अलीनगर में जब लोकगायिका की सरगम ने सियासत की सुरलहर छेड़ी तब संजय सिंह की बगावत ने पार्टी की नींव हिला दी, अमित शाह के संकेत पर थमा तूफ़ान, और मिथिला की मिट्टी से उठी हमारी विशेष रिपोर्ट ने खोल दी भाजपा की अंदरूनी सच्चाई 'मिथिला जन जन की आवाज़' के प्रधान संपादक आशिष कुमार की कलम से, जहाँ गीत और राजनीति आमने-सामने खड़े हैं!

दरभंगा ज़िले की राजनीति में इस हफ्ते जो हुआ, वह बिहार की सियासत के पाठ्यक्रम में उदाहरण बनकर लिखा जाएगा। अलीनगर की धरती, जो कभी अब्दुल बारी सिद्दीकी की गूंज से भर उठती थी, अब एक नई आवाज़ लोकगायिका मैथिली ठाकुर की सियासी ताल पर थिरकने लगी है। पर इस सुर में ताल बैठाने के पहले, भाजपा को अपने ही घर के भीतर की तूफ़ानी धुन को शांत करना पड़ा. पढ़े पूरी खबर......

अलीनगर में जब लोकगायिका की सरगम ने सियासत की सुरलहर छेड़ी तब संजय सिंह की बगावत ने पार्टी की नींव हिला दी, अमित शाह के संकेत पर थमा तूफ़ान, और मिथिला की मिट्टी से उठी हमारी विशेष रिपोर्ट ने खोल दी भाजपा की अंदरूनी सच्चाई 'मिथिला जन जन की आवाज़' के प्रधान संपादक आशिष कुमार की कलम से, जहाँ गीत और राजनीति आमने-सामने खड़े हैं!
अलीनगर में जब लोकगायिका की सरगम ने सियासत की सुरलहर छेड़ी तब संजय सिंह की बगावत ने पार्टी की नींव हिला दी, अमित शाह के संकेत पर थमा तूफ़ान, और मिथिला की मिट्टी से उठी हमारी विशेष रिपोर्ट ने खोल दी भाजपा की अंदरूनी सच्चाई 'मिथिला जन जन की आवाज़' के प्रधान संपादक आशिष कुमार की कलम से, जहाँ गीत और राजनीति आमने-सामने खड़े हैं!

दरभंगा ज़िले की राजनीति में इस हफ्ते जो हुआ, वह बिहार की सियासत के पाठ्यक्रम में उदाहरण बनकर लिखा जाएगा। अलीनगर की धरती, जो कभी अब्दुल बारी सिद्दीकी की गूंज से भर उठती थी, अब एक नई आवाज़ लोकगायिका मैथिली ठाकुर की सियासी ताल पर थिरकने लगी है। पर इस सुर में ताल बैठाने के पहले, भाजपा को अपने ही घर के भीतर की तूफ़ानी धुन को शांत करना पड़ा।

संजय का ऐलान जिसने झकझोर दिया था भाजपा को: अलीनगर के लोकप्रिय भाजपा नेता संजय कुमार सिंह उर्फ़ पप्पू, जो स्थानीय स्तर पर जनता के बीच “हमेशा साथ खड़े रहने वाले” नेता के तौर पर जाने जाते हैं, ने जब मिथिला जन जन की आवाज समाचार के संवाददाता से कहा "अगर मैथिली ठाकुर अलीनगर में बस जाएं, अपना घर बना लें और संगीत छोड़कर पूरी तरह जनता की सेवा करें तो मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा।” इस बयान ने पूरे बिहार की सियासत में हलचल मचा दी थी। यह एक वाक्य नहीं, बल्कि भाजपा के भीतर का दर्द और स्थानीय कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का प्रतीक बन गया। क्योंकि भाजपा ने अलीनगर से टिकट दिया था एक ऐसी उम्मीदवार को, जो स्थानीय नहीं थीं, लेकिन राष्ट्रीय पहचान रखती थीं।

मंच से विधानसभा तक का सफर मैथिली ठाकुर का नया अध्याय: मधुबनी ज़िले की बेटी और मैथिली संस्कृति की सजीव प्रतीक मैथिली ठाकुर अब भाजपा की प्रत्याशी हैं लेकिन जिस अलीनगर से उन्होंने चुनावी दस्तक दी है, वह दरभंगा ज़िले में पड़ता है। यानी मूल ननिहाल की धरती पर सियासी पारी की शुरुआत। मैथिली की लोकप्रियता निर्विवाद है, लेकिन राजनीति भीड़ से नहीं, जमीन के रिश्तों से जीतती है। अलीनगर की सामाजिक बनावट देखें तो ब्राह्मण मतदाता तो हैं, पर उतने ही मज़बूत यादव और मुस्लिम वोटर भी हैं जिनके सहारे अब्दुल बारी सिद्दीकी वर्षों तक इस सीट को अपने कब्ज़े में रखे रहे। पिछले चुनाव में VIP के टिकट पर मिश्रीलाल यादव ने जीत दर्ज की थी और बाद में भाजपा में शामिल हो गए थे।

टिकट के बाद बगावत जब अपने ही हो गए विरोधी: मैथिली ठाकुर के नाम की घोषणा होते ही अलीनगर के सातों मंडलों में नाराज़गी की लहर दौड़ गई। भाजपा कार्यकर्ता, जिन्होंने वर्षों तक संजय सिंह के साथ संगठन को ज़मीन से खड़ा किया था, उन्होंने इसे “अपमान” माना। मीटिंगों का दौर शुरू हुआ, नारों की दिशा बदली, और माहौल ऐसा बना कि संजय ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरने का मन बना लिया। उन्होंने 17 अक्टूबर को नामांकन दाख़िल करने की तारीख तय की और कहा “हमने इस इलाके में पार्टी का संगठन खड़ा किया, मेहनत की, लोगों को जोड़ा। अब जब संगठन खड़ा हो गया है, तब बाहर की उम्मीदवार को थोप दिया गया। ये गलत है। पार्टी में कुछ लोग खुद को भगवान समझते हैं।” संजय का यह बयान सिर्फ़ विरोध नहीं था, बल्कि भाजपा की टिकट नीति पर खुली चोट थी। क्योंकि उनकी बातों में वह स्थानीय असंतोष बोल रहा था, जिसे अक्सर चुनावी चमक के नीचे दबा दिया जाता है।

अमित शाह का हस्तक्षेप एक मुलाकात जिसने सियासी दिशा बदल दी: 16 अक्टूबर की रात ने अलीनगर का भविष्य बदल दिया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पटना पहुंचे थे, ‘आजतक’ के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने। उसी दौरान संजय कुमार सिंह से उनकी मुलाकात हुई। बैठक में धर्मेंद्र प्रधान और बिहार भाजपा अध्यक्ष सम्राट चौधरी भी मौजूद थे। उसके बाद जो हुआ, वह सियासी नाटक का क्लाइमैक्स था संजय ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया, “अलीनगर की भलाई और हिंदुत्व की आत्मरक्षा के लिए मैंने चुनाव न लड़ने का फैसला लिया है। अब मैं पूरी निष्ठा से संगठन के साथ हूं।” एक दिन पहले जो व्यक्ति भाजपा के निर्णयों पर सवाल उठा रहा था, अब उसी संगठन के लिए जुट गया क्योंकि शाह की बात बिहार में आदेश मानी जाती है। संजय कुमार सिंह का मानना था कि अगर मैथिली ठाकुर चुनाव जीतकर दिल्ली चली गईं, तो जनता की शिकायतें कौन सुनेगा? वह कहते थे, “इनका पेशा संगीत है, ये कार्यक्रमों में व्यस्त रहेंगी।जनता फिर मेरे पास आएगी।” लेकिन अमित शाह से बातचीत के बाद उन्होंने अपनी भावनाओं को अनुशासन के भीतर समेट लिया। भले ही भाजपा ने राहत की सांस ली हो, लेकिन इस घटना ने पार्टी को भीतर से हिला दिया। क्योंकि यह पहला मौका नहीं जब बिहार भाजपा में “स्थानीय बनाम बाहरी” की खाई दिखी हो।

संगठन बनाम सेलिब्रिटी कौन ज़्यादा अहम: इस पूरे प्रकरण ने एक बड़ा प्रश्न खड़ा कर दिया है क्या आज की राजनीति में संगठन की मेहनत की कोई कीमत नहीं बची? क्या पार्टी सिर्फ़ लोकप्रिय चेहरों के भरोसे चुनाव जीतना चाहती है? अलीनगर के ही सिटिंग विधायक मिश्रीलाल यादव, जिन्हें भाजपा ने दरकिनार कर दिया, उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “आज लोकप्रियता जीत गई, संघर्ष हार गया।” और फिर पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया। यह वाक्य बिहार भाजपा की रणनीति का आईना है जहां संघर्षशील स्थानीय कार्यकर्ता किनारे कर दिए जाते हैं, और सेलिब्रिटी ब्रांड को टिकट की चाबी थमा दी जाती है।

पर्दे के पीछे की राजनीति: दरभंगा के जानकार कहते हैं कि अलीनगर से मैथिली ठाकुर को टिकट देकर भाजपा ने एक तीर से दो निशाने साधे एक, युवा और सांस्कृतिक छवि वाली महिला प्रत्याशी को आगे लाकर भाजपा को मॉडर्न और कल्चरल सेंसेटिव दिखाने की कोशिश, और दूसरा, सांसद डॉ. गोपाल जी ठाकुर की बढ़ती ताकत को थोड़ा संतुलित करना। क्योंकि मैथिली ठाकुर उनके ही इलाके की पहचान से जुड़ी हैं, और पार्टी के कुछ नेता अब यह चाहते हैं कि दरभंगा की राजनीति सिर्फ़ एक चेहरे पर केंद्रित न रहे।

‘घर की आग’ बुझी, पर धुआं बाकी है: अमित शाह के हस्तक्षेप से भाजपा ने संजय सिंह जैसे प्रभावशाली स्थानीय नेता को शांत तो कर लिया, पर यह आग पूरी तरह बुझी नहीं है। अंदरखाने में कई नेता, जिनके टिकट कटे हैं, निर्दलीय लड़ने की तैयारी में थे। सूत्रों के अनुसार, शाह ने पटना में 12 से अधिक नाराज़ नेताओं से मुलाकात की और सभी को मनाने की कोशिश की। यह साफ़ इशारा है कि भाजपा का संघर्ष सिर्फ़ विपक्ष से नहीं, बल्कि अपने ही संगठन की असंतुष्ट आत्माओं से भी है।

अंततः अलीनगर की सियासत का अर्थ: अलीनगर सिर्फ़ एक विधानसभा नहीं, यह भाजपा के लिए संगठन बनाम स्टार पावर की परीक्षा है। मैथिली ठाकुर अब न सिर्फ़ गीतों की आवाज़ हैं, बल्कि एक राजनीतिक प्रयोग की भी पहचान बन गई हैं। सवाल बस इतना है क्या जनता उनके सुर में अपना भरोसा मिलाएगी, या फिर संजय सिंह जैसे नेताओं की चुप्पी आने वाले वक्त में भाजपा के लिए सबसे ऊँची चीख साबित होगी?