जब भूखी आँखों में उतर आई संवेदना की ज्योति, तब टूटी छत के नीचे पहली बार संवाद ने जन्म लिया आज की ऐतिहासिक बैठक में माँ के लिए बना त्रिस्तरीय सेवा-संवर्धन का संकल्प, जहाँ निर्णय लिए गए भूख मिटाने से लेकर भवन संवारने तक... और दरभंगा की मूक गौशाला अब बन रही है सांस्कृतिक चेतना की जीवित प्रयोगशाला

वह नगरी जहाँ परंपरा, श्रद्धा और संस्कृति की त्रिवेणी बहती है। यह नगर केवल ईंट और गारे से बना हुआ शहर नहीं, अपितु आत्मा से जुड़ा हुआ वह तीर्थ है, जहाँ हर घर में एक तुलसी है, हर गली में एक स्मृति है, और हर हृदय में एक माँ है वह माँ जो गाय के रूप में हमारी सभ्यता की सजीव प्रतीक बनी खड़ी है. पढ़े पुरी खबर........

जब भूखी आँखों में उतर आई संवेदना की ज्योति, तब टूटी छत के नीचे पहली बार संवाद ने जन्म लिया आज की ऐतिहासिक बैठक में माँ के लिए बना त्रिस्तरीय सेवा-संवर्धन का संकल्प, जहाँ निर्णय लिए गए भूख मिटाने से लेकर भवन संवारने तक... और दरभंगा की मूक गौशाला अब बन रही है सांस्कृतिक चेतना की जीवित प्रयोगशाला
जब भूखी आँखों में उतर आई संवेदना की ज्योति, तब टूटी छत के नीचे पहली बार संवाद ने जन्म लिया आज की ऐतिहासिक बैठक में माँ के लिए बना त्रिस्तरीय सेवा-संवर्धन का संकल्प, जहाँ निर्णय लिए गए भूख मिटाने से लेकर भवन संवारने तक... और दरभंगा की मूक गौशाला अब बन रही है सांस्कृतिक चेतना की जीवित प्रयोगशाला

दरभंगा: वह नगरी जहाँ परंपरा, श्रद्धा और संस्कृति की त्रिवेणी बहती है। यह नगर केवल ईंट और गारे से बना हुआ शहर नहीं, अपितु आत्मा से जुड़ा हुआ वह तीर्थ है, जहाँ हर घर में एक तुलसी है, हर गली में एक स्मृति है, और हर हृदय में एक माँ है वह माँ जो गाय के रूप में हमारी सभ्यता की सजीव प्रतीक बनी खड़ी है।

मिर्ज़ापुर स्थित दरभंगा गौशाला की जो करुण छवि बीते दिनों में सोशल मीडिया पर दिखी वह दृश्य नहीं, एक प्रश्न था। प्रश्न हमारी संवेदना पर, हमारी व्यवस्था पर, हमारे 'माँ' कहने की सच्चाई पर। गायें चुप थीं, पर उनकी आँखों में वह जलन थी जो शब्दों से परे थी। इन्हीं आँखों में बसे आर्तनाद को सुनने की शुरुआत की वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार ने। उनके द्वारा खींची गई तस्वीरें केवल दृश्य नहीं, बल्कि दरभंगा की आत्मा का आईना थीं। वह आईना जिसमें हम सबकी उपेक्षा, मौन, और संवेदनहीनता की परछाइयाँ थीं।

पर अब यह मौन टूटा है। अब दरभंगा जागा है। और जागा है ऐसा कि हर संवेदनशील मन, हर जागरूक नागरिक एकत्रित हो गया गौशाला के उस प्रांगण में जहाँ अब निर्णय जन्म लेने लगे हैं। रंगनाथ ठाकुर जी की अगुवाई में जो ऐतिहासिक बैठक हुई, वह केवल एक संगठनात्मक उपक्रम नहीं, बल्कि आत्मा की पुकार का सामूहिक उत्तर था।

बैठक में उपस्थित वे नाम जिन्हें इतिहास याद रखेगा:

प्रदीप कुमार (पत्रकार)

नवीन सिन्हा (वार्ड पार्षद)

राजेश चौधरी

मनोज झा

रंजीत चौधरी

पृथ्वीराज चौधरी

आशिष कुमार राय (पत्रकार)

राकेश कुमार

तरुण कुमार

बालेंदु झा 'बालाजी'

रंजीत झा

निशांत चौधरी

अशोक कुमार श्रीवास्तव

प्रो. मिथिलेश कुमार मिश्र

इन सभी ने मिलकर एक स्वर में कहा अब आलोचना नहीं, क्रियान्वयन होगा। माँ को अब अकेली नहीं छोड़ा जाएगा। इस बैठक में एक त्रिस्तरीय योजना बनी जिसमें न केवल तात्कालिक राहत, बल्कि भविष्य की स्थायित्व-युक्त संरचना भी सुनिश्चित की गई।

प्रथम चरण तत्काल सुधार: गायों को अब भूखा नहीं रहना होगा। शनिवार से ही सब्जी बाजार के अवशेष जो उपयोग योग्य हैं, उन्हें संग्रह कर गोशाला में पहुँचाया जाएगा। इस कार्य का दायित्व नवीन सिन्हा, मुकेश महासेठ, अरुण शर्मा, प्रदीप गुप्ता और बालेंदु झा के समर्पित हाथों में सौंपा गया।

द्वितीय चरण मध्यकालिक व्यवस्था: गौशाला की व्यवस्था को अगले कुछ महीनों में व्यवस्थित किया जाएगा। दान, सहयोग और सेवा का एक सतत तंत्र बनाया जाएगा, जिसमें सदस्यता अभियान का भी प्रमुख स्थान होगा। प्रत्येक घर से न्यूनतम ₹100 सहयोग की अपील की गई है और यह केवल राशि नहीं, भावना का दान है।

तृतीय चरण दीर्घकालिक दृष्टि: गौशाला के भवन की मरम्मत, पशुचिकित्सा सुविधा, कर्मचारियों का पुनर्गठन, किराया वृद्धि, जल और साफ-सफाई की व्यवस्था इन सब पर एक समर्पित समिति काम करेगी। यह समिति इस धरोहर को केवल एक संस्थान नहीं, अपितु तीर्थस्थल में परिवर्तित करेगी।

पाँच सदस्यीय सेवा समिति का गठन: सेवा के समर्पित स्तंभ रंजीत चौधरी, राजेश चौधरी, मनोज झा, निशांत चौधरी, मुरली झा, और पृथ्वी चौधरी मिलकर सब्जी मिश्रण को संयोजित कर गौशाला पहुँचाएंगे। यह कोई सामान्य जिम्मेदारी नहीं, अपितु 'अन्नपूर्णा' की सेवा का सजीव रूप है।

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रविवार की आगामी बैठक: अगले रविवार को गोशाला के अध्यक्ष और सचिव के साथ विस्तृत बैठक का आयोजन होगा, जिसमें सदस्यता अभियान को गति दी जाएगी और पारदर्शी व्यवस्था को विधिक रूप दिया जाएगा। यह बैठक दरभंगा के सांस्कृतिक पुनर्जागरण की नींव सिद्ध हो सकती है।

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जब सत्ता ने संवेदना को सुना: इस पहल को उस समय नया आयाम मिला जब माननीय विधायक सह भूमि सुधार मंत्री संजय सरावगी जी ने इस विषय पर व्यक्तिगत रूचि दिखाई। उन्होंने "मिथिला जन जन की आवाज" के प्रधान संपादक आशिष कुमार से दूरभाष पर संवाद कर इस गंभीर परिस्थिति पर विस्तृत जानकारी ली और तत्क्षण अनुमंडल पदाधिकारी (एसडीओ) को निर्देश दिया कि वे गौशाला की स्थिति पर संज्ञान लेकर अविलंब ठोस और प्रभावी कार्यवाही करें। उनका यह संज्ञान लेना न केवल एक उत्तरदायी जनप्रतिनिधि का दायित्व है, बल्कि इस बात का प्रमाण है कि माँ की पुकार अब केवल जनमानस में नहीं, शासन की दीवारों में भी गूंजने लगी है।

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मिर्ज़ापुर गौशाला अब केवल एक गोशाला नहीं रही। यह अब वह स्थान बन रहा है जहाँ श्रद्धा, सेवा और संगठन मिलकर संस्कृति का आलोक बिखेर रहे हैं। यह केवल गाय की सेवा नहीं, यह अपने इतिहास, अपने आत्मा, अपने मूल की सेवा है। यह समाचार मात्र एक सूचना नहीं, एक आंदोलन है। एक निवेदन है हर दरभंगावासी से, हर मिथिलावासी से आइए, हम सब मिलकर अपनी माँ की सेवा करें। क्योंकि माँ अब मौन नहीं, माँ अब पुकार रही है।