पढ़िए! बिहार पुलिस के चेहरे पर तमाचा बनकर आई वो रात, जब विकास कुमार नाम का तस्कर अस्पताल से नहीं, सिस्टम की नींव से भाग गया... और थानाध्यक्ष से लेकर चौकीदार तक बन गए इस थ्रिलर के साइड कैरेक्टर!
बिहार का दरभंगा जिला... एक ओर इतिहास, संस्कृति और साहित्य की भूमि दूसरी ओर अपराध और अव्यवस्था के बीच सिसकता हुआ आमजन। और इस बार, मब्बी थाना क्षेत्र से निकली एक ऐसी कहानी, जो न केवल पुलिसिया प्रणाली की पोल खोलती है, बल्कि यह भी बताती है कि अपराधी अब फिल्मी पर्दे नहीं, प्रशासनिक कमज़ोरियों पर भरोसा करते हैं। यह रिपोर्ट किसी फिक्शन या काल्पनिक स्क्रिप्ट से कम नहीं लगती पर अफसोस, यह हकीकत है. पढ़े पुरी रिपोर्ट.....

बिहार का दरभंगा जिला... एक ओर इतिहास, संस्कृति और साहित्य की भूमि दूसरी ओर अपराध और अव्यवस्था के बीच सिसकता हुआ आमजन। और इस बार, मब्बी थाना क्षेत्र से निकली एक ऐसी कहानी, जो न केवल पुलिसिया प्रणाली की पोल खोलती है, बल्कि यह भी बताती है कि अपराधी अब फिल्मी पर्दे नहीं, प्रशासनिक कमज़ोरियों पर भरोसा करते हैं। यह रिपोर्ट किसी फिक्शन या काल्पनिक स्क्रिप्ट से कम नहीं लगती पर अफसोस, यह हकीकत है। एक शराब तस्कर की गिरफ्तारी, उसका "सीने में दर्द", फिर अस्पताल में भर्ती, फिर रात के अंधेरे में उसका 'एक्टर' बन जाना और पुलिस की आंखों में धूल झोंककर गायब हो जाना यह कोई वेब सीरीज़ का एपिसोड नहीं, बल्कि मब्बी थाना का जीता-जागता केस है।
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बस से उतरा एक 'विकास'... जो दरअसल, कानून की नींद उड़ाने वाला साबित होगा!
शनिवार की दोपहर, पटना से दरभंगा-मुजफ्फरपुर फोरलेन होते हुए एक बस दरभंगा की ओर बढ़ रही थी। उसी बस में एक युवक विकास कुमार, जो वैशाली जिले के हाजीपुर का रहने वाला बताया गया एक काले रंग के ट्रॉली बैग के साथ सवार था। लेकिन जैसे ही बस मब्बी के निकट पहुंची, विकास एकाएक घबराकर उतरने लगा। उसकी चाल, उसकी आंखों का डर और बैग को बार-बार सहेजना यह सब देखकर पुलिस को शक हुआ। पुलिस ने पीछा किया, और युवक खेतों की ओर दौड़ पड़ा। यह वह क्षण था, जब नाटक का पहला परदा उठ चुका था।
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बैग खुला, और कानून की नाक के नीचे 19.74 लीटर शराब मिली!
पुलिस ने उसे धर दबोचा। बैग की तलाशी ली गई नतीजा? अलग-अलग विदेशी ब्रांड की कुल 19.74 लीटर शराब! बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू है। इस हालत में इतनी बड़ी मात्रा में शराब की बरामदगी ने पुलिस को चौंका दिया। युवक को तुरंत मब्बी थाना लाया गया। लेकिन शायद पुलिस को अंदाज़ा नहीं था कि उनका सामना सिर्फ तस्कर से नहीं, एक 'कलाकार' से हो रहा है।
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थाना बना रंगमंच, और कलाकार ने शुरू किया दर्द का अभिनय!
थाने पहुंचते ही विकास कुमार अचानक ज़ोर से चिल्लाने लगा, सीना फट रहा है... दम घुट रहा है... मर जाऊंगा...! सिर्फ आवाज़ ही नहीं, उसने अपने शरीर को ज़ोर से ज़मीन पर पटकना शुरू कर दिया। पुलिसवालों के चेहरे पर तनाव आ गया। डर था कि अगर कुछ हो गया तो थानेदार से लेकर सिपाही तक सब सस्पेंड। कोई मेडिकल जांच नहीं, कोई प्राथमिक पूछताछ नहीं सीधे एंबुलेंस बुलाई गई और उसे कादिराबाद स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती करा दिया गया।
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अस्पताल का बेड बना भागने का रनवे और चौकीदार बना सबसे बड़ा मज़ाक! अस्पताल में उसका इलाज शुरू हुआ। डॉक्टरों ने "ऑक्सीजन" पर रखा, ECG किया गया। लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल था उसकी निगरानी किसके जिम्मे?
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जवाब मिला : सिर्फ एक चौकीदार। जी हां! 19 लीटर शराब के साथ पकड़ा गया अपराधी, जिसने पहले ही ड्रामा रच दिया था उसे देख रही थी मात्र एक चौकीदार की नींद। रात के करीब 3 बजे अस्पताल के सीसीटीवी फुटेज में जो दिखा, वह पुलिस महकमे के लिए एक तमाचा है। विकास कुमार धीरे-धीरे बेड से उठता है, नर्सिंग स्टेशन की तरफ देखता है, चौकीदार की ओर नज़र डालता है, फिर अपने जूते पहनता है और बिना किसी डर के दरवाज़ा खोलकर निकल जाता है! बाहर ना कोई पुलिस, ना कोई पिकेट, ना कोई अलार्म सिस्टम। सिर्फ दरवाज़ा और उसके उस पार आज़ादी।
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सुबह की चाय और पुलिस की नींद एक साथ टूटी पर तब तक देर हो चुकी थी!
सुबह करीब 5 बजे जब चौकीदार की नींद खुली, तो अस्पताल का बेड खाली था। वह हड़बड़ाकर बाहर दौड़ा, इमरजेंसी स्टाफ को जगाया गया और फिर मब्बी थाना को फोन किया गया। पर तब तक 2 घंटे से ज्यादा का वक्त बीत चुका था। पुलिस पहुंची, आस-पास के इलाकों में छापेमारी शुरू हुई, रेलवे स्टेशन से लेकर हाईवे तक तलाशी लेकिन विकास कुमार कहीं नहीं मिला।
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पुलिस की खामोशी, थानाध्यक्ष की चुप्पी और जनता का सवाल!
घटना को चार दिन बीत चुके हैं। मब्बी थानाध्यक्ष सुशील कुमार ने अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। पुलिस अधीक्षक या एसएसपी की ओर से भी कोई प्रेस वार्ता नहीं हुई।
दरभंगा की जनता पूछ रही है:
इतनी बड़ी चूक कैसे हुई?
क्या यह सिर्फ चौकीदार की गलती थी या पूरी प्रणाली की लापरवाही?
क्या किसी अंदरूनी मिलीभगत से विकास भागा?
क्या यह सिर्फ एक तस्कर की कहानी है या पीछे कोई बड़ा सिंडिकेट?
'विकास' नामक यह तस्कर नहीं, व्यवस्था का आईना है!
विकास कुमार नामक यह युवक महज़ एक शराब तस्कर नहीं है वह बिहार पुलिस की लापरवाह प्रणाली का जीवंत उदाहरण है। वह इस बात का प्रतीक है कि अगर आप थोड़ा अभिनय जानते हैं, अगर आपकी आंखों में थोड़ा पानी और मुंह में कुछ दर्द का नाटक हो तो आप कानून की नज़रें चुरा सकते हैं। किसी भी गंभीर अपराधी को अगर केवल एक चौकीदार की निगरानी में छोड़ दिया जाए, तो यह प्रशासनिक हत्या नहीं तो और क्या है?
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ये सिर्फ विकास की नहीं, एक 'प्रणालीगत गिरावट' की कहानी है!
अब सवाल यह है कि क्या विकास कुमार की गिरफ्तारी फिर होगी? क्या उसे पकड़ने के लिए कोई विशेष टीम बनी है? क्या पुलिस इस बार सीखेगी या फिर अगली बार कोई और विकास आएगा, जो दर्द का अभिनय करके व्यवस्था को फिर ठगेगा? अगर आज यह सवाल नहीं उठे, तो कल इसी अस्पताल से कोई गैंगस्टर, कोई कातिल या कोई बड़े स्तर का अपराधी भागेगा और तब शायद केवल चौकीदार नहीं, पूरा थाना सो रहा होगा!मब्बी की उस रात ने यह बता दिया अपराधी सिर्फ कानून से नहीं, कानून की लापरवाही से भी भागता है!
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विशेष नोट : यह रिपोर्ट जनता के प्रति जवाबदेही और प्रशासनिक सजगता की मांग करती है। हम सवाल उठाते रहेंगे, क्योंकि पत्रकारिता सो गई तो अगला विकास कौन होगा, यह तय नहीं किया जा सकेगा!