दरभंगा की ऐतिहासिक सुबह में माँ कांकली की चौखट पर नतमस्तक हुए जिलाधिकारी कौशल कुमार राज परिसर की पवित्र हवाओं में श्रद्धा, शालीनता और प्रशासनिक संवेदना का अद्भुत संगम

दरभंगा की सुबह में उस दिन कुछ अलग ही आभा थी। एक सादगीभरा, भावुक और आत्मीय क्षण जिसने न केवल दरभंगा की पवित्रता को फिर से महसूस कराया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि जब प्रशासनिक पदों पर बैठे लोग आस्था और परंपरा के प्रति संवेदनशील होते हैं, तब व्यवस्था में आत्मा लौटती है। यह क्षण था जब दरभंगा के नवपदस्थ जिलाधिकारी श्री कौशल कुमार माँ कांकली मंदिर में अपने परिवार सहित दर्शन हेतु पहुँचे।यह मंदिर राज दरभंगा के हृदयस्थल पर अवस्थित है। मंदिर परिसर की सुबह उस दिन श्रद्धा की अनूठी तरंगों से सराबोर थी. पढ़े पुरी खबर.......

दरभंगा की ऐतिहासिक सुबह में माँ कांकली की चौखट पर नतमस्तक हुए जिलाधिकारी कौशल कुमार राज परिसर की पवित्र हवाओं में श्रद्धा, शालीनता और प्रशासनिक संवेदना का अद्भुत संगम
दरभंगा की ऐतिहासिक सुबह में माँ कांकली की चौखट पर नतमस्तक हुए जिलाधिकारी कौशल कुमार राज परिसर की पवित्र हवाओं में श्रद्धा, शालीनता और प्रशासनिक संवेदना का अद्भुत संगम

दरभंगा की सुबह में उस दिन कुछ अलग ही आभा थी। एक सादगीभरा, भावुक और आत्मीय क्षण जिसने न केवल दरभंगा की पवित्रता को फिर से महसूस कराया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि जब प्रशासनिक पदों पर बैठे लोग आस्था और परंपरा के प्रति संवेदनशील होते हैं, तब व्यवस्था में आत्मा लौटती है। यह क्षण था जब दरभंगा के नवपदस्थ जिलाधिकारी श्री कौशल कुमार माँ कांकली मंदिर में अपने परिवार सहित दर्शन हेतु पहुँचे।यह मंदिर राज दरभंगा के हृदयस्थल पर अवस्थित है। मंदिर परिसर की सुबह उस दिन श्रद्धा की अनूठी तरंगों से सराबोर थी।

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श्रद्धा के रंग में रंगा एक प्रशासनिक मुखिया: दरभंगा के जिलाधिकारी जैसे उच्च प्रशासनिक पद पर आसीन व्यक्ति का इस प्रकार पूर्ण पारिवारिक भाव से एक मंदिर में जाकर सिर नवाना, उस भावनात्मक जुड़ाव को दर्शाता है जो अब प्रशासनिक तंत्र में बहुत कम दिखता है। यह कोई औपचारिक कार्यक्रम नहीं था, ना ही कोई पूर्व प्रचारित योजना। यह एक आत्मिक आस्था से उपजा कदम था, जो बताता है कि श्री कौशल कुमार जैसे अधिकारी न केवल ज़मीन से जुड़े हैं, बल्कि ज़मीन की उस संस्कृति और परंपरा को भी समझते हैं, जो दरभंगा जैसे ऐतिहासिक नगर की पहचान है।

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उस दिन जिलाधिकारी के इस भावनात्मक और आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत अत्यंत गरिमापूर्ण ढंग से हुई। सबसे आगे चल रही थी दरभंगा सदर एसडीओ श्री विकास कुमार की सरकारी गाड़ी। उनके पीछे स्वयं जिलाधिकारी महोदय अपनी पत्नी और पुत्री के साथ अपने वाहन में विराजमान थे। सबसे पीछे एस्कॉर्ट वाहन सुरक्षा व्यवस्था को संभाल रहा था। यह काफिला जब राज परिसर में प्रवेश किया तो आमजन को न कोई शोर सुनाई दिया, न कोई तामझाम। केवल श्रद्धा और सादगी की मौन ध्वनि वहाँ गूंज रही थी।

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मंदिर में प्रवेश करते समय उनका भाव, उनका नत दृष्टि और हाथों में पुष्प लिए मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ना ये दृश्य किसी नौकरशाही की औपचारिकता नहीं, बल्कि एक श्रद्धालु की आत्मीयता थी। मंदिर के पुजारियों ने भी भाव-विभोर होकर उनका स्वागत किया। यह वही माँ कांकली हैं, जिन्हें राज दरभंगा के महाराज भी संकट के समय स्मरण करते थे।

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माँ कांकली मंदिर का महत्व और सांस्कृतिक धरोहर: माँ कांकली मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, यह दरभंगा की आत्मा है। यह वही स्थान है जहाँ राजवंश के उत्थान-पतन, उत्सव और शोक सभी दर्ज हैं। इस मंदिर का हर पत्थर, हर घंटी और हर आरती की ध्वनि दरभंगा के इतिहास की साक्षी रही है। यहाँ माँ को 'कांकली' अर्थात 'हड्डियों का रूप' कहे जाने का पौराणिक कारण है कि यह मंदिर देवी के रौद्र रूप की प्रतीक है, जहाँ न्याय और मर्यादा की रक्षा होती है। ऐसे स्थान पर एक जिलाधिकारी का आना केवल दर्शन नहीं, एक सशक्त प्रतीक बन जाता है।

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एक आत्मीय क्षण... माँ कांकली के दर्शन के उपरांत जब जिलाधिकारी महोदय अपने वाहन की ओर लौट रहे थे, तो उसी क्रम में एक स्थानीय पत्रकार ने भाव से हाथ जोड़कर उन्हें अभिवादन किया, जिसे उन्होंने विनम्रता से हाथ जोड़कर स्वीकार भी किया। वह क्षण केवल दो व्यक्तियों के मध्य नहीं, बल्कि जनता और प्रशासन के बीच आत्मीयता के रिश्ते की झलक थी। एक पत्रकार के लिए यह दृश्य किसी स्कूप से कम नहीं, लेकिन एक साहित्यकार के लिए यह वह क्षण था, जब शब्दों ने मौन धारण कर लिया और केवल हृदय ने बोलना शुरू किया।

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प्रशासन और आस्था के समागम की आवश्यकता: आज जब देश के अनेक कोनों में प्रशासनिक व्यवस्था को संवेदनहीन, औपचारिक और यंत्रवत माना जाने लगा है, वहाँ दरभंगा जैसे ऐतिहासिक नगर में यदि एक जिलाधिकारी अपनी श्रद्धा को प्राथमिकता देते हैं, तो यह केवल एक व्यक्तिगत आस्था नहीं, बल्कि प्रशासनिक संवेदनशीलता का प्रमाण है। जब एक अधिकारी जनता के पूजास्थलों पर श्रद्धा दिखाता है, तो वह जनता के विश्वास को और मजबूत करता है। यह एक तरह से जनता को यह भरोसा देना है कि “हम आपके ही बीच से हैं, और आपके विश्वासों का सम्मान करते हैं।”

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माँ कांकली के चरणों से लेकर जनता के दिल तक: श्री कौशल कुमार का यह दर्शन केवल मंदिर की सीढ़ियों तक सीमित नहीं था। मंदिर में माथा टेकने के पश्चात उन्होंने रामबाग परिसर का भ्रमण किया और पूरे ऐतिहासिक क्षेत्र का अवलोकन किया। रामबाग की पवित्र धूल को महसूस कर वे आगे बढ़े और सीधे श्यामा मंदिर पहुँचे, जहाँ उन्होंने श्रद्धा पूर्वक माँ काली और श्यामा माई के दर्शन किए। यह संपूर्ण यात्रा आस्था, संस्कृति और प्रशासनिक संवेदना का अनुपम संगम बन गई। यह खबर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसने यह सिद्ध किया कि एक अधिकारी भी मंदिर की घंटियों के बीच आत्मा को टटोल सकता है। यह दरभंगा के उस सांस्कृतिक पुनराग्रह की शुरुआत है, जिसमें आस्था और व्यवस्था साथ-साथ चल सकते हैं।

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उम्मीद की एक सुबह: उस सुबह का सूरज थोड़ा अलग था। उसकी किरणें मंदिर के शिखर से फिसलती हुई जब काले पत्थरों पर पड़ीं, तो ऐसा लगा मानो माँ स्वयं मुस्कुरा रही हों। और शायद वही मुस्कान थी, जो श्री कौशल कुमार की श्रद्धा में परिलक्षित हुई। यह समाचार सिर्फ एक प्रशासनिक दौरे की रिपोर्ट नहीं, यह एक सांस्कृतिक पुनराग्रह है जहाँ माँ कांकली के आँगन में एक जिलाधिकारी नतमस्तक होता है और एक पत्रकार उसकी उस भक्ति में व्यवस्था की दिशा को खोजने लगता है। यही दरभंगा है, और यही उसकी पहचान।