"जब लोकतंत्र के नाम पर पुलिसिया कलम ने लिखा सत्ता की सनक का परिचय: राहुल गांधी पर दरभंगा में 09 लाउडस्पीकर, 100 कुर्सियों और शिक्षा संवाद के लिए धारा 188 व 223 में केस दर्ज, छात्रावास सील, और प्रशासन की चुप्पी में दबी छात्र क्रांति की चीख"

15 मई 2025 का दिन दरभंगा के राजनीतिक, प्रशासनिक और सामाजिक इतिहास में एक अनूठा अध्याय बन गया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद राहुल गांधी का दरभंगा अंबेडकर छात्रावास में प्रस्तावित कार्यक्रम मात्र एक आम जन संवाद नहीं था, बल्कि वह शिक्षा, समानता और सामाजिक न्याय के नाम पर एक संदेश देने का प्रयास था। लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था। जिला प्रशासन ने इसे अनुमति नहीं दी, और जब कार्यक्रम हुआ, तो उस पर दो अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज हो गईं. पढ़े पुरी खबर........

"जब लोकतंत्र के नाम पर पुलिसिया कलम ने लिखा सत्ता की सनक का परिचय: राहुल गांधी पर दरभंगा में 09 लाउडस्पीकर, 100 कुर्सियों और शिक्षा संवाद के लिए धारा 188 व 223 में केस दर्ज, छात्रावास सील, और प्रशासन की चुप्पी में दबी छात्र क्रांति की चीख"
"जब लोकतंत्र के नाम पर पुलिसिया कलम ने लिखा सत्ता की सनक का परिचय: राहुल गांधी पर दरभंगा में 09 लाउडस्पीकर, 100 कुर्सियों और शिक्षा संवाद के लिए धारा 188 व 223 में केस दर्ज, छात्रावास सील, और प्रशासन की चुप्पी में दबी छात्र क्रांति की चीख"

दरभंगा: 15 मई 2025 का दिन दरभंगा के राजनीतिक, प्रशासनिक और सामाजिक इतिहास में एक अनूठा अध्याय बन गया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद राहुल गांधी का दरभंगा अंबेडकर छात्रावास में प्रस्तावित कार्यक्रम मात्र एक आम जन संवाद नहीं था, बल्कि वह शिक्षा, समानता और सामाजिक न्याय के नाम पर एक संदेश देने का प्रयास था। लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था। जिला प्रशासन ने इसे अनुमति नहीं दी, और जब कार्यक्रम हुआ, तो उस पर दो अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज हो गईं। यही नहीं, इसे लेकर स्थानीय प्रशासन और कांग्रेस पार्टी के बीच टकराव की रेखाएं स्पष्ट दिखीं।

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प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, दरभंगा में 15.05.25 को राहुल गांधी का "लोकसंवाद" कार्यक्रम जिला कल्याण छात्रावास परिसर (राजनगर भवन) में आयोजित होने वाला था। कांग्रेस पार्टी की ओर से इसके लिए प्रशासन से अनुमति मांगी गई थी, जिसे अस्वीकृत कर दिया गया था। अनुमंडल दंडाधिकारी, सदर, दरभंगा द्वारा धारा 163 के तहत स्पष्ट निषेधाज्ञा आदेश जारी किया गया था और यह निर्णय लिया गया था कि कार्यक्रम को रोकना प्रशासन की जिम्मेदारी है।

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इस आदेश के बावजूद, कांग्रेस नेताओं और छात्रों की उपस्थिति में कार्यक्रम आयोजित किया गया। राहुल गांधी के साथ सांसद आदर्श, नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) के कार्यकर्ता, छात्र नेता और विभिन्न दलों के समर्थक मौजूद रहे। टेबल, कुर्सियां, माइक और पोस्टर आदि लगाकर बाकायदा कार्यक्रम संपन्न हुआ।

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यह घटना न केवल एक प्रशासनिक आदेश की अवहेलना थी, बल्कि यह इस बात का संकेत भी थी कि जनता और नेताओं में संवाद की भूख कितनी प्रबल है। प्रशासन की चेतावनी के बावजूद, यह संवाद 18 नामजद और लगभग 100 अज्ञात लोगों की भागीदारी में संपन्न हुआ, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि प्रतिबंध मात्र एक औपचारिकता रह गया।

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प्राथमिकी का संदर्भ और कानूनी पहलू: इस घटनाक्रम पर दो अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज की गईं: मामला संख्या 315/25: धारा 188(2)/189(5)/132 भारतीय दंड संहिता एवं 09 लाउडस्पीकर एक्ट के तहत दर्ज हुआ। वादी आलोक कुमार, जिला कल्याण पदाधिकारी, दरभंगा रहे। मामला संख्या 316/25: धारा 223 भारतीय दंड संहिता एवं 09 लाउडस्पीकर एक्ट के तहत, वादी खुर्शीद आलम, प्रखंड कल्याण पदाधिकारी, दरभंगा द्वारा दर्ज की गई। यह दोनों मामले सरकारी आदेशों की अवहेलना, बिना अनुमति के ध्वनि विस्तारक यंत्र का उपयोग, तथा शांति भंग की संभावना को देखते हुए दर्ज किए गए।

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प्रेस विज्ञप्ति में यह स्पष्ट किया गया कि घटना स्थल पर वीडियोग्राफी की गई है और डिजिटल साक्ष्य उपलब्ध हैं। इनकी सहायता से अन्य अज्ञात लोगों की पहचान की जा रही है। प्रशासन इसे अनुशासनहीनता और कानून व्यवस्था की दृष्टि से गंभीर उल्लंघन मान रहा है। जिला कल्याण पदाधिकारी श्री आलोक कुमार और प्रखंड कल्याण पदाधिकारी श्री खुर्शीद आलम की ओर से की गई प्राथमिकी इस बात की पुष्टि करती है कि प्रशासन इसे मात्र एक राजनीतिक गतिविधि नहीं, बल्कि विधि व्यवस्था का अतिक्रमण मान रहा है। लोकतंत्र, संवाद और सरकारी निर्देशों के बीच फंसी संवेदनाएं:

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इस पूरी घटना में कुछ महत्वपूर्ण सवाल खड़े होते हैं: क्या प्रशासन का अनुमति न देना लोकतांत्रिक संवाद की हत्या नहीं है? क्या नेताओं को आम जन से संवाद करने के लिए प्रशासनिक अनुमति पर आश्रित रहना चाहिए? क्या छात्रों को शिक्षा, न्याय और समानता के विषय पर चर्चा करने से रोका जाना उचित है?

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यह केवल एक कार्यक्रम नहीं था, यह उस भूख का प्रतीक था जो एक बेहतर समाज की कल्पना में बसती है। राहुल गांधी का यह संवाद शिक्षा न्याय के तहत प्रस्तावित था, जिसे रोककर प्रशासन ने एक सख्त और नियंत्रित छवि प्रस्तुत की है।

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दरभंगा की धरती पर यह घटना महज एक प्रशासनिक विवाद नहीं है, यह लोकतंत्र और जनसंवाद की सीमाओं की परख का एक उदाहरण बन चुकी है। जब नेता जनता से सीधा संवाद करना चाहते हैं, और जब छात्रों की आंखों में उम्मीदें तैर रही होती हैं तब यदि प्रशासन रोके, तो यह विचार करना आवश्यक हो जाता है कि सत्ता और समाज के बीच कौन-सी दीवारें खड़ी हो रही हैं। दो प्राथमिकी दर्ज हुईं, वीडियोग्राफी हो रही है, पहचान की जा रही है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या लोकतंत्र में सवाल पूछना, संवाद करना, और विचार रखना भी एक अपराध बन गया है?