एसएसपी साहब! नेहरा थाना के थानाध्यक्ष ने दिखा दिया कि आपकी निगरानी में पुलिस सिर्फ माला नहीं जपती, मैदान में उतरकर अपराधियों को हथियार सहित धर दबोचती है यह कार्रवाई नहीं, दरभंगा पुलिस की आत्मा की पुनर्स्थापना है!
अगर दरभंगा की पुलिस सो जाए तो हथियार बोलते हैं, लेकिन अगर वो जाग जाए, तो अपराध की सांसें उखड़ने लगती हैं!" बीती रात नेहरा थाना क्षेत्र में दरभंगा पुलिस ने जिस चपलता और सजगता से दो अपराधियों को देशी पिस्टल के साथ गिरफ्तार किया, वो महज़ एक रूटीन गश्ती नहीं, बल्कि दरभंगा पुलिस की नई सोच, नई रणनीति और जनसुरक्षा के प्रति अदम्य संकल्प की प्रतिध्वनि थी. पढ़े पुरी खबर.......

दरभंगा: अगर दरभंगा की पुलिस सो जाए तो हथियार बोलते हैं, लेकिन अगर वो जाग जाए, तो अपराध की सांसें उखड़ने लगती हैं! बीती रात नेहरा थाना क्षेत्र में दरभंगा पुलिस ने जिस चपलता और सजगता से दो अपराधियों को देशी पिस्टल के साथ गिरफ्तार किया, वो महज़ एक रूटीन गश्ती नहीं, बल्कि दरभंगा पुलिस की नई सोच, नई रणनीति और जनसुरक्षा के प्रति अदम्य संकल्प की प्रतिध्वनि थी। यह सिर्फ दो अभियुक्तों की गिरफ्तारी नहीं थी यह उस तंत्र का जीवित प्रमाण था जो अब सिर्फ जिला मुख्यालय में नहीं, गाँव की गलियों तक जाग रहा है।
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गांव की नींद में बंदूक की चुप्पी और पुलिस की चेतना: जब देशी पिस्टल लेकर घूम रहे दो युवक अपराध की योजना में जुटे थे, उस वक्त नेहरा थाने की पुलिस रात की ख़ामोशी को तोड़ती हुई एक मिशन पर थी। यह उस मानसिकता का परिणाम था, जिसमें दरभंगा के वरीय पुलिस अधीक्षक ने हर थाना को "कागज़ी ताक़त" से निकालकर "मैदान का योद्धा" बना दिया है। नेहरा थानाध्यक्ष और उनकी टीम ने यह साबित कर दिया कि अब रात्रि गश्ती केवल खानापूरी नहीं, बल्कि अपराधियों के लिए काल का पैग़ाम है।
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अब अपराधी नहीं बचेंगे, चाहे गाँव के हों या गढ़ के: दरभंगा पुलिस की यह कार्रवाई कोई एक घटना नहीं, बल्कि लगातार हो रहे उन प्रयासों की श्रृंखला है, जिसमें हर थानाध्यक्ष से लेकर जवान तक अब अपनी वर्दी की गरिमा को मैदान में उतरकर साबित कर रहे हैं।
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थानों को अब राजनीतिक दबाव का अड्डा नहीं, पेशेवर अनुशासन का केन्द्र बनाया जा रहा है। पुलिस के पास अब सिर्फ लाठी नहीं, लॉजिक भी है अपराधी की चाल, हथियार की क्वालिटी और साइबर एक्टिविटी तक पर निगाह है। वरीय पुलिस अधीक्षक अब काग़ज़ी रिपोर्ट से नहीं, जमीनी एक्शन से संतुष्ट होते हैं।
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नेहरा थाने की कार्रवाई: एक उदाहरण, एक एलान: नेहरा थाना के थानाध्यक्ष ने जो तत्परता दिखाई, वो दरभंगा जिले के उन थानों के लिए चेतावनी है जो आज भी "गेस्ट हाउस पुलिसिंग" में व्यस्त हैं। गांवों में अपराध धीरे-धीरे जंगल की तरह पनपता है और अगर समय पर जंगल की आग न बुझाई जाए तो शहर को भी निगल सकती है। नेहरा ने समय रहते उस चिंगारी को बुझा दिया।
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गिरफ्तार हुए अपराधी: अजीत कुमार यादव और सुमन जी यादव दो ऐसे नाम, जो अब बंदूक के साथ नहीं, हथकड़ी के साथ दर्ज होंगे। जनता बोले ‘अब पुलिस सुनती है, चलती भी है’ दरभंगा में आम लोग पहले कहते थे “थाने में शिकायत करो, फिर महीनों दौड़ो।” लेकिन अब स्थितियां बदल रही हैं। गांव के बुजुर्ग, दुकानदार, किसान सब मान रहे हैं कि अब पुलिस की गश्ती सिर्फ मोटरसाइकिल की आवाज़ नहीं, अपराधियों के लिए मनोवैज्ञानिक दबाव बन चुकी है।
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एक ग्रामीण की प्रतिक्रिया: “पहले अपराधी मोटरसाइकिल से डराते थे, अब पुलिस की बाइक की आवाज़ से उनके पसीने छूटते हैं।”
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एक्शन ही पहचान बने, यही समय की मांग है: वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक दरभंगा की अगुवाई में यह साफ दिख रहा है कि ‘वर्क कल्चर’ अब ‘वर्क इम्पैक्ट’ में बदला है। लेकिन अभी रास्ता लंबा है। हर थाना अगर नेहरा जैसा बने, हर गश्ती अगर कार्रवाई में बदले, तो दरभंगा की सड़कों पर भय नहीं, भरोसा दौड़ेगा।
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आख़िरी बात यह गिरफ्तारी नहीं, व्यवस्था की चेतना है: नेहरा थाना की रात की कार्रवाई ने यह साफ कर दिया कि दरभंगा की पुलिस अब ‘रीऐक्टिव’ नहीं बल्कि ‘प्रोऐक्टिव’ मोड में है। यह खबर उन अधिकारियों के मुंह पर तमाचा है जो अब भी बैठकों में आंकड़े गिनते हैं और मैदान में नदारद हैं। अगर पुलिस ऐसे ही काम करती रही, तो अपराधियों की नीयत, नीति और नेटवर्क तीनों दरभंगा की मिट्टी में गड़ जाएंगे। "यह खबर नहीं, चेतावनी है अगर दरभंगा पुलिस ने ठान ली, तो अब अपराध नहीं बचेंगे!"