इस जन्म में नहीं करूंगी विवाह, बिहार ही है मेरा परिवार": पुष्पम प्रिया चौधरी की राजनीति नहीं, तपस्या है यह पढ़िए वह वैचारिक और आत्मबलिदानी गाथा, जहाँ एक स्त्री ने निजी सुख नहीं, जनकल्याण को चुना… सत्ता नहीं, संवेदना बदलने निकली हैं....

इस जन्म में शादी नहीं करूंगी... बिहार के बच्चों का भविष्य संवारने के लिए खुद का परिवार नहीं बनाऊंगी। अगला जन्म मिला तो शायद विवाह करूंगी, लेकिन इस जन्म में मेरा हर कदम बिहार के लिए होगा।" जब ये वाक्य पुष्पम प्रिया चौधरी के मुख से दरभंगा में निकले, तो मानो पूरा माहौल कुछ क्षणों के लिए मौन हो गया। यह कोई राजनेता का चुनावी वादा नहीं था, बल्कि एक स्त्री का अपने जीवन का घोषणापत्र था। राजनीति जिसे कई लोग एक अवसर के रूप में देखते हैं, पुष्पम प्रिया के लिए यह एक युद्ध है जिसमें हथियार नहीं, विचार चाहिए; भाषण नहीं, बलिदान चाहिए. पढ़े पुरी खबर......

इस जन्म में नहीं करूंगी विवाह, बिहार ही है मेरा परिवार": पुष्पम प्रिया चौधरी की राजनीति नहीं, तपस्या है यह पढ़िए वह वैचारिक और आत्मबलिदानी गाथा, जहाँ एक स्त्री ने निजी सुख नहीं, जनकल्याण को चुना… सत्ता नहीं, संवेदना बदलने निकली हैं....
इस जन्म में नहीं करूंगी विवाह, बिहार ही है मेरा परिवार": पुष्पम प्रिया चौधरी की राजनीति नहीं, तपस्या है यह पढ़िए वह वैचारिक और आत्मबलिदानी गाथा, जहाँ एक स्त्री ने निजी सुख नहीं, जनकल्याण को चुना… सत्ता नहीं, संवेदना बदलने निकली हैं....

बिहार/दरभंगा:- "इस जन्म में शादी नहीं करूंगी... बिहार के बच्चों का भविष्य संवारने के लिए खुद का परिवार नहीं बनाऊंगी। अगला जन्म मिला तो शायद विवाह करूंगी, लेकिन इस जन्म में मेरा हर कदम बिहार के लिए होगा।" जब ये वाक्य पुष्पम प्रिया चौधरी के मुख से दरभंगा में निकले, तो मानो पूरा माहौल कुछ क्षणों के लिए मौन हो गया। यह कोई राजनेता का चुनावी वादा नहीं था, बल्कि एक स्त्री का अपने जीवन का घोषणापत्र था। राजनीति जिसे कई लोग एक अवसर के रूप में देखते हैं, पुष्पम प्रिया के लिए यह एक युद्ध है जिसमें हथियार नहीं, विचार चाहिए; भाषण नहीं, बलिदान चाहिए।

विरासत और वैचारिक बीज: पुष्पम प्रिया चौधरी का जन्म दरभंगा, बिहार में हुआ। उनके पिता विनोद कुमार चौधरी जनता दल (यूनाइटेड) के पूर्व विधान परिषद सदस्य रहे हैं। राजनीति का परिवेश उनके बचपन में था, लेकिन यह स्पष्ट था कि वह राजनीति की परंपरागत शैली से भिन्न रास्ता अपनाना चाहती थीं। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन और डेवलपमेंट की पढ़ाई की। इससे पूर्व उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स से भी उच्च शिक्षा ग्रहण की। ये शैक्षणिक पृष्ठभूमि उनके वैचारिक ढांचे को गहराई देती है जहाँ राजनीति सेवा है, और सेवा तपस्या।

द प्लूरल्स पार्टी की नींव: महिला दिवस का संदेश: 8 मार्च 2020 को, जब दुनिया अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मना रही थी, उसी दिन पुष्पम प्रिया चौधरी ने अपनी पार्टी द प्लूरल्स (The Plurals) की घोषणा की। उन्होंने अख़बारों में पूरे पन्ने का विज्ञापन छपवाया जिसमें वे खुद को मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार घोषित कर रही थीं। बिहार की राजनीति में यह साहसिक और असामान्य कदम था। उन्होंने अपने घोषणा पत्र में साफ कहा कि "बिहार में पिछले तीस वर्षों में राजनीतिक सुशासन नहीं, बल्कि कुशासन रहा है। अब समय आ गया है कि बिहार को प्रगतिशील और आधुनिक राज्य के रूप में पुनर्गठित किया जाए।"

बहुलता, प्रगतिशीलता और सच्चा लोकतंत्र: द प्लूरल्स पार्टी की मूल आत्मा है बहुलता (Pluralism)। पुष्पम मानती हैं कि बिहार जातिवाद, धर्मवाद और पहचान की राजनीति के जाल में फंसा हुआ है। उन्होंने पार्टी की वैचारिक रेखा इस प्रकार खींची: “जाति नहीं, योग्यता देखो; धर्म नहीं, विकास देखो; चेहरा नहीं, सोच देखो।” पार्टी का नारा था "Let’s Open Bihar!" और 30 वर्षों के राजनीतिक लॉकडाउन को तोड़ने की हुंकार उन्होंने भरी।

2020 का विधानसभा चुनाव: सपनों का पहला संघर्ष: द प्लूरल्स पार्टी ने 2020 के विधानसभा चुनाव में 148 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। पार्टी को कुल 2 लाख से अधिक वोट मिले, लेकिन एक भी सीट पर विजय नहीं मिली। पुष्पम प्रिया खुद दो सीटों बांकीपुर और मधेपुरा से चुनाव लड़ीं और दोनों पर पराजित हुईं। लेकिन इससे उनका उत्साह टूटा नहीं। वे कहती हैं, "परिणाम नहीं, प्रक्रिया मायने रखती है। हम जनता से सच बोलते हैं, झूठे वादे नहीं करते।"

2025 की तैयारी: पूर्ण युद्ध की भूमिका: 2025 का चुनाव अब उनके लिए केवल एक चुनाव नहीं, बल्कि अस्तित्व और आदर्श का परीक्षण है। उन्होंने एलान किया है कि इस बार पार्टी 243 की 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। चुनाव चिन्ह 'सीटी' है प्रतीक है चेतना का, आवाज़ उठाने का। इस बार वे खुद दरभंगा से चुनाव लड़ेंगी अपने ही घर से, जनता की अदालत में उतरेंगी। उनका मास्क पहनना एक सांकेतिक संदेश है "जिस दिन बिहार की किसी पार्टी ने महिला को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया, उस दिन मैं मास्क हटा दूंगी।"

व्यक्तिगत बलिदान: जब जीवन राजनीति बन गया: एक साक्षात्कार में जब उन्होंने यह कहा कि वे इस जन्म में विवाह नहीं करेंगी, तो यह मात्र व्यक्तिगत चुनाव नहीं था, बल्कि एक वैचारिक निर्णय था। उन्होंने कहा, "अगर शादी कर लूं तो परिवार की ज़िम्मेदारियाँ होंगी, और मैं राजनीति में पूरे मन से काम नहीं कर पाऊंगी। महिलाओं पर शादी के बाद ज़िम्मेदारी अधिक होती है, इसलिए मैंने यह फैसला लिया है।" यह आत्म-बलिदान केवल निजी नहीं, सामाजिक भी है। वे यह दिखा रही हैं कि राजनीति पुरुषों की बपौती नहीं है। एक महिला भी नेतृत्व कर सकती है, निर्णय ले सकती है, और त्याग कर सकती है नारे नहीं, उदाहरण देकर।

राजनीति में शुचिता: जाति और चेहरों के पार: पुष्पम बार-बार इस बात को दोहराती हैं कि बिहार की राजनीति में चेहरे और जाति ही निर्णायक बनते हैं, विचार और नीतियाँ नहीं। वे कहती हैं, "जिस दिन हम एक भी सीट जीत लेंगे, उसी दिन बिहार की जनता का मानसिक लॉकडाउन टूटेगा। लोग समझेंगे कि सोच भी वोट पाने का आधार हो सकता है।" उनकी राजनीति किसी पार्टी की नकल नहीं है, और न ही वो सत्ता के लिए समझौता करने को तैयार हैं। वे खुलकर कहती हैं कि "मेरे पिता का नाम अगर लालू यादव होता, तो शायद मेरी राह आसान होती, लेकिन मैं संघर्ष का रास्ता चुनती हूँ, सुविधा का नहीं।"

पंचायत विवाद और सामाजिक संदेश: हाल ही में वायरल एक ऑडियो क्लिप में भाई वीरेंद्र और पंचायत सचिव के बीच बहस पर पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए पुष्पम ने कहा, "लोकतंत्र में सचिव और जनप्रतिनिधि दोनों को एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए। किसी जनप्रतिनिधि को धमकाना भी ठीक नहीं, और उसे अपमानित करना भी अनुचित है।" यह प्रतिक्रिया राजनीति में गरिमा, मर्यादा और लोकसेवा की भावना की स्थापना की कोशिश है जो इस समय देश की राजनीति में लुप्त होती जा रही है।

अनिरुद्ध आचार्य और स्त्री-सम्मान: एक कथावाचक द्वारा महिलाओं पर दिए गए बयान पर उन्होंने सख्त प्रतिक्रिया दी: "जिन महिलाओं की बात वो कर रहे हैं, वे उनकी बेटी के समान हैं। समाज की आधी आबादी को एक-दो घटनाओं के आधार पर आंकना अनुचित है।" पुष्पम की राजनीति में स्त्री-सशक्तिकरण नारे तक सीमित नहीं है, यह उनके व्यवहार और निर्णयों में स्पष्ट है। वे स्वयं एक उदाहरण हैं जो विवाह, संतान और पारिवारिक जीवन के त्याग के साथ समाज के लिए जीवन को समर्पित कर रही हैं।

बिहार के भविष्य की उम्मीद: पुष्पम प्रिया चौधरी एक राजनेता नहीं, बल्कि एक विचारधारा हैं। वे प्रतीक हैं उस नयी राजनीति की जो जातिवाद, वंशवाद और अवसरवाद से अलग है। वे राजनीति में शुचिता, शिक्षा, संवेदना और दृष्टि लेकर आई हैं। उनका संघर्ष अभी लंबा है, लेकिन यह संघर्ष ही तो परिवर्तन की शुरुआत है।2025 के चुनाव में परिणाम जो भी हों, पुष्पम प्रिया ने यह सिद्ध कर दिया है कि राजनीति केवल सत्ता का खेल नहीं, सेवा का साधन भी हो सकता है। और यदि जनता ने उनका साथ दिया, तो बिहार को शायद वह नेतृत्व मिल सकेगा, जो केवल कुर्सी पर नहीं, जनता के दिल में बैठे।