दरभंगा राजकिला स्थित हरि मंदिर परिसर में मिट्टी खोदकर बने घाट पर छठ मइया की आराधना जहाँ तालाब नहीं, वहाँ श्रद्धा ने रचा आस्था का समंदर! मोहल्ले के लोगों ने मिलकर बनाया भव्य घाट, दीपों और गीतों से गूंज उठा पूरा रामबाग, सूर्योपासना का यह दृश्य बना भक्ति, एकता और परंपरा का जीवंत प्रतीक!
राजकिला परिसर के ऐतिहासिक हरि मंदिर प्रांगण में इस वर्ष भी लोक आस्था के महापर्व छठ की भव्यता देखने लायक रही। जहाँ स्थायी तालाब नहीं है, वहीं श्रद्धा और सामूहिकता ने मिलकर असंभव को संभव बना दिया। मोहल्ले के लोगों ने जेसीबी से मिट्टी खोदकर मैदान में एक अस्थायी घाट तैयार किया और उसी में जल भरकर भक्ति और श्रद्धा की ज्योति प्रज्वलित कर दी. पढ़े पूरी खबर.......
दरभंगा। राजकिला परिसर के ऐतिहासिक हरि मंदिर प्रांगण में इस वर्ष भी लोक आस्था के महापर्व छठ की भव्यता देखने लायक रही। जहाँ स्थायी तालाब नहीं है, वहीं श्रद्धा और सामूहिकता ने मिलकर असंभव को संभव बना दिया। मोहल्ले के लोगों ने जेसीबी से मिट्टी खोदकर मैदान में एक अस्थायी घाट तैयार किया और उसी में जल भरकर भक्ति और श्रद्धा की ज्योति प्रज्वलित कर दी।

यह दृश्य मात्र पूजा का नहीं था यह उस भावना का प्रतीक था, जिसमें “आस्था किसी सुविधा की मोहताज नहीं होती।” सूर्यास्त की लालिमा में जब घाट की मिट्टी पर दीपक टिमटिमा रहे थे, तब हरि मंदिर परिसर मानो किसी स्वर्गिक प्रकाश से आलोकित हो उठा। छठ व्रतियों ने पारंपरिक वस्त्र पहनकर, सिर पर सुप लिए, सूर्य देव को डूबते सूरज का अर्घ्य अर्पित किया। उस क्षण न स्त्री थी, न पुरुष सब केवल भक्त थे, जिनकी आंखों में आस्था का दीप जल रहा था और होंठों पर जय छठी मइया के जयकार गूंज रहे थे।

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हरि मंदिर के सामने बने इस घाट को मोहल्ले के युवाओं ने मिलकर तैयार किया था। किसी ने मिट्टी समतल की, किसी ने केले का पौधा लगाया, तो किसी ने दीप सजाया। सबके दिलों में एक ही संकल्प था “छठ पूजा यहां की परंपरा है, इसे और सुंदर बनाना हमारा धर्म है।” यह छठ पर्व पिछले सात वर्षों से हरि मंदिर परिसर में मनाया जा रहा है। जबसे यहाँ के स्थानीय लोगों ने यह परंपरा शुरू की है, हर साल यह आयोजन और भी भव्य होता जा रहा है। इस बार भी शाम के अर्घ्य के बाद परिसर में ऐसी अलौकिक शांति थी, जिसे शब्दों में बयान करना कठिन है।

व्रती महिलाओं ने बताया कि यहाँ की मिट्टी में ही भक्ति बसती है। “छठ मइया केवल नदी-तालाब में नहीं, मन की पवित्रता में वास करती हैं,” एक व्रती ने मुस्कुराते हुए कहा। सच ही कहा जहाँ भाव सच्चा हो, वहाँ मिट्टी का घाट भी गंगाजल बन जाता है। पूरे आयोजन में यह देखना सुखद रहा कि बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक सभी ने अपनी भूमिका निभाई। युवाओं ने सुरक्षा और सजावट का कार्य संभाला, महिलाओं ने प्रसाद तैयार किया, और बुजुर्गों ने मंत्रोच्चार से माहौल को पवित्र बना दिया।

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हरि मंदिर के पुजारी ने बताया कि यह परंपरा अब केवल पूजा नहीं, बल्कि मोहल्ले की एक पहचान बन चुकी है। यह आयोजन यह संदेश देता है कि आस्था तब सबसे खूबसूरत होती है जब वह सामूहिकता के साथ जुड़ती है।आज जब शहरों में कृत्रिमता बढ़ रही है, तब हरि मंदिर परिसर का यह अस्थायी घाट हमें याद दिलाता है कि सच्ची भक्ति मिट्टी, पानी और दीपक में नहीं भावना और श्रम में छिपी होती है। अब कल प्रातःकाल, जब उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा, तो यह दृश्य और भी दिव्य होगा। तब यह वही धरती होगी, जहाँ मिट्टी से बने घाट पर जीवन की सबसे पवित्र प्रार्थना गूंजेगी “छठ मइया, सभ के कलेस मिटा दे, सुख-शांति दे...” यह केवल छठ नहीं था, यह रामबाग की मिट्टी में बसती उस सामूहिक चेतना का उत्सव था, जिसने भक्ति को सुविधा से ऊपर रख दिया।
