जब टिकट गया तो दरभंगा ने कहा नायक हमारा है! भावनाओं की भीड़, संघर्ष की पुकार और जनता के विश्वास का ताज बनकर उभरे राकेश नायक, जिन्होंने टिकट से बड़ी राजनीति की परिभाषा लिखी; सुख-दुःख, धूप-छाँव, दिन-रात हर पल जनता के साथ रहने का संकल्प लिया पढ़िए मिथिला जन जन की आवाज की यह ऐतिहासिक रिपोर्ट, जहाँ राजनीति से ज़्यादा रिश्तों की गर्माहट बोली

दरभंगा की उस दोपहर में हवा में कुछ ऐसा कंपन था, जो राजनीति की औपचारिकता से परे जाकर भावनाओं की धड़कन में बदल चुका था। राजद के वरिष्ठ नेता राकेश नायक के आवास पर भीड़ थी मगर यह भीड़ टिकट के ग़म में सिसकती नहीं, बल्कि अपने नेता के प्रति निष्ठा, समर्पण और आस्था की मिसाल बन चुकी थी। वो सड़कों पर, गलियों में, चौक-चौराहों पर गूँज रही थी हमारा नेता हमारे बीच रहेगा, चाहे कुर्सी दे या दुनिया छीन ले!..... पढ़े पूरी खबर.......

जब टिकट गया तो दरभंगा ने कहा नायक हमारा है! भावनाओं की भीड़, संघर्ष की पुकार और जनता के विश्वास का ताज बनकर उभरे राकेश नायक, जिन्होंने टिकट से बड़ी राजनीति की परिभाषा लिखी; सुख-दुःख, धूप-छाँव, दिन-रात हर पल जनता के साथ रहने का संकल्प लिया पढ़िए मिथिला जन जन की आवाज की यह ऐतिहासिक रिपोर्ट, जहाँ राजनीति से ज़्यादा रिश्तों की गर्माहट बोली
जब टिकट गया तो दरभंगा ने कहा नायक हमारा है! भावनाओं की भीड़, संघर्ष की पुकार और जनता के विश्वास का ताज बनकर उभरे राकेश नायक, जिन्होंने टिकट से बड़ी राजनीति की परिभाषा लिखी; सुख-दुःख, धूप-छाँव, दिन-रात हर पल जनता के साथ रहने का संकल्प लिया पढ़िए मिथिला जन जन की आवाज की यह ऐतिहासिक रिपोर्ट, जहाँ राजनीति से ज़्यादा रिश्तों की गर्माहट बोली....

दरभंगा की उस दोपहर में हवा में कुछ ऐसा कंपन था, जो राजनीति की औपचारिकता से परे जाकर भावनाओं की धड़कन में बदल चुका था। राजद के वरिष्ठ नेता राकेश नायक के आवास पर भीड़ थी मगर यह भीड़ टिकट के ग़म में सिसकती नहीं, बल्कि अपने नेता के प्रति निष्ठा, समर्पण और आस्था की मिसाल बन चुकी थी। वो सड़कों पर, गलियों में, चौक-चौराहों पर गूँज रही थी "हमारा नेता हमारे बीच रहेगा, चाहे कुर्सी दे या दुनिया छीन ले!"

                                      Advertisement

दरभंगा में एक तस्वीर बदली मगर विश्वास नहीं टूटा: राजद ने टिकट न देकर भले राजनीतिक समीकरण का हिसाब जोड़ा हो, पर जनता ने भावनाओं का हिसाब खोल दिया। शनिवार की सुबह से ही कार्यकर्ता, समर्थक और आम लोग राकेश नायक के घर पहुँचने लगे। लाल रंग की कुर्सियाँ, पीले दीवारों की छाया, बीच में खुला आँगन और वहाँ बैठा एक चेहरा जो शांत था, मगर उसकी आँखों में तपते सवाल थे। यह चेहरा राकेश नायक का था वही राकेश नायक जिसने दो दशक तक दरभंगा की मिट्टी में सामाजिक न्याय की मशाल थाम रखी थी।

                                      Advertisement

“मैं रहूँगा आपके बीच, चाहे कोई मंच दे या न दे”: जब भीड़ थोड़ी शांत हुई, राकेश नायक खड़े हुए। उनकी आवाज़ में कंपकंपी नहीं थी दृढ़ता थी, दर्द था और भरोसा था। उन्होंने कहा की “आप सबों की यह ऐतिहासिक उपस्थिति मेरे लिए शब्दों से परे है। टिकट एक कागज़ का टुकड़ा हो सकता है, मगर जनता का स्नेह एक जीवन की दिशा है। दशकों से मैं आपके बीच संघर्षरत हूँ, और अब यह संघर्ष रुकने वाला नहीं।सुख-दुःख में, अभाव और प्रभाव में, धूप और छाँव में, दिन और रात हर परिस्थिति में मैं आपके साथ रहूँगा। यही मेरा धर्म है, यही मेरी राजनीति है।”

                                     Advertisement

उस पल, वातावरण में नारे नहीं थे सिर्फ़ एक सामूहिक मौन था, जिसमें वफ़ादारी की कसम गूँज रही थी। संघर्ष की वह रेखा जो दलों से बड़ी है दरभंगा की राजनीति में राकेश नायक सिर्फ़ एक नाम नहीं, बल्कि “संघर्ष का पर्याय” बन चुके हैं। वर्षों से वे हर वर्ग, हर समाज, हर सड़क पर सक्रिय रहे। गरीबों के हक़ की आवाज़ हों या प्रशासन की निष्क्रियता पर ललकार, उन्होंने हमेशा ज़मीन का रास्ता चुना न कि मंच का। राजद द्वारा टिकट नहीं मिलना, उनके लिए व्यक्तिगत चोट कम और राजनीतिक इतिहास का नया अध्याय ज़्यादा था। उन्होंने अपने संबोधन में कहा “मैंने सेवा को ही अपना धर्म माना है। टिकट से नहीं, जनता के विश्वास से राजनीति चलती है। यही मेरी असली पहचान है।”

                                     Advertisement

“यह जनता का आंदोलन है, किसी पार्टी का नहीं”: कार्यक्रम में उपस्थित कार्यकर्ताओं के चेहरे पर कोई निराशा नहीं थी। किसी ने कहा “टिकट मिलना या न मिलना बड़ा सवाल नहीं, नेता का जनता से जुड़ाव ही उसकी असली पहचान है।” दूसरे ने कहा “आज दरभंगा ने देखा कि एक सच्चा जननायक अपने समर्थकों के बीच कैसा दिखता है सरल, स्थिर और संवेदनशील।” लोगों के बीच से उठती हर आवाज़ एक ही दिशा में जा रही थी “राकेश नायक हमारे दिलों में हैं, पद किसी और के पास रहे।”

                                     Advertisement

भावनाओं का महासागर और सेवा का संकल्प: कार्यक्रम के अंत में राकेश नायक ने हाथ जोड़ कर कहा “आप सबों का यह स्नेह मेरे लिए अनमोल है। मैं वादा करता हूँ कि सेवा और संघर्ष की यह यात्रा और तेज़ रफ्तार से आगे बढ़ेगी। मैं जनता के बीच हूँ, जनता के लिए हूँ, और जनता के साथ ही रहूँगा।” यह कहकर उन्होंने धीरे से भीड़ की ओर देखा वह दृश्य किसी राजनीतिक सभा से ज़्यादा एक भावनात्मक मिलन का प्रतीक था। लोग उठे, उनके पैर छुए, कुछ की आँखें नम थीं।

                                    Advertisement

इतिहास गवाह रहेगा... 18 अक्टूबर 2025, दरभंगा की उस दोपहर ने यह साबित कर दिया कि राजनीति की परिभाषा सिर्फ़ सत्ता नहीं होती, वह रिश्तों का वह ताना-बाना है जो जनता और जननायक के बीच विश्वास से बुना जाता है। राकेश नायक आज सिर्फ़ एक नेता नहीं रहे वे “आम जन की आवाज़” बन चुके हैं। दरभंगा की धरती पर यह दृश्य आने वाले वर्षों तक याद रखा जाएगा जब टिकट छिन गया था, मगर आशीर्वाद और आस्था की बाढ़ ने राजनीति के पत्थर को भी पिघला दिया था।