जब सांसद बन गईं साध्वी दरभंगा की राज्यसभा सांसद डॉ. धर्मशीला गुप्ता ने परंपरा, आस्था और मातृत्व का संगम करते हुए आरंभ किया छठ का पवित्र व्रत, स्वयं बना रही हैं प्रसाद, आज गामी तालाब पर करेंगी अर्घ्य अर्पण
मिथिला की धरती पर आज फिर आस्था का सागर उमड़ आया है। हर घाट, हर गली, हर आँगन में माताएँ और बहनें अपने आराध्य भगवान भास्कर की उपासना में रमी हैं। इसी लोकपरंपरा की पवित्र धारा में आज राज्यसभा सांसद डॉ. धर्मशीला गुप्ता भी पूर्ण श्रद्धा और भक्ति भाव से डूबी हुई हैं। बीती रात उन्होंने विधि-विधान से खरना पूजा संपन्न की, जहाँ शुद्धता, संयम और श्रद्धा का अद्भुत संगम देखने को मिला। सादा वस्त्र, बिना अलंकार, और नेत्रों में भक्ति का तेज यही था सांसद डॉ. गुप्ता का श्रृंगार. पढ़े पूरी रिपोर्ट.....
दरभंगा से आशिष कुमार की रिपोर्ट। मिथिला की धरती पर आज फिर आस्था का सागर उमड़ आया है। हर घाट, हर गली, हर आँगन में माताएँ और बहनें अपने आराध्य भगवान भास्कर की उपासना में रमी हैं। इसी लोकपरंपरा की पवित्र धारा में आज राज्यसभा सांसद डॉ. धर्मशीला गुप्ता भी पूर्ण श्रद्धा और भक्ति भाव से डूबी हुई हैं। बीती रात उन्होंने विधि-विधान से खरना पूजा संपन्न की, जहाँ शुद्धता, संयम और श्रद्धा का अद्भुत संगम देखने को मिला। सादा वस्त्र, बिना अलंकार, और नेत्रों में भक्ति का तेज यही था सांसद डॉ. गुप्ता का श्रृंगार।

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आज प्रातः से ही उनके दरभंगा स्थित आवास से घी की हल्की सुगंध और ठकुआ के तवे की छन-छन सुनाई दे रही थी। सांसद स्वयं अपने हाथों से ठकुआ, कसार और पूड़ी बना रही थीं, जैसे एक माँ अपने बच्चों के लिए प्रसाद तैयार करती है। राजनीति की मंचों पर सख्त दिखने वाली यह महिला नेता, आज एक साध्वी की तरह पूजा में लीन थीं। उन्होंने मुस्कराते हुए कहा छठ पूजा हमारे जीवन की शुद्धतम साधना है। इस दिन मनुष्य अपने भीतर की अपवित्रता को धोता है और आत्मा को सूर्य की ज्योति में समर्पित करता है। हर वर्ष मैं स्वयं प्रसाद बनाती हूँ, क्योंकि इसमें भक्ति का स्वाद है, आस्था की सुगंध है, और माँ की ममता की मिठास है। छठ की पूजा के दौरान उनका पूरा परिवार भी सक्रिय है। किसी के हाथ में प्रसाद की टोकरी है, कोई गन्ने का बाँस सजा रहा है, तो कोई पूजा सामग्री समेट रहा है। सबके चेहरों पर एक ही भाव “सूर्य देव की कृपा सब पर बनी रहे।”

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आज शाम गामी तालाब के पवित्र घाट पर डॉ. धर्मशीला गुप्ता अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य अर्पित करेंगी। वही गामी तालाब, जहाँ हर साल हज़ारों व्रती महिलाओं की आस्था की लहरें उठती हैं। डूबते सूरज के सामने जल में खड़ी वह व्रती जब अर्घ्य देती हैं, तो लगता है मानो मानव और प्रकृति के बीच संवाद का सबसे पवित्र क्षण जन्म ले रहा हो। डॉ. गुप्ता का कहना है कि “छठ पूजा केवल एक पर्व नहीं, यह हमारी संस्कृति की आत्मा है। इसमें न दिखावा है, न आडंबर बस शुद्धता, समर्पण और भक्ति का भाव है।” उनके आवास के बाहर से गुजरने वाले लोग रुककर निहारते हैं सांसद नहीं, बल्कि एक श्रद्धालु माँ, जो अपनी संतान और समाज की सुख-शांति के लिए तप कर रही हैं। दरभंगा के लोग जानते हैं कि डॉ. गुप्ता वर्षों से इस परंपरा को निभाती आ रही हैं। चुनावी व्यस्तता, संसद की हलचल या दिल्ली की चकाचौंध कुछ भी उन्हें इस लोक आस्था से दूर नहीं कर पाता।

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आज दरभंगा के आसमान पर जब सूर्य अस्त होगा, तब गामी तालाब की लहरों पर दीपक की लौ नाचती नजर आएगी और उनमें से एक लौ सांसद धर्मशीला गुप्ता के हाथों से अर्पित होगी, जो कहेगी “हे भास्कर! जैसे तुम पूरी सृष्टि को प्रकाश देते हो, वैसे ही हमारे समाज में शांति, समृद्धि और स्नेह का उजाला फैलाओ।” इस पूजा में राजनीति नहीं, राष्ट्र की आत्मा का स्पर्श है। दरभंगा की यह बेटी जब जल में खड़ी होकर सूर्य को प्रणाम करती है, तो यह दृश्य केवल पूजा नहीं, बल्कि संस्कृति की जीवित प्रतिमा बन जाता है।
