बिरौल थानाध्यक्ष विशाल कुमार सिंह पर गिरी गाज नाबालिग बेटी की फरियाद दबाने का मिला दंड, वरीय पुलिस अधीक्षक जगुनाथ रेड्डी जलारेड्डी की अनुशंसा पर पुलिस उप-महानिरीक्षक मिथिला क्षेत्र ने किया निलंबन, अब थानाध्यक्ष बने चन्द्र मणि; यह मामला सिर्फ़ एक अधिकारी की गलती नहीं, बल्कि पूरे पुलिस तंत्र के लिए चेतावनी है कि जनता की पुकार दबाना अब असंभव है
बिहार की पुलिस व्यवस्था में अनुशासन और जवाबदेही के किस्से अक्सर कागज़ों में ही दर्ज रह जाते हैं। लेकिन कभी-कभी कुछ घटनाएँ इस सच्चाई को उजागर कर देती हैं कि आम जनता की पुकार यदि सुनाई नहीं देती, तो कानून की गरिमा पर भी प्रश्नचिह्न लग जाता है। बिरौल थाना का यह ताज़ा प्रकरण इसी कड़ी की एक दर्दनाक मिसाल है. पढ़े पुरी खबर.......

दरभंगा: बिहार की पुलिस व्यवस्था में अनुशासन और जवाबदेही के किस्से अक्सर कागज़ों में ही दर्ज रह जाते हैं। लेकिन कभी-कभी कुछ घटनाएँ इस सच्चाई को उजागर कर देती हैं कि आम जनता की पुकार यदि सुनाई नहीं देती, तो कानून की गरिमा पर भी प्रश्नचिह्न लग जाता है। बिरौल थाना का यह ताज़ा प्रकरण इसी कड़ी की एक दर्दनाक मिसाल है।
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11 अगस्त 2025। बिरौल थाना क्षेत्र की एक नाबालिग लड़की का अपहरण होता है। सामान्यतः ऐसी स्थिति में पुलिस को तत्काल प्राथमिकी दर्ज कर त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए थी। लेकिन आश्चर्य और दुख की बात यह रही कि जब पीड़िता के पिता ने 14 अगस्त को थाना पहुँचकर लिखित आवेदन दिया, तो थानाध्यक्ष विशाल कुमार सिंह ने एफआईआर दर्ज नहीं किया। यही नहीं, पिता को 16 अगस्त और फिर 18 अगस्त को भी थाना के चक्कर लगाने पड़े। बार-बार की गुहार के बावजूद थानाध्यक्ष कान बंद किए बैठे रहे। 20 अगस्त को जब लड़की की बरामदगी हुई, तब पिता को थाना बुलाकर पी.आर. बाउंड भरवाया गया और बेटी को सौंप दिया गया, लेकिन तब भी एफआईआर का नामोनिशान तक नहीं था।
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व्यवस्था की विफलता और सवाल: यह घटना सिर्फ़ एक थानाध्यक्ष की चूक नहीं है, बल्कि यह पूरी व्यवस्था पर सवाल उठाती है। क्या थानाध्यक्ष को यह अधिकार है कि वह किसी आवेदन को महीनों तक दबाकर रखे? क्या नाबालिग लड़की के अपहरण जैसे गंभीर मामले में एफआईआर दर्ज न करना सेवा शपथ और कानून की अवहेलना नहीं है? अगर यह घटना उच्च अधिकारियों के संज्ञान में नहीं आती, तो क्या आज तक एफआईआर भी दर्ज होती?
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उच्चाधिकारियों की सजगता और अनुशासनिक कार्रवाई: इस प्रकरण ने जब वरीय पुलिस पदाधिकारियों का ध्यान खींचा, तो 28 अगस्त को आखिरकार मामला दर्ज हुआ। अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी, बिरौल ने जाँच कर थानाध्यक्ष को दोषी ठहराया और रिपोर्ट वरीय पुलिस अधीक्षक जगुनाथ रेड्डी, दरभंगा को सौंपी। इसके बाद वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने पुलिस उप-महानिरीक्षक, मिथिला क्षेत्र को अनुशंसा भेजी। परिणामस्वरूप, 6 सितंबर 2025 को थानाध्यक्ष विशाल कुमार सिंह को निलंबित कर दिया गया। उनका मुख्यालय अब पुलिस केंद्र, दरभंगा तय किया गया है।
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नई जिम्मेदारी : क्या बदलेगी तस्वीर: निलंबन के बाद बिरौल थाने की बागडोर अब पु०नि० चन्द्र मणि, अंचल पुलिस निरीक्षक, सदर अंचल के हाथों सौंपी गई है। सवाल यह है कि क्या अब थाने की कार्यशैली में बदलाव आएगा? क्या आम जनता यह भरोसा कर पाएगी कि उनकी फरियाद अब दबाई नहीं जाएगी?
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थानाध्यक्ष का निलंबन महज़ एक दंडात्मक कार्रवाई है, परंतु यह व्यापक चेतावनी भी है। यह संदेश है कि जनता की शिकायतों की उपेक्षा करना अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पुलिस की प्राथमिक जिम्मेदारी जनता का विश्वास कायम रखना है, न कि आवेदन दबाना।नाबालिग, महिला और शोषित वर्ग से जुड़े मामलों में लापरवाही अस्वीकार्य है। लेकिन यहाँ एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या ऐसे मामलों में सिर्फ़ निलंबन काफी है? क्या पुलिस अधिकारियों की जवाबदेही सिर्फ़ पद से हटाए जाने तक सीमित होनी चाहिए, या फिर ऐसे मामलों में कानूनी कार्रवाई भी सुनिश्चित होनी चाहिए?
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समाज और प्रशासन के लिए सबक: यह प्रकरण समाज के लिए भी एक आईना है। अगर एक पिता को अपनी नाबालिग बेटी की फरियाद दर्ज कराने के लिए इतने दिन भटकना पड़े, तो सोचिए उन ग़रीब, असहाय और निरक्षर परिवारों का क्या होता होगा जिनकी आवाज़ दब ही जाती है। प्रशासन के लिए यह समय आत्ममंथन का है। क्योंकि अगर थाना भरोसे की जगह भय और उदासीनता का प्रतीक बनने लगे, तो कानून के राज की नींव ही हिल जाती है। बिरौल थानाध्यक्ष का निलंबन एक कार्रवाई है, परंतु यह पर्याप्त नहीं है। असली सुधार तब होगा जब हर थाना जनता की आवाज़ को गंभीरता से सुने। एफआईआर दर्ज करने में लापरवाही करने वालों पर निलंबन ही नहीं, बल्कि कानूनी दंड भी हो। उच्च अधिकारियों की सतर्कता स्थायी रूप से बनी रहे, न कि किसी शिकायत पर ही जागरण हो। यह घटना हमें याद दिलाती है कि कानून की चौखट पर न्याय सिर्फ़ कागज़ों में नहीं, बल्कि व्यवहार में भी सुनिश्चित होना चाहिए। और यही पुलिस की असली परीक्षा है।