दरभंगा की रात जब जगी बाघमोड़ से घनश्यामपुर थाने तक पसीना बहाती वर्दियों की बूटध्वनि, SSP-SP की सीधी कमान और SHO सुधीर-अजीत की चौकसी में जाग उठा अपराधमुक्त शहर का सपना!

मिथिला की आत्मा को समेटे एक नगर जहाँ चाँदनी भी इतिहास के कपोलों पर उतरती है और जहाँ कानून की सांसें अब 'नया आचरण' तलाश रही हैं। 14 जून की वह रात कोई आम रात नहीं थी। यह वह घड़ी थी जब दरभंगा प्रशासन ने 'समकालीन विशेष अभियान' की अगुवाई करते हुए अपने तमाम नायकों को मैदान में उतार दिया। SSP दरभंगा एवं नगर SP की जोड़ी स्वयं सड़क पर उतर आई। यह कोई औपचारिकता नहीं थी। यह थी एक सशक्त, संकल्पबद्ध पुलिस की दृश्य-प्रतिक्रिया, जो अब 'कार्रवाई' से आगे 'संदेश' बनना चाहती थी. पढ़े पुरी खबर.......

दरभंगा की रात जब जगी बाघमोड़ से घनश्यामपुर थाने तक पसीना बहाती वर्दियों की बूटध्वनि, SSP-SP की सीधी कमान और SHO सुधीर-अजीत की चौकसी में जाग उठा अपराधमुक्त शहर का सपना!
दरभंगा की रात जब जगी बाघमोड़ से घनश्यामपुर थाने तक पसीना बहाती वर्दियों की बूटध्वनि, SSP-SP की सीधी कमान और SHO सुधीर-अजीत की चौकसी में जाग उठा अपराधमुक्त शहर का सपना!

दरभंगा, मिथिला की आत्मा को समेटे एक नगर जहाँ चाँदनी भी इतिहास के कपोलों पर उतरती है और जहाँ कानून की सांसें अब 'नया आचरण' तलाश रही हैं। 14 जून की वह रात कोई आम रात नहीं थी। यह वह घड़ी थी जब दरभंगा प्रशासन ने 'समकालीन विशेष अभियान' की अगुवाई करते हुए अपने तमाम नायकों को मैदान में उतार दिया। SSP दरभंगा एवं नगर SP की जोड़ी स्वयं सड़क पर उतर आई। यह कोई औपचारिकता नहीं थी। यह थी एक सशक्त, संकल्पबद्ध पुलिस की दृश्य-प्रतिक्रिया, जो अब 'कार्रवाई' से आगे 'संदेश' बनना चाहती थी।

                                  ADVERTISEMENT

बाघमोड़: जहाँ से बयार बदली: बाघमोड़ एक चौराहा, जो सिर्फ सड़क नहीं, बल्कि जिले की संवेदनशील नब्ज भी है। SSP व SP के वहां पहुँचने से पहले ही विश्वविद्यालय थाना अध्यक्ष सुधीर कुमार कमर में पिस्टल, हाथ में वायरलेस और निगाहों में तैयारी का ताप लिए अपनी पूरी फोर्स के साथ तैनात हो चुके थे। सुधीर कुमार का वही रूप ना झिझक, ना थकान। जो SSP के पहुंचने से पहले ही मोर्चा संभाल चुका हो, वह सिर्फ SHO नहीं होता, वह 'जिम्मेदारी का जीवंत प्रारूप' होता है।

                                 ADVERTISEMENT

फिर वही हुआ जिसकी उम्मीद थी SSP व SP के आदेश पर बाघमोड़ से लेकर लहेरियासराय, लोहिया चौक, बाँसडीह चौक तक पुलिस के वाहन रुके नहीं। हर बाइक पर सवाल, हर संदिग्ध पर नजर और हर अनजान चेहरे पर पुलिस की हाजिरी दर्ज होने लगी।

                                 ADVERTISEMENT

पाली चौक: SHO अजीत झा का चौकसी भरा चौक: दरभंगा की पूर्वी सीमा पर बसे घनश्यामपुर थाना के पाली चौक पर घनश्यामपुर थाना के SHO अजीत कुमार झा अपने लवाजमे के साथ डटे हुए थे। यह वही अधिकारी हैं जिनकी छवि एक 'तेजतर्रार रणनीतिक अधिकारी' की है। पाली चौक पर रुकते वाहन, जाँच के लिए रोके गए युवक, घबराहट के बीच SHO अजीत झा की आवाज़ में सख्ती के साथ एक अपनापन था। जैसे वह हर राहगीर से पूछ रहे हों "भाई, रात है, लेकिन हम जाग रहे हैं, क्या आप भी अपने गुनाहों से जाग चुके हैं?"

                                ADVERTISEMENT

यह तस्वीर, यह क्षण: जिस तस्वीर को आप देख रहे हैं, वह सिर्फ एक पुलिसकर्मी की ड्यूटी नहीं, बल्कि कानून की वो मशाल है जो रात की कालिमा चीरती है। बाइक सवार युवक से पूछताछ, पुलिस की घेरेबंदी, और गली के कोनों पर तैनात जवान हर दृश्य समाज की उस परछाई से टकराता है जहाँ से अपराध जन्म लेते हैं। रात में किसी कस्बे की गली में यह दृश्य सामान्य नहीं होता। यह तभी होता है जब प्रशासन सिर्फ लिखित आदेश नहीं, बल्कि जमीनी प्रतिश्रुति बनकर उतरता है।

                                 ADVERTISEMENT

यह अभियान क्यों जरूरी था? दरभंगा में हाल के दिनों में अपराध की प्रवृत्ति बदल रही थी। छोटे अपराधों की श्रृंखला अब संगठित रूप लेने लगी थी। बाइक से छीना-झपटी, शाम के अंधेरे में चोरी की घटनाएं, अफवाहें, असामाजिक तत्वों की गतिविधियाँ हर कोने में कानून की परीक्षा ली जा रही थी। ऐसे में SSP का यह निर्णय कि वह खुद सड़क पर उतरेंगे, महज एक प्रशासनिक निर्णय नहीं था। यह था एक 'जन-संवेदना' का पुनरुद्धार।

                                 ADVERTISEMENT

SHO सुधीर कुमार और अजीत झा दो चेहरे, एक सोच: सुधीर कुमार और अजीत झा दो अलग अलग थानों के कप्तान, लेकिन सोच एक। एक ओर सुधीर कुमार विश्वविद्यालय थानांतर्गत अपने थाना क्षेत्र में बुद्धिजीवियों के बीच कानून की छवि बनाए रखने को प्रतिबद्ध हैं, तो दूसरी ओर अजीत झा ग्रामीण सीमा पर अपराध के उन जालों को तोड़ने में लगे हैं जो अपराधियों के लिए 'सुरक्षा कवच' बनते हैं।

                                 ADVERTISEMENT

पुलिस के बदलते स्वरूप का प्रतीक: यह विशेष समकालीन अभियान केवल गिरफ्तारी या जाँच तक सीमित नहीं था। यह वह सन्देश था कि अब पुलिस 'कागज़ी बाघ' नहीं, 'सड़क का प्रहरी' बन चुकी है। हर चौक पर उनकी उपस्थिति उन अफवाहों और आरोपों का जवाब थी जो अक्सर पुलिस की निष्क्रियता पर उठते हैं।

                               ADVERTISEMENT

जनता का मनोबल: पाली चौक से लौटते एक बुजुर्ग ने कहा, "पहली बार लगा कि हम अकेले नहीं हैं। पुलिस है, जाग रही है। शायद अब हमारा गाँव सुरक्षित रहेगा।" क्या इससे बड़ा प्रमाण किसी अभियान की सफलता का हो सकता है?

                              ADVERTISEMENT

एक रात जो आने वाले कई दिनों की नींव रख गई: 14 जून की रात दरभंगा की सड़कों पर केवल वाहन नहीं रुके, वहाँ रुकीं अपराध की आकांक्षाएं, अपराधियों की हिम्मत और जनता की निराशा। जब SSP स्वयं बाघमोड़ पर हों, SP खुद हर गली में कदमताल कर रहे हों और SHO अपने-अपने मोर्चों पर सतर्क हों तो समाज केवल सोता नहीं, सपने देखता है एक सुरक्षित सुबह का। यह रिपोर्ट समर्पित है उन तमाम जवानों को जिन्होंने 14 जून की रात को केवल 'ड्यूटी' नहीं निभाई, बल्कि 'जिम्मेदारी' को जिया।