होंने आगे कहा, “पटना से मिले निर्देशों को हम सिर्फ आदेश नहीं समझते, बल्कि प्रेरणा मानते हैं। जल-जीवन-हरियाली हो या सात निश्चय योजना, मुख्यमंत्री वृद्धावस्था पेंशन हो या उज्ज्वला योजना हमारी कोशिश है कि हर दरभंगावासी को इसकी जानकारी सोशल मीडिया से मिले।”
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राजीव रौशन: दरभंगा के डिजिटल सेनापति: डॉ. राजीव रौशन का नाम बिहार के उन प्रशासनिक अधिकारियों में आता है, जो तकनीक को केवल सजावट नहीं, प्रशासन का औजार मानते हैं। उन्होंने कहा, “सोशल मीडिया हमारे और जनता के बीच की खाई को नहीं, सेतु को दर्शाता है। जब एक गरीब महिला अपनी पेंशन की स्थिति ट्विटर पर पूछती है और कुछ घंटों में उसे समाधान मिलता है वहीं से प्रशासन की आत्मा जागती है।”उनके नेतृत्व में दरभंगा का सोशल मीडिया हैंडल आज बिहार के सबसे ज्यादा फॉलो किए जाने वाले जिलों में शुमार है। हर योजना की खबर, हर कार्यालय की सूचना, हर आयोजन का अपडेट मानो मोबाइल की स्क्रीन से प्रशासन खुद लोगों के दरवाजे पर आ खड़ा हो।
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कुछ झलकियाँ दरभंगा का डिजिटल रिपोर्ट कार्ड: ट्विटर (X): @DmDarbhanga – 90,000+ फॉलोअर्स, प्रतिदिन 10+ पोस्ट
फेसबुक: Darbhanga District Official Page – लाखों तक पहुंच
इंस्टाग्राम: योजनाओं की रोचक रील्स और विजुअल कहानियां
यूट्यूब: जनहित वीडियो, लाइव प्रसारण, अपडेट्स
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दरभंगा अब सिर्फ नक्शे में नहीं, नेटवर्क में चमकता है: यह वो दरभंगा है, जो कभी सिर्फ पुरानी हवेलियों, उर्दू शायरी, मिथिला चित्रकला और विद्यापति की विरासत के लिए जाना जाता था। पर आज...यह वो दरभंगा है, जो डिजिटल तकनीक से सशस्त्र है। जो स्क्रीन पर सरकारी योजनाओं को आम लोगों की जिंदगी में साकार करता है। जहाँ पोस्ट शेयर होने से पहले संवेदनाएं सजती हैं, और कैप्शन में समाज की पीड़ा झलकती है।
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और अब एक नई शुरुआत की ओर… इस गौरवशाली अध्याय के रचयिता डॉ. राजीव रौशन अब दरभंगा के जिलाधिकारी के रूप में अपनी भूमिका से विदा ले चुके हैं। उनकी कार्यशैली, तकनीक के साथ मानवता का सामंजस्य, और सोशल मीडिया को एक प्रशासनिक औजार से बढ़कर जनआस्था का पुल बना देना यह दरभंगा के प्रशासनिक इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। उनके नेतृत्व में सोशल मीडिया न सिर्फ सूचना का माध्यम बना, बल्कि एक ऐसी रोशनी बनी जिसमें अंधेरों में खोए हुए लोगों को सरकार की योजनाओं की राह दिखाई दी। उन्होंने दरभंगा को “डिजिटल बिहार” की दौड़ में प्रथम पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया।
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अब यह जिम्मेदारी सौपी गई है एक नए प्रशासक, नए दृष्टिकोण और नए जोश से लबरेज जिलाधिकारी श्री कौशल कुमार को। सरकारी आदेश के तहत वे अब दरभंगा की कमान संभाल चुके हैं, और सोशल मीडिया की निगरानी और विस्तार की नई इबारत उन्हीं के मार्गदर्शन में लिखी जाएगी। सवाल यह नहीं है कि वे कितना बदलेंगे, बल्कि उम्मीद यह है कि राजीव रौशन द्वारा जलाए गए इस डिजिटल दीप को वे और अधिक तेज़ रोशनी देंगे।
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राजीव रौशन को प्रणाम, कौशल कुमार से उम्मीद! क्योंकि दरभंगा सिर्फ ज़िला नहीं, एक भावना है और इस भावना की अभिव्यक्ति अब सोशल मीडिया की स्क्रीन पर चमकती है।
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"हर जिला हो दरभंगा जैसा": यह कहानी दरभंगा की है, पर सबक पूरे बिहार के लिए है। जब नेतृत्व स्पष्ट हो, तकनीक सशक्त हो, टीम प्रतिबद्ध हो और उद्देश्य जनकल्याण हो तब कोई भी जिला प्रदेश का सिरमौर बन सकता है। यह सिर्फ सोशल मीडिया का पुरस्कार नहीं था यह जनता और सरकार के बीच भरोसे का प्रमाणपत्र था।