कमला की कोप कथा को रोकने की कवायद: जिलाधिकारी कौशल कुमार की अगुवाई में तटबंधों की नस-नस की जांच, और अफसरों को दिया गया अल्टीमेटम
दरभंगा की धरती... जहाँ हर बरस जून-जुलाई के दस्तक से पहले नदी की धाराएँ सरगोशियाँ करने लगती हैं। मानो वो चेतावनी देती हों कि अब समय आ गया है सजग होने का, सम्हलने का और सशक्त तैयारी का। यही चेतावनी इस वर्ष भी गूँजी... और इस बार उसका उत्तर प्रशासन की सधी हुई पदचापों में था. पढ़े पुरी खबर.......

दरभंगा की धरती... जहाँ हर बरस जून-जुलाई के दस्तक से पहले नदी की धाराएँ सरगोशियाँ करने लगती हैं। मानो वो चेतावनी देती हों कि अब समय आ गया है सजग होने का, सम्हलने का और सशक्त तैयारी का। यही चेतावनी इस वर्ष भी गूँजी... और इस बार उसका उत्तर प्रशासन की सधी हुई पदचापों में था।
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22 जून 2025। धूप की तपिश और उमस के बोझ के बीच, जब आम लोग छाँव तलाश रहे थे, उस समय दरभंगा के जिलाधिकारी श्री कौशल कुमार कमला बलान के दायाँ एवं बायाँ तटबंध पर निरीक्षण कर रहे थे न सिर्फ देखने के लिए, बल्कि महसूस करने के लिए कि आने वाले दिनों में ये तटबंध जनजीवन की कितनी बड़ी ढाल बन सकते हैं या कितना बड़ा खतरा बन सकते हैं।
कमला की किनारों पर खड़े निर्णय: कोठराम चौक से रसियारी तक: तटबंध निरीक्षण की शुरुआत हुई कोठराम चौक से लेकर रसियारी तक। जिलाधिकारी की आँखें केवल सड़क और ईंट नहीं देख रही थीं, वे उस मिट्टी की सिहरन को पढ़ रही थीं जो हर साल पानी की मार से घायल होती है। निरीक्षण में उन्होंने निर्माणाधीन पुलों को भी देखा, जो कमला और कोसी के बीच बन रहे हैं। उन्होंने इन कार्यों की गुणवत्ता और समयबद्धता को लेकर अधिकारियों से सीधे संवाद किया। उनकी वाणी में आदेश नहीं, अपील थी “यह निर्माण नहीं, यह जीवन रक्षा है। और जीवन की रक्षा में लापरवाही क्षमा नहीं होती।”
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"रेनकट" उस अदृश्य खतरे पर सख्त चेतावनी: जिलाधिकारी ने बाढ़ नियंत्रण प्रमंडल के कार्यपालक अभियंता को निर्देशित किया कि तटबंधों पर रेनकट (Raincut) यानी बारिश के कारण उत्पन्न दरारों और कटाव को समय रहते चिन्हित कर उसकी तत्काल मरम्मत कराई जाए। उनका कथन था, “नदी चेतावनी नहीं देती, लेकिन हम चेत सकते हैं। पहले चेतेंगे तो बचेंगे। नहीं तो तटबंध टूटेगा और साथ में सपने भी बह जाएंगे।”
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बायाँ तटबंध: असमा से चतरा खैसा तक हर पग पर प्रश्न: निरीक्षण का कारवां जब बायाँ कमला बलान तटबंध की ओर बढ़ा, तो वहाँ सिर्फ मिट्टी की दीवार नहीं, बल्कि संभावनाओं की दीवारें थीं। असमा से चतरा खैसा तक जिलाधिकारी ने स्वयं पग-पग पर निरीक्षण किया। वे हर मोड़ पर रुके, हर मिट्टी की दरार को अपनी निगाह से परखा। स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि कुछ स्थानों पर पुराने कटाव अभी तक बचे हुए हैं। जिलाधिकारी ने अधिकारियों को निर्देशित किया कि अब फ़ाइलों से पहले फील्ड को जवाब देना होगा।
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रसियारी का स्थायी कैंप जहाँ निर्णय की बुनियाद रखी गई: निरीक्षण के क्रम में रसियारी में जल संसाधन विभाग के स्थायी कैंप में पहुँचे जिलाधिकारी। वहाँ पर कार्यरत अभियंताओं से संवाद करते हुए उन्होंने सिर्फ यह नहीं पूछा कि अब तक क्या किया गया है, बल्कि यह भी पूछा कि “आगे क्या करना है?”
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झंझारपुर प्रमंडल-1 और प्रमंडल-2 के अभियंताओं से उन्होंने तटबंध की संरचना, दबाव बिंदु और नदी की धारा के मिज़ाज की पूरी जानकारी ली। वे यह नहीं चाहते थे कि कोई 'शेष' बचे। न जानकारी में, न तैयारी में।
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दायां तटबंध: कोठराम चौक से पलवा तक निगाहें जो नाप रही थीं जमीन की सच्चाई: निरीक्षण का अंतिम पड़ाव था कोठराम चौक से पलवा तक का दायां तटबंध। जिलाधिकारी वहाँ रुक-रुककर निरीक्षण कर रहे थे। कभी पेड़ के नीचे खड़े होकर कुछ अभियंताओं से बात करते, तो कभी दूर दृष्टि से तटबंध की गहराई को आँकते। यह निरीक्षण 'कागज़ी' नहीं था, यह निरीक्षण 'कवच निर्माण' की प्रक्रिया थी।
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एक चित्र हज़ार सवाल: निरीक्षण के दौरान का वह दृश्य अविस्मरणीय था तपती धूप, खेतों के किनारे खड़ी गाड़ियों की पंक्ति, वर्दीधारी अधिकारियों के बीच खड़े डीएम साहब, हाथ में फ़ाइल लिए अभियंता और एक कोने में मोबाइल पर किसी गाँव की स्थिति जानने की कोशिश करता एक सिपाही। इस दृश्य में सिर्फ कर्तव्य नहीं था, उसमें संवेदनशीलता थी। जैसे तटबंध केवल मिट्टी की नहीं, मानवीय रिश्तों की भी रक्षा करते हैं।
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जिन्होंने निभाई मौन भूमिका: निरीक्षण के दौरान अपर समाहर्ता आपदा प्रबंधन श्री सलीम अख्तर, अनुमंडल पदाधिकारी बिरौल, अंचलाधिकारी घनश्यामपुर, गौड़ाबौराम, कुशेश्वरस्थान, तारडीह सहित तमाम संबंधित पदाधिकारी उपस्थित थे। उनके मौन लेकिन सजग चेहरे यह संकेत दे रहे थे कि हर कोई इस चुनौती के लिए खुद को तैयार कर चुका है।
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यह सिर्फ निरीक्षण नहीं, जन-सुरक्षा की पहली दीवार है: कमला बलान की धाराएँ आज भी चुपचाप बह रही हैं, लेकिन उनके तटों पर अब एक प्रशासनिक आहट गूंज रही है जो कहती है: इस बार पानी आएगा... लेकिन हम पहले से खड़े होंगे। इस बार गाँव डूबेगा नहीं, क्योंकि तटबंध पर केवल ईंट-पत्थर नहीं, बल्कि ज़िम्मेदारियाँ भी खड़ी होंगी।