जब दरभंगा की धूल भरी गलियों में कांपती वृद्ध हथेलियों की दुआ ने रंग लाया और दस वर्षों की सरकारी खामोशी को तोड़ते हुए कलम, करुणा और कर्म की त्रयी ने सामाजिक सुरक्षा की उपेक्षित धारा को ग्यारह सौ रुपयों की गरिमा में परिणत किया; यह केवल पेंशन नहीं, यह न्याय की वापसी है, यह प्रमंडलीय पार्षद महासंघ की उस संघर्षशील स्याही का परिणाम है, जिसने भीड़ में गुम इंसानियत को फिर से नाम, पहचान और सम्मान दिलाया!

प्रमंडल की गलियों में कई घर ऐसे हैं, जहाँ खाँसी की आवाज़ किसी की पुकार बन चुकी थी। जहाँ हर सुबह एक वृद्ध महिला चूल्हे के धुएं में आंखें मलती थी, यह सोचकर कि क्या इस महीने भी चार सौ रुपये मिलेंगे? क्या चार दवाइयाँ छोड़नी होंगी या दो समय का खाना? दस वर्षों से बुजुर्ग, विधवा, विकलांग समाज के सबसे कोमल किन्तु उपेक्षित वर्ग, उसी ₹400 की पेंशन पर जीवन काट रहे थे, जो शायद किसी रेस्तरां की एक प्लेट पकौड़ी की कीमत से भी कम है. पढ़े पुरी खबर.......

जब दरभंगा की धूल भरी गलियों में कांपती वृद्ध हथेलियों की दुआ ने रंग लाया और दस वर्षों की सरकारी खामोशी को तोड़ते हुए कलम, करुणा और कर्म की त्रयी ने सामाजिक सुरक्षा की उपेक्षित धारा को ग्यारह सौ रुपयों की गरिमा में परिणत किया; यह केवल पेंशन नहीं, यह न्याय की वापसी है, यह प्रमंडलीय पार्षद महासंघ की उस संघर्षशील स्याही का परिणाम है, जिसने भीड़ में गुम इंसानियत को फिर से नाम, पहचान और सम्मान दिलाया!
दरभंगा की धूल भरी गलियों में कांपती वृद्ध हथेलियों की दुआ ने रंग लाया और दस वर्षों की सरकारी खामोशी को तोड़ते हुए कलम, करुणा और कर्म की त्रयी ने सामाजिक सुरक्षा की उपेक्षित धारा को ग्यारह सौ रुपयों की गरिमा में परिणत किया; यह केवल पेंशन नहीं, यह न्याय की वापसी है, यह प्रमंडलीय पार्षद महासंघ की उस संघर्षशील स्याही का परिणाम है, जिसने भीड़ में गुम इंसानियत को फिर से नाम, पहचान और सम्मान दिलाया!

दरभंगा प्रमंडल की गलियों में कई घर ऐसे हैं, जहाँ खाँसी की आवाज़ किसी की पुकार बन चुकी थी। जहाँ हर सुबह एक वृद्ध महिला चूल्हे के धुएं में आंखें मलती थी, यह सोचकर कि क्या इस महीने भी चार सौ रुपये मिलेंगे? क्या चार दवाइयाँ छोड़नी होंगी या दो समय का खाना? दस वर्षों से बुजुर्ग, विधवा, विकलांग समाज के सबसे कोमल किन्तु उपेक्षित वर्ग, उसी ₹400 की पेंशन पर जीवन काट रहे थे, जो शायद किसी रेस्तरां की एक प्लेट पकौड़ी की कीमत से भी कम है।

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एक दशक की चुप्पी, और बढ़ती महंगाई की मार: वर्ष 2015 में वृद्धजन, विधवा व दिव्यांग पेंशन ₹400 तय की गई थी। वह समय और था। तब गैस सिलेंडर ₹450 में आता था, दवा के रेट कुछ कम थे, आटा-चावल सस्ते थे। लेकिन तब से आज 2025 तक महंगाई ने पंख फैला लिए, और सरकार की चुप्पी ने ज़ुबान सिल दी। वृद्धजन बिना आवाज़ के भीड़ में गुम थे, विधवाएँ भीख और पेंशन में फर्क समझ नहीं पा रही थीं, और दिव्यांग अपनी लाचारी से हारते जा रहे थे।

उत्पत्ति: जब एक संघ ने आवाज़ दी: लेकिन दरभंगा प्रमंडल में कोई था जो यह पीड़ा सुन रहा था। "प्रमंडलीय पार्षद महासंघ", जो अक्सर जनता की समस्याओं को लेकर सजग रहता है, उसने 1 दिसंबर 2024 को आयोजित सम्मेलन में यह प्रस्ताव रखा कि अब इस मुद्दे पर खामोश रहना अन्याय होगा। सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि सरकार को लिखित ज्ञापन के माध्यम से यह माँग सौंपी जाएगी कि सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि को बढ़ाया जाए।

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संघर्ष: जब कलम, काग़ज़ और करुणा साथ चले: दिनांक 11 जनवरी 2025 को एक ऐतिहासिक ज्ञापन बिहार सरकार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार को भेजा गया। इस ज्ञापन में लिखा गया था: "400 रुपये से आज की तारीख में न दो वक़्त की रोटी मिलती है, न दवाई। कृपया वृद्धजनों, विधवाओं और दिव्यांगों की पीड़ा को समझते हुए इस राशि में बढ़ोतरी की कृपा करें।"

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इसके साथ ही समाज कल्याण मंत्री श्री मदन सहनी को भी ज्ञापन सौंपा गया। यह ज्ञापन न तो किसी पार्टी का था, न किसी आंदोलन का यह इंसानियत का पत्र था, जिसमें दर्द के साथ उम्मीद की भी स्याही थी।

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सफलता: जब 21 जून को टूटे पुराने बंधन: दिनांक 21 जून 2025, एक ऐतिहासिक दिन के रूप में दर्ज हो गया। माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ट्वीट के माध्यम से यह घोषणा की कि अब सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि ₹400 से बढ़ाकर ₹1100 कर दी गई है। यह सिर्फ़ एक सूचना नहीं थी यह उस वृद्ध महिला की आंखों से बहते आँसू थे, जिसे अब दवा और दाल दोनों मिल सकती है।

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जब ख़ुशी को स्वरूप मिला: इस उपलब्धि के उपलक्ष्य में 22 जून रविवार, दोपहर 3 बजे, दरभंगा नगर निगम परिसर में एक सांकेतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया है। इसमें पार्षदगण उन वृद्धजनों को सम्मानित करेंगे, जिनकी चुप्पी ने इतिहास रच दिया। यह एक अभिनव परंपरा होगी जहाँ सरकार से मिली राहत को केवल घोषणा नहीं, बल्कि संवाद के रूप में देखा जाएगा।

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भावना: आँसू, सम्मान और समाज का पुनर्निमाण: चार सौ रुपये का पेंशन अब ग्यारह सौ बन चुका है। हो सकता है यह राशि भी पर्याप्त न हो, पर यह एक संकेत है कि कोई है जो सुन रहा है, कोई है जो समझ रहा है। जहाँ सरकार पर अक्सर आरोप लगते हैं उपेक्षा के, वहीं इस बार आभार भी व्यक्त हुआ "प्रमंडलीय पार्षद महासंघ", उनके सभी सदस्य, और वे तमाम लोग जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस बढ़ोतरी के लिए प्रयासरत रहे।

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यह सिर्फ़ पेंशन नहीं, यह पुनः मनुष्यता की स्थापना है: जब समाज के सबसे कमज़ोर को अधिकार मिलता है, तो वह केवल उसके जीवन को नहीं, पूरे तंत्र को मजबूत करता है। आज दरभंगा प्रमंडल ने एक बार फिर साबित कर दिया कि “लड़ाई यदि ईमानदार हो तो सरकार भी झुकती है, और व्यवस्था भी बदलती है।”