जब अनुसंधान बना मज़ाक, न्याय पड़ा मौन और बहेड़ा थानाध्यक्ष चंद्रकांत गौरी ने थाने को बना दिया प्रशासकीय उपेक्षा का कुरुक्षेत्र: पढ़िए हमारी इस कलम की वह कठोर पड़ताल जो बेनकाब करती है अपराध से ज़्यादा अपराध पर चुप्पी साधे व्यवस्था को!

कभी अपराध का पर्याय रहा बहेड़ा इलाका आज फिर सुर्खियों में है। पर इस बार सुर्ख़ियों का कारण न कोई डकैती है, न कोई सामूहिक उत्पात, बल्कि स्वयं अपराध-निवारण का जिम्मेदार थानाध्यक्ष ही न्यायिक व्यवस्था की गाड़ी को बेपटरी करने के आरोप में निलंबित हुआ है. पढ़े पुरी खबर.......

जब अनुसंधान बना मज़ाक, न्याय पड़ा मौन और बहेड़ा थानाध्यक्ष चंद्रकांत गौरी ने थाने को बना दिया प्रशासकीय उपेक्षा का कुरुक्षेत्र: पढ़िए हमारी इस कलम की वह कठोर पड़ताल जो बेनकाब करती है अपराध से ज़्यादा अपराध पर चुप्पी साधे व्यवस्था को!
जब अनुसंधान बना मज़ाक, न्याय पड़ा मौन और बहेड़ा थानाध्यक्ष चंद्रकांत गौरी ने थाने को बना दिया प्रशासकीय उपेक्षा का कुरुक्षेत्र: पढ़िए हमारी इस कलम की वह कठोर पड़ताल जो बेनकाब करती है अपराध से ज़्यादा अपराध पर चुप्पी साधे व्यवस्था को!

दरभंगा: कभी अपराध का पर्याय रहा बहेड़ा इलाका आज फिर सुर्खियों में है। पर इस बार सुर्ख़ियों का कारण न कोई डकैती है, न कोई सामूहिक उत्पात, बल्कि स्वयं अपराध-निवारण का जिम्मेदार थानाध्यक्ष ही न्यायिक व्यवस्था की गाड़ी को बेपटरी करने के आरोप में निलंबित हुआ है।

                                   ADVERTISEMENT

प्रशासनिक जलजला: जब आदेश का अपमान ही दिनचर्या बन जाए: बहेड़ा थाना कांड संख्या-455/23, दिनांक 14.12.2023, धारा 395 भा.द.वि. एक डकैती का वह प्रकरण, जो अनुसंधान के अभाव में अब एक मज़ाक़ बन चुका है।

                                  ADVERTISEMENT

थानाध्यक्ष पु०नि० चंद्रकांत गौरी पर लगे आरोप साधारण नहीं हैं, बल्कि ये आरोप घोर लापरवाही, आदेश उल्लंघन, स्वेच्छाचारिता, मनमानेपन और अनुशासनहीनता से लिपटे हुए हैं। जैसे एक हवलदार की टेबल पर धूल खाती हुई फ़ाइल, वैसे ही इस कांड की सारी संवेदनशीलता अनुसंधान के नाम पर सिर्फ़ दिखावे की औपचारिकताएँ, ना टीआईपी कराई गई, ना अभियुक्तों के आपराधिक इतिहास की समुचित प्रविष्टि की गई, ना ही रिमांड की प्रक्रिया को समय पर पूरा किया गया। जिस प्रकार से न्याय के साथ बलात्कार होता है, ठीक उसी प्रकार इस केस की अनुसंधान डायरी में न्याय की आत्मा दम तोड़ती रही और थानाध्यक्ष साहब मौन साधे रहे, जैसे धृतराष्ट्र की आँखें बंद थीं, हस्तिनापुर जलता रहा।

                                    ADVERTISEMENT

जब एक अधिकारी ‘कर्तव्य’ भूल जाए, तो ‘धारा’ भी पंगु हो जाती है: एसपी ग्रामीण दरभंगा द्वारा प्रस्तुत जाँच प्रतिवेदन में, यह प्रमाणित हो गया कि थानाध्यक्ष द्वारा:

न्यायालय में समर्पित रिमांड प्रतिवेदन के बाद भी अभियुक्त को रिमांड पर नहीं लिया गया,

सिर्फ़ एक अभियुक्त का आपराधिक इतिहास दिखाकर कांड को समेटने की कोशिश की गई,

बरामद सामान की पहचान प्रक्रिया को जानबूझकर रोका गया,

और सबसे गंभीर बात कांड की समीक्षा तक नहीं की गई,

जबकि वरीय पदाधिकारी स्वयं बैठक में यह निर्देश दे चुके थे। यह सब सिर्फ़ "चूक" नहीं, बल्कि एक कुटिल मानसिकता और प्रशासनिक दंभीपन का जीवंत उदाहरण है। यह बताता है कि किस प्रकार कुछ पदाधिकारी अपने पद के मद में न्याय, नैतिकता और मानवाधिकार को कुचलने का दुस्साहस कर बैठते हैं।

                                   ADVERTISEMENT

निलंबन का आदेश: देर से आया, लेकिन तल्ख़ और तेज़: जब अनुसंधान की चिता पर न्याय की चिंगारी बुझने लगी, तब दरभंगा के वरीय पुलिस अधीक्षक ने अपने प्रशासनिक विवेक का परिचय देते हुए एसपी (ग्रामीण) से जवाबदेही की माँग की। जाँच प्रतिवेदन में, जो निष्कर्ष निकला वह किसी पदाधिकारी के पतन की कहानी से कम नहीं था। डीआईजी, मिथिला क्षेत्र, दरभंगा ने स्पष्ट आदेश देते हुए थानाध्यक्ष पु०नि० चंद्रकांत गौरी को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया और पुलिस केंद्र, दरभंगा में योगदान हेतु भेजा गया। उन पर विभागीय कार्यवाही प्रारंभ कर दी गई है।

                                  ADVERTISEMENT

प्रश्नवाचक चिह्न अभी भी जीवित हैं… पर क्या सिर्फ़ एक निलंबन से अनुसंधान की उस आत्मा को पुनर्जीवित किया जा सकता है, जिसे लापरवाही और अहंकार ने तिल-तिल कर मारा? क्या उस पीड़ित पक्ष को न्याय मिल पाएगा, जिसने न्यायालय की सीढ़ियाँ न्याय के नाम पर चढ़ी थीं और बदले में अनदेखी, उपेक्षा और दमन का स्वाद चखा? क्या सिस्टम के वे अन्य चेहरे, जो इस निस्तेज अनुसंधान के अप्रत्यक्ष भागीदार रहे वे कभी जवाब देंगे?

                                 ADVERTISEMENT

न्याय सिर्फ़ शब्द नहीं यह एक उत्तरदायित्व है!

दरभंगा पुलिस के लिए यह सिर्फ़ एक निलंबन नहीं, बल्कि एक आईना है जिसमें अनुशासनहीनता का कुरूप चेहरा झलकता है। यदि इस घटना से पुलिस महकमा न्याय की आत्मा को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाए, तो शायद उस बहेड़ा कांड संख्या 455/23 के फाइल में फिर से रोशनी की किरन दाखिल हो। वरना, जैसे सैकड़ों केस, यह केस भी सिर्फ़ एक संख्या बनकर रह जाएगा और चंद्रकांत गौरी जैसे अधिकारी न्याय के पहरेदार नहीं, उसके क़ातिल साबित होंगे।