"जिसकी कलम ने कभी अन्याय से मुँह नहीं मोड़ा… वो अब चुप है…लेकिन उसकी खामोशी भी आज पत्रकारिता को रास्ता दिखा रही है, स्वर्गीय वरिष्ठ पत्रकार देवेंद्र ठाकुर की प्रथम पुण्यतिथि पर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि"

समय की रफ्तार कितनी भी तेज़ क्यों न हो, कुछ नाम ऐसे होते हैं जो हर लम्हे को ठहरा देते हैं… स्वर्गीय वंदनीय वरिष्ठ पत्रकार देवेंद्र ठाकुर जी उन्हीं चंद गिने-चुने नामों में से एक थे। आज जब उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर दरभंगा प्रेस क्लब के सभागार में पत्रकारों, समाजसेवियों और शुभचिंतकों ने उन्हें याद किया, तो मानो हर दीवार, हर कुर्सी और हर कोना सिर्फ़ यही कह रहा था—“आपका जाना जाना नहीं… एक युग का मौन हो जाना था।”... पढ़े पुरी खबर.........

"जिसकी कलम ने कभी अन्याय से मुँह नहीं मोड़ा… वो अब चुप है…लेकिन उसकी खामोशी भी आज पत्रकारिता को रास्ता दिखा रही है, स्वर्गीय वरिष्ठ पत्रकार देवेंद्र ठाकुर की प्रथम पुण्यतिथि पर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि"
जिसकी कलम ने कभी अन्याय से मुँह नहीं मोड़ा… वो अब चुप है…लेकिन उसकी खामोशी भी आज पत्रकारिता को रास्ता दिखा रही है, स्वर्गीय वरिष्ठ पत्रकार देवेंद्र ठाकुर की प्रथम पुण्यतिथि पर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि; फोटो: मिथिला जन जन की आवाज़

दरभंगा: समय की रफ्तार कितनी भी तेज़ क्यों न हो, कुछ नाम ऐसे होते हैं जो हर लम्हे को ठहरा देते हैं… स्वर्गीय वंदनीय वरिष्ठ पत्रकार देवेंद्र ठाकुर जी उन्हीं चंद गिने-चुने नामों में से एक थे। आज जब उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर दरभंगा प्रेस क्लब के सभागार में पत्रकारों, समाजसेवियों और शुभचिंतकों ने उन्हें याद किया, तो मानो हर दीवार, हर कुर्सी और हर कोना सिर्फ़ यही कह रहा था—“आपका जाना जाना नहीं… एक युग का मौन हो जाना था।”

गंभीर, सटीक और निडर पत्रकारिता का चेहरा माने जाने वाले देवेंद्र ठाकुर अब भले ही शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन हर ईमानदार रिपोर्ट, हर अन्याय के विरुद्ध उठी कलम, और हर सच के पीछे खड़ा पत्रकार आज भी उनकी परछाईं में ही खड़ा है।

श्रद्धांजलि नहीं, पत्रकारिता को प्रणाम था वो सभा: वरिष्ठ पत्रकार गुंजन कुमार की अध्यक्षता में आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम में जब सभी पत्रकार साथी, समाजसेवी और शुभचिंतक पुष्प लिए उनके तैल चित्र के समक्ष पहुंचे, तो कोई शब्द नहीं बोले गए… बस मौन खड़ा रहा—और उस मौन में पूरी पत्रकारिता की आत्मा कांपती रही।

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संजय कुमार राय ने भावुक स्वर में कहा: “ठाकुर जी जैसे लोग एक बार जन्म लेते हैं। उनका व्यक्तित्व इतना विशाल था कि वो हर पीड़ित की आवाज़ बन जाते थे। पत्रकारिता में जब नैतिकता की डोर कमजोर पड़ती थी, ठाकुर जी उसे थाम कर खड़े हो जाते थे।”

इरफान अहमद पैदल ने कहा: “वे शब्दों से नहीं, कर्मों से बड़ा किया करते थे। न जात-पात देखी, न धर्म। उनके लिए हर व्यक्ति एक इंसान था और पत्रकारिता एक ज़िम्मेदारी।”

भवन कुमार मिश्रा ने आंखों में आंसू लिए कहा: “उनका दरवाज़ा नहीं, दिल सबके लिए खुला था। उन्होंने सिर्फ रिपोर्ट नहीं की, लोगों की पीड़ा को जिया।”

आफताब हुसैन जिलानी ने साझा किया: “मैंने अपने पत्रकारिता जीवन की शुरुआत उन्हीं के साए में की। उन्होंने सिखाया कि खबर में सिर्फ तथ्य नहीं होते, उसमें समाज की धड़कन होनी चाहिए।”

राकेश कुमार नीरज ने भावुक होकर कहा: “आज भी जब संकट में फंसता हूं, उनकी बातों की गूंज सुनाई देती है—‘डटे रहो, सच के लिए कलम कभी झुके नहीं।’ उनकी यह आवाज़ आज भी भीतर से मार्गदर्शन करती है।” कर्मयोगी, जिनकी कलम कभी सत्ता के आगे नहीं झुकी: स्वर्गीय ठाकुर जी ने पत्रकारिता को कभी सुविधा का माध्यम नहीं बनने दिया। उन्होंने अपने जीवन में न कभी पद चाहा, न पुरस्कार… उनके लिए समाज का हित, और सच की रक्षा ही सबसे बड़ा सम्मान था। आज जब पत्रकारिता बाज़ारवाद की ओर झुकती जा रही है, ठाकुर जी जैसे समर्पित कर्मयोगी की स्मृति हमें झकझोर कर याद दिलाती है कि पत्रकारिता सिर्फ पेशा नहीं, ये एक आत्मा है।

हर चेहरा भीगा, हर आँख नम थी: सभा में उपस्थित हर पत्रकार एक कहानी लेकर आया था, कोई उनके साथ बिताए गए संघर्ष के दिन याद कर रहा था, तो कोई उनकी दी गई सीखों को दोहरा रहा था। प्रेस क्लब का माहौल ऐसा था कि शब्द मौन हो गए थे, और मौन बोल रहा था—“आप हमारे मार्गदर्शक थे… हैं… और रहेंगे।”

जिन्हें भुलाना मुश्किल नहीं, नामुमकिन है: इस भावभीनी सभा में प्रमुख रूप से उपस्थित थे: प्रभास रंजन, पुरुषोत्तम कुमार चौधरी, अमर कुमार मिश्रा, नासिर हुसैन, फैजान, राजू सिंह, चंद्रजीत कुमार, मनोज झा, डॉ. वीरेंद्र पासवान उर्फ गुरुजी, नवीन कुंवर, शिवनाथ चौधरी, रमन चौधरी, टिंकू कर्ण, राकेश कुमार झा, जीएम फिरोज, शशिनाथ सिंह, और सैकड़ों पत्रकार बंधु।

हर कोई बस यही कह रहा था “ठाकुर जी को कभी देखा हो या नहीं… लेकिन अगर आपने पत्रकारिता को दिल से जिया है, तो आप उन्हें जान चुके हैं।”

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एक युग नहीं, एक तपस्वी गया है: प्रथम पुण्यतिथि पर दरभंगा की पत्रकारिता ने सिर्फ एक श्रद्धांजलि नहीं दी, बल्कि खुद से वादा किया कि हम ठाकुर जी की परंपरा को जिंदा रखेंगे। हम उस ईमानदार, निर्भीक और संवेदनशील पत्रकारिता की मशाल को बुझने नहीं देंगे, जिसे उन्होंने अपने पसीने, अपने आंसुओं और अपने जीवन से जलाए रखा। आप चले गए ठाकुर जी… लेकिन जहां-जहां स्याही बहेगी, जहां-जहां शब्द सच के लिए खड़े होंगे, वहां-वहां आप ज़िंदा रहेंगे।