गले पर उभरे निशान, आंखों में पिता का शोक, और व्यवस्था की चुप्पी: प्रीति झा की मौत पर मिथिला की आत्मा सवाल कर रही है आखिर कब मिलेगा इंसाफ़?
मिथिला की सांस्कृतिक धरती आज एक बार फिर चीख रही है। एक पिता की लाचार पुकार, एक माँ की सिसकती चुप्पी और न्याय की चौखट पर बिखरती उम्मीदें सबकुछ मौन है, परंतु प्रश्न गूंज रहे हैं: "क्या प्रीति झा को न्याय मिलेगा?..... पढ़े पुरी खबर

दरभंगा:- मिथिला की सांस्कृतिक धरती आज एक बार फिर चीख रही है। एक पिता की लाचार पुकार, एक माँ की सिसकती चुप्पी और न्याय की चौखट पर बिखरती उम्मीदें सबकुछ मौन है, परंतु प्रश्न गूंज रहे हैं: "क्या प्रीति झा को न्याय मिलेगा?"
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हत्या या आत्महत्या? सच्चाई पर साज़िश का पर्दा! लहेरियासराय थाना क्षेत्र के बलभद्रपुर एमपी मिश्रा चौक निवासी संतोष झा की पत्नी प्रीति झा की संदिग्ध मौत 12 मई की रात में हुई, और 13 मई को सुबह लोगों ने उसकी निर्जीव देह बिछावन पर पाई। मृतका के गले पर गहरे निशान थे, जो पिता अमरनाथ झा के अनुसार स्पष्ट रूप से गला दबाकर हत्या की ओर संकेत करते हैं।
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अमरनाथ झा ने मिथिला जन जन की आवाज से अपनी करूण व्यथा साझा करते हुए बताया: “मेरी बेटी को दामाद संतोष झा शराब के नशे में आए दिन प्रताड़ित करता था। उसका उठना-बैठना समाज विरोधी तत्वों के साथ था। मेरी बेटी एक जीवित नर्क में जी रही थी। उस रात भी मेरी नातिन लक्ष्मी प्रिया का फोन आया ‘नाना, मम्मी की हालत बहुत खराब है। शायद आप जब तक आएंगे, वह जिंदा नहीं रहेगी।’ हम दौड़े-भागे पहुँचे, लेकिन बेटी मृत पड़ी थी। गले पर गहरे निशान थे, जैसे किसी ने गला घोंट दिया हो।”
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थाना का रवैया संदिग्ध, पीड़ितों की व्यथा अपठित रह गई: प्रीति झा के माता-पिता, चाचा प्रवीण झा, राजेश चौधरी, और फुआ रेखा मिश्रा को लहेरियासराय थाना में बयान के लिए बुलाया गया। सभी ने लिखित रूप में अपना पक्ष दर्ज कराया। लेकिन किसी को बयान पढ़ाया नहीं गया, न ही हस्ताक्षर करवाया गया। अमरनाथ झा ने इसे प्रक्रिया की हत्या कहा: “कानून किताबों में बंद है, इंसाफ कागज़ों पर घुट रहा है।”
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पोस्टमार्टम रिपोर्ट देरी की काली साज़िश? 13 मई को डीएमसीएच में पोस्टमार्टम हुआ। 17 मई को 100 घंटे से अधिक बीत चुके हैं, पर रिपोर्ट अब तक परिजनों को नहीं मिली। परिजन आशंकित हैं कि रिपोर्ट को ‘आत्महत्या’ दर्शाने की कोशिश हो रही है। मिथिला जन जन की आवाज को अमरनाथ झा ने बताया कि संतोष झा के संबंध सत्ताधारी दल के एक वरिष्ठ नेता से हैं, जो पूरे मामले को राजनीतिक संरक्षण के तहत ‘मैनेज’ करने में लगे हैं — पुलिस, डॉक्टर, और मीडिया तक को।
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धमकियाँ, सन्नाटा और एक पिता का टूटता हौसला: प्रीति झा के परिवार को धमकी भरे फोन कॉल लगातार आ रहे हैं। अमरनाथ झा का कहना है, “हमारी आवाज को दबाया जा रहा है। पुलिस कोई भी कार्रवाई नहीं कर रही। नेता के डर से शायद कोई हमारी बात भी नहीं सुनना चाहता।” उन्होंने आगे कहा, “मेरी बेटी अब लौटकर नहीं आएगी। लेकिन उसकी आत्मा को न्याय चाहिए। उसके गले के निशान चीख रहे हैं। पुलिस मौन क्यों है? क्या इंसाफ बिक चुका है?”
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दर-दर की ठोकरें, न्याय के लिए: पिछले पांच दिनों में पीड़ित परिवार ने दरभंगा के एसएसपी और डीआईजी स्वप्न गौतम से मिलकर आवेदन दिया है। उनका कहना है कि कोई भी ठोस कार्रवाई नहीं हुई। सिर्फ इतना कहा जाता है कि 'पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतज़ार है।’ क्या रिपोर्ट के इंतज़ार में न्याय की हत्या होगी?
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परिवार की मांगें न्यायिक जांच, निष्पक्षता और सुरक्षा: मिथिला जन जन की आवाज से बातचीत में अमरनाथ झा ने स्पष्ट कहा: “हमें न्याय चाहिए। इस मामले की उच्च स्तरीय न्यायिक जांच होनी चाहिए। पोस्टमार्टम रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए। हमें और हमारी नातिन को सुरक्षा दी जाए।”
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क्या प्रीति झा सिर्फ एक आँकड़ा बन जाएगी? आज मिथिला पूछ रही है क्या एक बेटी की मौत पर राजनीति होगी? क्या अमरनाथ झा की चीखें अखबारों तक ही सीमित रहेंगी? क्या न्याय का सूरज सिर्फ सत्ताधारी की हवेली पर उगता है? परिजन बताते है की जब तक प्रीति झा को न्याय नहीं मिलेगा, यह मामला सिर्फ एक केस नहीं रहेगा यह हमारी व्यवस्था की परीक्षा है।
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एक पिता की पुकार: मेरी बेटी को मारा गया है। अगर कानून सोता रहा, तो कल किसी और की बेटी भी इसी तरह मार दी जाएगी। इंसाफ चाहिए... हमें सिर्फ इंसाफ चाहिए!"