"संविधान की प्रति लिए राहुल पहुँचे दरभंगा, छात्रावास बना सियासत का मंच संवाद की ओट में दिखी मनमानी, मंत्री सरावगी बोले: ‘यह धरती तर्क की है, नौटंकी की नहीं’

दरभंगा की धरती, जिसे विद्वानों ने तर्क और तप की भूमि कहा है, पिछले दिनों फिर से राजनीतिक गहमा-गहमी का केंद्र बनी रही। वजह थी कांग्रेस नेता राहुल गांधी का बहुप्रतीक्षित दौरा और उनका “शिक्षा न्याय संवाद” कार्यक्रम, जिसे उन्होंने दरभंगा अंबेडकर छात्रावास परिसर में आयोजित किया। यह कार्यक्रम जितना संवाद का माध्यम बना, उससे कहीं अधिक यह सत्ता और विपक्ष के बीच तीखी बयानबाज़ी का कारण बन गया. पढ़े पुरी खबर......

"संविधान की प्रति लिए राहुल पहुँचे दरभंगा, छात्रावास बना सियासत का मंच संवाद की ओट में दिखी मनमानी, मंत्री सरावगी बोले: ‘यह धरती तर्क की है, नौटंकी की नहीं’
"संविधान की प्रति लिए राहुल पहुँचे दरभंगा, छात्रावास बना सियासत का मंच संवाद की ओट में दिखी मनमानी, मंत्री सरावगी बोले: ‘यह धरती तर्क की है, नौटंकी की नहीं’

दरभंगा की धरती, जिसे विद्वानों ने तर्क और तप की भूमि कहा है, पिछले दिनों फिर से राजनीतिक गहमा-गहमी का केंद्र बनी रही। वजह थी कांग्रेस नेता राहुल गांधी का बहुप्रतीक्षित दौरा और उनका “शिक्षा न्याय संवाद” कार्यक्रम, जिसे उन्होंने दरभंगा अंबेडकर छात्रावास परिसर में आयोजित किया। यह कार्यक्रम जितना संवाद का माध्यम बना, उससे कहीं अधिक यह सत्ता और विपक्ष के बीच तीखी बयानबाज़ी का कारण बन गया।

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जहाँ राहुल गांधी ने छात्रों से संवाद के बहाने शिक्षा, समानता और न्याय के मुद्दों को उठाया, वहीं बिहार सरकार में मंत्री संजय सरावगी ने इसे ‘नौटंकी’ और ‘संवैधानिक मर्यादा का उल्लंघन’ बताते हुए सिरे से नकार दिया। इस पूरी घटना को केवल एक राजनीतिक आयोजन समझना भूल होगी। यह दरअसल उस टकराहट का प्रतीक है, जो आज की राजनीति में संविधान, शिक्षा और जनसंवाद के बीच उभरती जा रही है।

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छात्रावास के प्रांगण में संवाद : कैमरे, किताबें और सवालों की भीड़: राहुल गांधी जब दरभंगा पहुँचे, तो उन्होंने किसी टाउन हॉल या पारंपरिक राजनीतिक मंच को नहीं चुना। उन्होंने अंबेडकर छात्रावास को चुना एक ऐसा स्थान जो छात्रों के रहने और अध्ययन का केंद्र है, न कि राजनीतिक सभाओं का मंच। हाथ में संविधान की प्रति, पीछे बाबासाहब अंबेडकर का चित्र, और सामने बैठे दर्जनों छात्र यह दृश्य जितना सजीव था, उतना ही प्रतीकात्मक भी।

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राहुल ने अपने वक्तव्य में शिक्षा की असमानता, आरक्षण में कटौती, महँगी होती कोचिंग व्यवस्था और युवाओं की बेरोज़गारी पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “इस देश के गरीब, दलित और पिछड़े वर्गों के लिए शिक्षा ही असली लड़ाई है। यह संवाद नहीं, यह संघर्ष है।” उन्होंने छात्रों से खुले प्रश्न पूछे, कई सवाल खुद से जोड़े, और सत्ता से जुड़े तंत्रों पर तीखा प्रहार किया। परंतु प्रश्न यह भी था कि क्या यह संवाद था, या कोई राजनीतिक स्क्रिप्ट?

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प्रशासनिक विवाद : अनुमति, प्रक्रिया और ‘सीधी अवहेलना’: राहुल गांधी के इस कार्यक्रम को लेकर प्रशासन की ओर से सख्त रुख सामने आया। बताया गया कि कांग्रेस पार्टी ने इस दौरे के लिए टाउन हॉल की अनुमति ली थी, न कि छात्रावास परिसर की। प्रशासन के अनुसार, छात्रावास परिसर एक शैक्षणिक स्थल है, और वहाँ राजनीतिक कार्यक्रम बिना पूर्व अनुमति के आयोजित नहीं किए जा सकते।

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हालाँकि कांग्रेस के स्थानीय नेताओं का कहना है कि यह कोई आम सभा नहीं, बल्कि एक ‘संवाद कार्यक्रम’ था, जहाँ छात्र सवाल पूछते हैं और नेता जवाब देते हैं। उनके अनुसार, राहुल गांधी कोई चुनाव प्रचार नहीं कर रहे थे, बल्कि युवाओं से सीधे संपर्क कर रहे थे। इस अस्पष्टता ने पूरे कार्यक्रम को कानूनी और नैतिक दोनों स्तरों पर बहस का विषय बना दिया। क्या यह लोकतंत्र में संवाद की स्वस्थ पहल थी, या सरकारी नियमों की अनदेखी?

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संजय सरावगी की प्रतिक्रिया : कटाक्ष, चेतावनी और राजनीतिक आक्रोश: राहुल गांधी के कार्यक्रम पर सबसे तीखी प्रतिक्रिया आई बिहार सरकार के मंत्री संजय सरावगी की ओर से। उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए कहा: “यह देश संविधान से चलता है, राहुल गांधी की मनमानी से नहीं। छात्रावासों को राजनीतिक रंग देना घोर निंदनीय है। जिनके पास जनता का विश्वास नहीं बचा, वे भीड़ से डरते हैं, और छात्रावास जैसे सुरक्षित घेरे में संवाद के नाम पर ड्रामा करते हैं।”

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सरावगी ने आरोप लगाया कि जब दरभंगा में दर्जनों सभागार, मैदान और हॉल उपलब्ध हैं, तब छात्रावास परिसर को मंच बनाना इस बात का संकेत है कि कांग्रेस भीड़ से बचना चाहती है। उन्होंने इसे “नौटंकी आधारित राजनीति” करार देते हुए राहुल गांधी पर शिक्षा और संविधान के नाम पर केवल प्रचार करने का आरोप लगाया। उन्होंने कांग्रेस पर बाबा साहब अंबेडकर के नाम का "राजनीतिक व्यापार" करने का भी आरोप लगाया और कहा कि "जिस पार्टी ने अतीत में अंबेडकर को अपमानित किया, वही आज उनके नाम पर राजनीति कर रही है।"

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छात्रों की प्रतिक्रियाएँ : जिज्ञासा, भ्रम और खामोशी: जहाँ एक ओर राहुल गांधी के कार्यक्रम में आए कुछ छात्र अपने नेता से संवाद कर गदगद दिखे, वहीं कई छात्र इस आयोजन को लेकर असहज थे। एक छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर कहा: “हमने समझा था कि यह सिर्फ़ संवाद होगा, लेकिन जब इतनी मीडिया और सुरक्षा आई, तब लगा कि यह राजनीतिक कार्यक्रम बन चुका है।” कुछ छात्र ऐसे भी थे जिन्होंने कहा कि उन्हें पहले से जानकारी नहीं थी कि राहुल गांधी आने वाले हैं। ऐसे में यह सवाल भी उठता है क्या छात्रावासों के नाम पर राजनीति छात्रों की इच्छा से की जा रही है या उन्हें केवल एक पृष्ठभूमि बना दिया गया है?

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राजनीति का नया मोड़ या पुराना चेहरा? राहुल गांधी का दरभंगा दौरा कई सवाल छोड़ गया है। क्या यह कार्यक्रम छात्रों से सीधे संवाद की एक नई परंपरा की शुरुआत थी या भीड़ से बचने की राजनीतिक रणनीति? क्या प्रशासन ने अपनी अनुमति प्रक्रिया में पारदर्शिता बरती या फिर एक विपक्षी नेता के कार्यक्रम को रोकने की कोशिश की गई? और सबसे अहम क्या शिक्षा और संविधान की बात केवल हाथ में पुस्तक लेकर मंच पर बोलने तक सीमित रह जाएगी?

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राजनीति में प्रतीकों का बड़ा महत्व है हाथ में संविधान, छात्रावास की दीवारें, और छात्रों की आँखों में भविष्य के सपने। परंतु जब इन प्रतीकों का उपयोग केवल राजनीतिक लड़ाइयों में एक हथियार के रूप में होने लगे, तब देश की लोकतांत्रिक आत्मा आहत होती है। दरभंगा की धरती बहुत कुछ देख चुकी है सत्ता के उतार-चढ़ाव, सृजन और संघर्ष। इस बार उसने एक ऐसा दृश्य देखा जिसमें संविधान, छात्र और सियासत एक ही मंच पर थे लेकिन सबकी दिशा अलग थी।