शिवनारायण कुमार की थानेदारी में पंजी बन गए मौन दस्तावेज़: पतौर थाना के सिरिस्ता में जब पहुँची एसएसपी जगुनाथ रेड्डी जलारेड्डी की पैनी निगाह, तो निकला लापरवाही का जिन्न और सस्पेंड हुआ सिस्टम

24 जुलाई 2025 की दोपहर, समय लगभग 3:30 बजे। तपती दोपहर में जब आमजन घरों में पंखे के नीचे सुस्ताने लगे थे, दरभंगा के वरीय पुलिस अधीक्षक ने उस खामोशी को तोड़ने का निश्चय किया जो महीनों से पतौर थाना की दीवारों में पल रही थी। यह औचक निरीक्षण नहीं था, यह था एक सन्नाटा तोड़ने का अभियान। जहाँ वर्दी को अनुशासन का प्रतीक माना जाता है, वहाँ पतौर थाने में वर्दी के भीतर सादे लिवास में लिपटी लापरवाही एसएसपी की निगाहों से बच न सकी. पढ़े पुरी खबर......

शिवनारायण कुमार की थानेदारी में पंजी बन गए मौन दस्तावेज़: पतौर थाना के सिरिस्ता में जब पहुँची एसएसपी जगुनाथ रेड्डी जलारेड्डी की पैनी निगाह, तो निकला लापरवाही का जिन्न और सस्पेंड हुआ सिस्टम
शिवनारायण कुमार की थानेदारी में पंजी बन गए मौन दस्तावेज़: पतौर थाना के सिरिस्ता में जब पहुँची एसएसपी जगुनाथ रेड्डी जलारेड्डी की पैनी निगाह, तो निकला लापरवाही का जिन्न और सस्पेंड हुआ सिस्टम

दरभंगा: 24 जुलाई 2025 की दोपहर, समय लगभग 3:30 बजे। तपती दोपहर में जब आमजन घरों में पंखे के नीचे सुस्ताने लगे थे, दरभंगा के वरीय पुलिस अधीक्षक ने उस खामोशी को तोड़ने का निश्चय किया जो महीनों से पतौर थाना की दीवारों में पल रही थी। यह औचक निरीक्षण नहीं था, यह था एक सन्नाटा तोड़ने का अभियान। जहाँ वर्दी को अनुशासन का प्रतीक माना जाता है, वहाँ पतौर थाने में वर्दी के भीतर सादे लिवास में लिपटी लापरवाही एसएसपी की निगाहों से बच न सकी।

पतौर थाने की स्थिति: पंजियों का श्मशान और जिम्मेदारी की कब्र: एसएसपी ने जब थाना परिसर में कदम रखा तो उनकी पहली झलक ही व्यवस्था की बदहाली पर थी। थानेदार शिवनारायण कुमार, जिन्हें वर्दी में चौकस और कर्मठ होना चाहिए था, वे सादे लिवास में थाने के वातावरण से बिल्कुल बेज़ार नज़र आए। मगर असल झटका तब लगा जब थाना के मूल दस्तावेज यानी पंजी (डायरी) की हालत पर नज़र पड़ी।

1.आगंतुक पंजी: 24 जुलाई को महज एक आवेदन की प्रविष्टि थी, मगर जाँच हेतु पदाधिकारी का नाम नहीं। शेष तीन आवेदन ऐसे ही पड़े थे जैसे ये राज्य नहीं, किसी गाँव का पंजी हो।

2. थाना दैनिकी: 24 तारीख को सुबह 8 बजे तक कुछ लिखा गया था, इसके बाद मानो पुलिसिंग की दुनिया वहीं रुक गई हो।

3. सम्मन पंजी: 22 जुलाई के बाद कोई अद्यतन नहीं। तामिला का हस्ताक्षर तक नदारद। यानी आदेश भेजा गया या नहीं, खुद पुलिस भी नहीं जानती!

4. अजमानतीय वारंट पंजी: 27 जून को अंतिम प्रविष्टि, और 37वें क्रमांक पर दर्ज वारंट की प्राप्ति की तिथि तक दर्ज नहीं।

5. जमानतीय वारंट पंजी: 16 जुलाई के बाद का कोई अद्यतन नहीं।

6. मालखाना पंजी: 30 जून के बाद पूरी तरह ठप्प। पुलिस खुद भूल चुकी थी कि क्या जब्त किया गया और क्या नहीं।

7. हाजत पंजी और गिरफ्तारी पंजी: अंतिम प्रविष्टि 26 मार्च 2025! यानी लगभग 4 महीने से थाने में कोई अपराधी न आया, न पकड़ा गया, न कोई दर्ज हुआ!

8. OD पंजी: ड्यूटी पर तैनात अधिकारी का नाम तो दर्ज है, मगर हस्ताक्षर नहीं। मतलब ड्यूटी सिर्फ नाम की, ज़िम्मेदारी नदारद।

एसएसपी की दृष्टि: कलम से निकला आदेश, वर्दी से गिरा मान: जब वरीय पुलिस अधीक्षक ने ये सारी रिपोर्ट पढ़ी, उन्हें यह महसूस हुआ कि यह थाना अब सिर्फ ईंट-पत्थर की संरचना नहीं बल्कि लापरवाही, उपेक्षा और मनमानी की जीती-जागती मिसाल बन चुका है।थानाध्यक्ष शिवनारायण कुमार की सादगी वर्दी तक सीमित नहीं थी, उन्होंने जिम्मेदारियों से भी मुक्ति ले रखी थी। उनके कार्यालय की फाइलें बोल रही थीं कि "यहाँ अपराध नहीं घटते, सिर्फ नजरअंदाज़ किए जाते हैं।"

एसएसपी ने बिना किसी देरी के आदेश पारित किया: "पु०अ०नि० शिवनारायण कुमार, थानाध्यक्ष पतौर थाना को तत्काल प्रभाव से जीवन यापन भत्ता पर निलंबित किया जाता है। निलंबन अवधि में इनका मुख्यालय पुलिस केन्द्र, दरभंगा रहेगा।" यह कोई सामान्य प्रशासनिक कार्यवाही नहीं थी, यह था एक सड़ी हुई व्यवस्था के खिलाफ गुस्से की नायाब प्रतिक्रिया।

इस घटना ने ग्रामीण पुलिसिंग व्यवस्था पर कई सवाल खड़े किए हैं:

क्या हर थाना, जहाँ एसएसपी की नज़र न पहुँचे, वही हालात से गुजर रहा है?

क्या पुलिसिया पंजियाँ अब महज़ औपचारिकता बनकर रह गई हैं?

अपराध दर दर्ज न होने का मतलब अपराध न होना है या उसे छुपाना?

जब थाना ही अपराध के आँकड़े छुपा ले, तब इंसाफ की उम्मीद कौन करे?

एक जरूरी चेतावनी: यह सिर्फ पतौर की कहानी नहीं: यह कहानी सिर्फ पतौर थाना की नहीं है, यह उन तमाम थानों की है जहाँ समय की रफ्तार से अधिक तेज़ है लापरवाही की जड़ें। जहाँ पुलिस की कलम थक गई है, कागज सूख गए हैं, और थानों के कमरे सन्नाटे की गवाही दे रहे हैं। जहाँ अपराध पंजियों में नहीं दर्ज होता, वहाँ अपराधी जेल नहीं, समाज में घूमते हैं। एसएसपी दरभंगा द्वारा की गई यह कार्यवाही केवल एक थानाध्यक्ष को सस्पेंड करना नहीं, बल्कि पूरे पुलिस सिस्टम को एक कड़ा संदेश देना है: "कर्तव्य से समझौता करने वालों की वर्दी अब उजली नहीं रहेगी।" हम पत्रकारों की ज़िम्मेदारी है कि हम सिर्फ घटनाओं को नहीं, उनके पीछे की लापरवाह व्यवस्थाओं को भी उजागर करें। ताकि अगला पतौर कोई और थाना न बने, और अगला निलंबन किसी अफसर की आखिरी चेतावनी न हो, बल्कि एक व्यवस्था की आत्मपरीक्षा का परिणाम हो।