"जब दरभंगा की धरती पर प्रशासन ने संवाद पर पहरा बिठाया और अंबेडकर छात्रावास की सीलनभरी दीवारों के बीच राहुल गांधी ने सामाजिक न्याय की मशाल जलाई: शिक्षा, जाति और संविधान को लेकर एक टकराव की कहानी"

यह सिर्फ़ एक राजनीतिक दौरा नहीं था। यह वह क्षण था जब मिथिला की मिट्टी ने एक बार फिर साबित कर दिया कि लोकतंत्र दीवारों से नहीं रोका जा सकता। वह अंबेडकर छात्रावास जिसकी दीवारों पर बरसों से दलित-पिछड़े छात्रों की चुप्पियाँ चिपकी थीं, आज उन पर एक आवाज़ लिख दी गई “संवाद कब से अपराध हो गया?”..... पढ़े पुरी खबर......

"जब दरभंगा की धरती पर प्रशासन ने संवाद पर पहरा बिठाया और अंबेडकर छात्रावास की सीलनभरी दीवारों के बीच राहुल गांधी ने सामाजिक न्याय की मशाल जलाई: शिक्षा, जाति और संविधान को लेकर एक टकराव की कहानी"
"जब दरभंगा की धरती पर प्रशासन ने संवाद पर पहरा बिठाया और अंबेडकर छात्रावास की सीलनभरी दीवारों के बीच राहुल गांधी ने सामाजिक न्याय की मशाल जलाई: शिक्षा, जाति और संविधान को लेकर एक टकराव की कहानी"

दरभंगा: यह सिर्फ़ एक राजनीतिक दौरा नहीं था। यह वह क्षण था जब मिथिला की मिट्टी ने एक बार फिर साबित कर दिया कि लोकतंत्र दीवारों से नहीं रोका जा सकता। वह अंबेडकर छात्रावास जिसकी दीवारों पर बरसों से दलित-पिछड़े छात्रों की चुप्पियाँ चिपकी थीं, आज उन पर एक आवाज़ लिख दी गई “संवाद कब से अपराध हो गया?”

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यह सवाल था लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का, जो सरकारी रोक के बावजूद दरभंगा पहुँचे, और वहाँ उस आवाज़ को सुनने के लिए खड़े हुए जिसे अक्सर चुनावी भाषणों में अनसुना कर दिया जाता है छात्रों की आवाज़, उनके सवाल, उनकी पीड़ा और उनका सपना।

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दरभंगा में लोकतंत्र की परीक्षा: सुबह के साढ़े दस बजे से ही अंबेडकर छात्रावास के चारों ओर हलचल तेज थी। पुलिस की तैनाती, बैरिकेड, गेट पर रोक और भीतर छात्रों की बेचैनी। कार्यक्रम को प्रशासन से अनुमति नहीं थी कागज़ पर यह ‘गैरकानूनी सभा’ मानी जा रही थी, लेकिन ज़मीर की अदालत में यह छात्रों के हक़ की सुनवाई थी। राहुल गांधी आए बिना मंच, बिना माइक। उनके पास न कोई झंडा था, न भीड़। बस कुछ शब्द थे “आपको एक साथ खड़ा होना है, क्योंकि शिक्षा और सामाजिक न्याय अब सौदा बन चुके हैं।”

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‘शिक्षा न्याय संवाद’ या सत्ता के कानों की खटक? कार्यक्रम का नाम था शिक्षा न्याय संवाद। मगर सवाल ये है कि संवाद से किसे डर लग रहा है? क्या यह देश उस मुक़ाम पर पहुँच गया है जहाँ शिक्षा के नाम पर जुटे छात्र और उनके सवाल ही सरकारों को असहज करने लगे हैं? राहुल गांधी ने वही सवाल रखा “संवाद कब से अपराध हो गया? नीतीश जी, आप किस बात से डर रहे हैं?” यह सवाल नीतीश कुमार की चुप्पी को चीरता गया और सत्ता की संवेदनहीनता को उघाड़ता गया।

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‘जाति जनगणना’ की गूंज: कौन झुका, कौन लड़ा? राहुल गांधी ने दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार जातिगत जनगणना कराने को मजबूर हुई, क्योंकि कांग्रेस ने दबाव बनाया। “हमने प्रधानमंत्री से कहा कि आपको जाति जनगणना करानी पड़ेगी… वे संविधान, लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के खिलाफ हैं, लेकिन अंतत झुकना पड़ा।” यह दावा नहीं, एक लंबी लड़ाई का इशारा था जहां पिछड़े, दलित और आदिवासी छात्र वर्षों से आंकड़ों की गिनती में ही गुम हैं, और सरकारें उनकी वास्तविक संख्या को अनदेखा करती रही हैं।

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‘आरक्षण हो तो हर जगह’: निजी संस्थानों पर सवाल: राहुल गांधी ने कहा कि शिक्षा में न्याय तभी पूरा होगा जब प्राइवेट कॉलेज और विश्वविद्यालयों में भी आरक्षण लागू हो। “दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के साथ चौबीसों घंटे अन्याय होता है। उन्हें शिक्षा से रोका जाता है। जब तक प्राइवेट संस्थानों में आरक्षण नहीं होगा, तब तक समान अवसर की बात छलावा है।” यह मुद्दा वर्षों से सुलग रहा है क्या सिर्फ सरकारी कॉलेजों में आरक्षण काफी है? जब आज देश की अधिकतर उच्च शिक्षा निजी हाथों में जा चुकी है, तब सामाजिक न्याय की अनुपस्थिति सिर्फ संविधान के पन्नों पर रह जाती है।

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"अंबेडकर छात्रावास’ जहां चुप्पियाँ बोल उठीं: यह वह जगह है जहां हर साल हजारों दलित-पिछड़े छात्र अपने सपनों को लेकर आते हैं और व्यवस्था की लाठियों से, भेदभाव के कांटों से घायल हो जाते हैं। लेकिन 15 मई को, यहाँ कुछ बदला। यहाँ डर से नहीं, संवाद से गूंज हुई। राहुल गांधी की उपस्थिति राजनीतिक हो सकती है, लेकिन उनकी बातें सिर्फ राजनीति नहीं थीं वे एक यथार्थ की परछाईं थीं। "बिहार की पुलिस ने मुझे रोकने की कोशिश की, लेकिन आपकी शक्ति मेरे साथ थी।" यह शब्द छात्रावास के हर कमरे में अब देर तक गूंजेंगे।

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प्रशासन की चुप्पी: कांग्रेस नेता शकील अहमद खान ने कहा “हमने प्रयास किया कि हमें जाने दिया जाए। लेकिन प्रशासन ने रोक दिया। पर राहुल गांधी रुकने वालों में नहीं हैं। वे संघर्ष के प्रतीक हैं।” शायद यही बात शासन को असहज करती है संवाद करने वाला नेता, जो मंच से नहीं, सामने बैठकर बात करे। यह डर है या अहंकार प्रशासनिक रोक इस प्रश्न को और गहरा बना गई।

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मिथिला की चेतना: क्या यह सिर्फ शुरुआत है? यह सिर्फ एक नेता का दौरा नहीं था। यह मिथिला के छात्रों, विशेषकर वंचित तबके के युवाओं के लिए एक आत्मबोध का क्षण था। जब राहुल गांधी ने कहा “आपको एक साथ खड़ा होना है,” तब यह सिर्फ राजनीतिक आग्रह नहीं था, यह सामाजिक जागरण की पुकार थी।

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सत्ता से बड़ा होता है संवाद: दरभंगा ने एक बार फिर साबित किया कि लोकतंत्र पुलिस की अनुमति से नहीं चलता, वह जनसंवाद से जिंदा रहता है। आज अंबेडकर छात्रावास की दीवारों पर सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं हुआ वहाँ एक इतिहास लिखा गया, जो छात्रों के होठों से होकर मिथिला की हवा में फैल चुका है। अब यह देखना बाकी है कि सत्ता इस संवाद से भागेगी या उसका उत्तर देगी?