"जब सवेरा भी शिक्षक से पहले नहीं जागे, तब शिक्षा के प्रहरी को सुबह 6.30 की पुकार — दरभंगा डीईओ कृष्णनंद सदा की चेतावनी में छिपी व्यवस्था सुधार की हुंकार"
शिक्षा का सूरज जब क्षितिज से झांकता है, तब उससे पहले विद्यालय का द्वार खुल जाए शायद इसी सोच को ज़मीनी हकीकत में ढालने निकले हैं दरभंगा के जिला शिक्षा पदाधिकारी कृष्णनंद सदा, जिनकी हालिया घोषणा ने जिले के समस्त शिक्षक-शिक्षिकाओं को एक कड़े अनुशासन की डोर से बांध दिया है. पढ़े पुरी खबर......

दरभंगा। मिथिला जन जन की आवाज संवाददाता वरुण भगत की विशेष रिपोर्ट: शिक्षा का सूरज जब क्षितिज से झांकता है, तब उससे पहले विद्यालय का द्वार खुल जाए शायद इसी सोच को ज़मीनी हकीकत में ढालने निकले हैं दरभंगा के जिला शिक्षा पदाधिकारी कृष्णनंद सदा, जिनकी हालिया घोषणा ने जिले के समस्त शिक्षक-शिक्षिकाओं को एक कड़े अनुशासन की डोर से बांध दिया है। शुक्रवार को विभिन्न विद्यालयों के निरीक्षण से लौटते हुए डीईओ श्री सदा ने वह आदेश जारी किया, जो अब हर शिक्षक के दिनचर्या की धुरी बनने जा रहा है। उन्होंने स्पष्ट निर्देश देते हुए कहा कि “सभी शिक्षक-शिक्षिकाएं प्रातः 6:30 बजे तक अपने-अपने विद्यालय पर उपस्थित होकर ऑनलाइन हाजिरी दर्ज करें। विलंब अथवा अनुपस्थिति की स्थिति में कठोर प्रशासनिक कार्रवाई की जाएगी।”
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यह आदेश मात्र एक समय-निर्धारण नहीं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था में जमी शिथिलता और असावधानी के विरुद्ध उठाया गया एक निर्णायक कदम प्रतीत होता है। निरीक्षण के दौरान डीईओ ने पाया कि अधिकांश विद्यालयों में पाठ योजना (लेसन प्लान) अद्यतन नहीं है, जो विभागीय निर्देशों की सीधी अवहेलना मानी जा रही है। उन्होंने इसे ‘शैक्षणिक उत्तरदायित्व से विमुखता’ की संज्ञा दी।
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डीईओ ने सभी प्रधानाध्यापकों (एचएम) को निर्देशित किया है कि वे प्रत्येक दिन यह सुनिश्चित करें कि शिक्षक-शिक्षिकाएं अपनी पाठ योजना को अद्यतन कर हस्ताक्षर के साथ पंजी में अंकित करें। चेतावनी स्पष्ट है “यदि निरीक्षण के दौरान पाठ योजना अद्यतन नहीं पाई गई, तो संबंधित प्रधानाध्यापक पर भी कार्रवाई होगी।”
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यह आदेश केवल एक नौकरशाही पत्र नहीं है, बल्कि यह उस व्यवस्था को जगाने का प्रयास है, जो वर्षों से ‘समायोजन’ और ‘सहूलियत’ की नींद में डूबी रही। सुबह 6:30 बजे की समयसीमा अपने आप में एक प्रतीक है — यह समय शिक्षा के प्रहरी को आम जन से पहले जागकर समाज का दीप जलाने की याद दिलाता है।
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हालांकि इस आदेश ने शिक्षक समुदाय में हलचल भी पैदा की है। ग्रामीण और दूरवर्ती क्षेत्रों के शिक्षक इसे प्राकृतिक असुविधाओं, परिवहन की समस्या और सुरक्षा के संदर्भ में कठिन मानते हैं। कुछ शिक्षक संगठनों ने इसे "अनावश्यक दबाव" बताया, तो कुछ ने इसे शिक्षा में सुधार की दिशा में “कड़वी लेकिन जरूरी दवा” स्वीकार किया।
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लेकिन प्रश्न यह नहीं है कि आदेश कितना कठिन है, प्रश्न यह है कि शिक्षा कितनी प्राथमिकता में है? अगर शिक्षक समय पर विद्यालय नहीं पहुंचेगा, पाठ योजना अद्यतन नहीं होगी, तो कक्षा का भविष्य कैसे संवरेगा?
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डीईओ श्री कृष्णनंद सदा का यह कदम केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि एक व्यवस्था को पुनः अनुशासित करने की कोशिश है, जहां शिक्षक केवल ज्ञानदाता नहीं, बल्कि एक अनुकरणीय अनुशासन का प्रतीक बने। और अंत में, यह आदेश उन सभी को एक सवाल की तरह झकझोरता है — "अगर शिक्षा का मंदिर समय से न खुले, तो विद्यार्थियों के सपने कब और कैसे जागेंगे?"