बड़ी खबर: राजद में दरभंगा से फूटा असंतोष का ज्वालामुखी टिकट बंटवारे की राजनीति में उपेक्षित अति पिछड़ा नेताओं ने थामा इस्तीफ़े का रास्ता, बोले भोला सहनी ‘अब अपमान नहीं सहेंगे, संघर्ष ही सम्मान है!’ पढ़िए आशिष कुमार की यह विशेष रिपोर्ट जो बताएगी कैसे टूट रही है राजद की सामाजिक नींव और बिखर रहा है विश्वास का ताना-बाना!
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के भीतर उठी बगावत ने पार्टी की जड़ों को हिलाकर रख दिया है। टिकट बंटवारे में उपेक्षा और अंदरूनी पक्षपात से क्षुब्ध होकर राजद के अति पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के करीब 50 नेताओं ने एक साथ इस्तीफ़ा देकर पार्टी नेतृत्व को बड़ा झटका दिया है। दरभंगा में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह इस्तीफ़ा न केवल राजनीतिक रूप से, बल्कि सामाजिक रूप से भी ‘संदेश’ बन गया कि अब मौन नहीं, मान की राजनीति होगी. पढ़े पूरी रिपोर्ट......

दरभंगा: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के भीतर उठी बगावत ने पार्टी की जड़ों को हिलाकर रख दिया है। टिकट बंटवारे में उपेक्षा और अंदरूनी पक्षपात से क्षुब्ध होकर राजद के अति पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के करीब 50 नेताओं ने एक साथ इस्तीफ़ा देकर पार्टी नेतृत्व को बड़ा झटका दिया है। दरभंगा में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह इस्तीफ़ा न केवल राजनीतिक रूप से, बल्कि सामाजिक रूप से भी ‘संदेश’ बन गया कि अब मौन नहीं, मान की राजनीति होगी।
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टिकट का खेल और टूटते भरोसे की कहानी: राजद के जिन नेताओं ने इस्तीफ़ा दिया है, उनमें प्रदेश महासचिव भोला सहनी, प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. कुमार गौरव, प्रधान महासचिव गोपाल लाल देव, जिला महासचिव श्याम सुंदर कामत, और प्रदेश सचिव सुशील सहनी जैसे कई प्रभावशाली नाम शामिल हैं। इन सभी नेताओं का कहना है कि वर्षों की निष्ठा, संघर्ष और जनसमर्थन के बावजूद टिकट वितरण में अति पिछड़ा समाज की उपेक्षा की गई। “हमने पार्टी को परिवार समझा, लेकिन अब यह व्यक्ति-पूजक मंडली बन चुकी है,” यह कहते हुए डॉ. कुमार गौरव की आवाज़ में एक गहरी पीड़ा झलक रही थी। उन्होंने कहा, “राजद अब विचारधारा की नहीं, चापलूसी और आर्थिक ताकत की पार्टी बन चुकी है। अति पिछड़े समाज ने वर्षों तक इस दल को सींचा, लेकिन जब सम्मान की बारी आई, तो हमें किनारे कर दिया गया।”
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भोला सहनी की दो टूक ‘हम अपमानजनक समझौते नहीं करेंगे’: इस्तीफ़ा देने वालों में शामिल पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष भोला सहनी ने कहा कि पार्टी में ईमानदार और समर्पित कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता जा रहा है। उन्होंने बड़ी सादगी लेकिन तीखे शब्दों में कहा, “हमने संघर्ष किया, पार्टी का झंडा उठाया, हर गांव में लोगों का भरोसा जगाया, लेकिन जब मेहनत का सम्मान मिलना चाहिए था, तब पैसे वालों की झोली भर दी गई। अब हम सम्मानजनक राजनीति करेंगे, न कि अपमानजनक समझौते।” उनकी बात पर वहां मौजूद अन्य नेताओं ने भी सहमति जताई। पूरा माहौल एक तरह से भावनात्मक और विद्रोहपूर्ण दोनों का संगम बन गया था।
अति पिछड़ा वर्ग की आवाज़ को दबाने का आरोप: राजद अति पिछड़ा प्रकोष्ठ के नेताओं का आरोप है कि टिकट वितरण में सिर्फ़ चुनिंदा चेहरों और परिवारों को तरजीह दी गई, जबकि वर्षों से काम कर रहे अति पिछड़ा समाज के सैकड़ों कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर दिया गया। प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. कुमार गौरव ने कहा कि “राजद का मूल आधार ही अति पिछड़ा और दलित समाज रहा है, लेकिन अब पार्टी अपने ही आधार को भूल चुकी है। ऐसे में हम कैसे चुप रहें? हम अपनी मेहनत और समाज के आत्मसम्मान की राजनीति करेंगे, चाहे रास्ता कितना भी कठिन क्यों न हो।”
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दरभंगा से उठी बगावत की लपटें, असर पूरे उत्तर बिहार में: राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बगावत सिर्फ दरभंगा की सीमाओं में नहीं बंधी रहेगी। अति पिछड़ा वर्ग का एक बड़ा समूह पार्टी से दूरी बना ले, तो इसका सीधा असर उत्तर बिहार के लगभग दो दर्जन विधानसभा क्षेत्रों में देखने को मिल सकता है खासकर उन इलाकों में जहां अति पिछड़ा वर्ग चुनावी समीकरण तय करता है। दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सीतामढ़ी और मधेपुरा जैसे जिलों में इस वर्ग की संख्या और प्रभाव दोनों ही अहम हैं। राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ. अरविंद मिश्र का कहना है “यह इस्तीफ़ा केवल नाराज़गी नहीं, एक ‘राजनीतिक संकेत’ है। यदि राजद नेतृत्व ने इसे हल्के में लिया, तो यह असंतोष चुनावी हार का कारण भी बन सकता है।”
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‘पार्टी अब जनआंदोलन नहीं, पारिवारिक प्रतिष्ठान बन गई है’: राजद के पूर्व पदाधिकारियों ने यह भी कहा कि पार्टी की पहचान जो कभी गरीबों और पिछड़ों की आवाज़ के रूप में थी, अब सत्ता और संपत्ति की राजनीति में खो चुकी है। गोपाल लाल देव ने कहा, “जब कोई पार्टी जनता से ज़्यादा अपने घराने की चिंता करने लगे, तो उसकी रीढ़ टूट जाती है। हम वही रीढ़ थे, जिन्हें अब बोझ समझ लिया गया।”
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पार्टी में मचा हड़कंप, नेतृत्व मौन: राजद की ओर से अब तक इस सामूहिक इस्तीफ़े पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि पार्टी सूत्रों का कहना है कि शीर्ष नेतृत्व इस बगावत से हैरान है और कुछ वरिष्ठ नेता दरभंगा पहुँचकर नाराज़ नेताओं को मनाने की कोशिश कर सकते हैं। लेकिन राजनीतिक माहौल देखकर लगता है कि अब यह सिर्फ़ “मनाने” का मामला नहीं, बल्कि सम्मान और अस्तित्व की लड़ाई बन चुकी है।आग भोला सहनी ने साफ़ कहा “हम किसी दल की गोद में नहीं जाएंगे। हम अपने समाज की राजनीति करेंगे, अपने आत्मसम्मान के साथ। अगर ज़रूरत पड़ी तो नया मंच भी बनाएंगे, लेकिन बिकेंगे नहीं।”
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अंतिम पंक्तियाँ बगावत की शुरुआत दरभंगा से, असर पूरे बिहार तक: दरभंगा की धरती से उठी यह बगावत अब सिर्फ़ एक ज़िला स्तर की घटना नहीं रही। यह उन तमाम अवाम और कार्यकर्ताओं की आवाज़ बन चुकी है, जिन्हें अब राजनीति में सिर्फ़ वोट बैंक समझा जाता है। राजद के भीतर यह पहली बार नहीं जब असंतोष फूटा है, लेकिन इस बार यह अति पिछड़ा समाज के आत्मसम्मान की लड़ाई बन चुकी है और बिहार की सियासत जानती है कि जब मिथिला की धरती से कोई आवाज़ उठती है, तो उसकी गूंज दूर तक जाती है।