"स्वर, सृजन और स्मृति की गवाही देता मिथिला महोत्सव 2025 — जहां सुरों में गूंजती रही माटी की पुकार, और मंच से जागी मिथिला की सांस्कृतिक आत्मा"

कभी-कभी कोई क्षण इतिहास नहीं रचता, बल्कि स्मृति बन जाता है — वह स्मृति, जो पीढ़ियों के हृदय में जीवित रहती है, जो सिर्फ देखी नहीं जाती, महसूस की जाती है। ‘मिथिला महोत्सव 2025’ का समापन ऐसा ही एक क्षण बन गया — एक ऐसा अद्भुत संयोग, जहां विचार, संस्कृति, संगीत और संकल्प सब एक साथ मंच पर उतर आए। मिथिला लोक संस्कृति मंच के तत्वावधान में आयोजित यह दो दिवसीय सांस्कृतिक महायज्ञ केवल एक आयोजन नहीं, माटी की भाषा में लिखी गई एक सजीव महाकाव्य था — जिसमें हर संवाद एक श्लोक था, और हर प्रस्तुति, एक आरती. पढ़े पुरी खबर........

"स्वर, सृजन और स्मृति की गवाही देता मिथिला महोत्सव 2025 — जहां सुरों में गूंजती रही माटी की पुकार, और मंच से जागी मिथिला की सांस्कृतिक आत्मा"
स्वर, सृजन और स्मृति की गवाही देता मिथिला महोत्सव 2025 — जहां सुरों में गूंजती रही माटी की पुकार, और मंच से जागी मिथिला की सांस्कृतिक आत्मा; फोटो: मिथिला जन जन की आवाज

दरभंगा: कभी-कभी कोई क्षण इतिहास नहीं रचता, बल्कि स्मृति बन जाता है — वह स्मृति, जो पीढ़ियों के हृदय में जीवित रहती है, जो सिर्फ देखी नहीं जाती, महसूस की जाती है। ‘मिथिला महोत्सव 2025’ का समापन ऐसा ही एक क्षण बन गया — एक ऐसा अद्भुत संयोग, जहां विचार, संस्कृति, संगीत और संकल्प सब एक साथ मंच पर उतर आए। मिथिला लोक संस्कृति मंच के तत्वावधान में आयोजित यह दो दिवसीय सांस्कृतिक महायज्ञ केवल एक आयोजन नहीं, माटी की भाषा में लिखी गई एक सजीव महाकाव्य था — जिसमें हर संवाद एक श्लोक था, और हर प्रस्तुति, एक आरती।

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जब भोर की निंद से पहले रात की परछाइयाँ गहराने लगी थीं, तब दरभंगा की भूमि पर जगा था वह मंच, जिसे देखकर लगा — विद्यापति की कविता, जानकी की मर्यादा, और मिथिला की आत्मा एक साथ सजीव हो उठी है। महोत्सव के तीसरे सत्र की अध्यक्षता कर रहे दयानंद पासवान ने, मंच से औपचारिक वक्तव्यों से परे, उस 'मौन पुकार' को स्वर दिया जो मिथिला के गाँवों, गलियों और आंगनों से वर्षों से उठ रही थी।

मुख्य अतिथि, भूमि सुधार मंत्री श्री संजय सरावगी ने अपने भाषण में 2003 की उस ऐतिहासिक रात की स्मृति को पुनर्जीवित किया — जब मैथिली को संविधान की अष्टम अनुसूची में स्थान मिला था। उन्होंने कहा कि अगर वह सम्भव हुआ, तो आने वाले कल में राज्य सरकार भी मिथिला के विकास हेतु कोई चमत्कार कर सकती है — बशर्ते हम आवाज़ उठाना न भूलें।

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स्थानीय सांसद गोपाल जी ठाकुर की आवाज़ में एक लोकप्रतिनिधि नहीं, बल्कि एक मिथिलावासी का आत्मस्वर झलका। उन्होंने दरभंगा में पटना उच्च न्यायालय की पीठ स्थापित करने के प्रयासों को "न्याय की प्रतीक्षा कर रही जनभूमि की पुकार" बताया।

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विधान पार्षद मदन मोहन झा ने दरभंगा को उपराजधानी का दर्जा दिलाने के लिए “सांस्कृतिक नहीं, अब राजनीतिक एकजुटता” की आवश्यकता जताई। और मंच के महासचिव उदय शंकर मिश्र ने जो कहा — वह केवल एक अपील नहीं, एक प्रतिज्ञा थी, एक आह्वान था “राजनीति से ऊपर उठकर अब मिथिला के लिए सोचो।”

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और फिर — संध्या के बाद, जब मंच की बत्तियाँ संगीत की सुरलहरियों में नहाईं, तो श्रोताओं की आत्मा में जग उठी स्मृति की लौ। प्रियंका झा के संयोजन में सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरू हुआ। शिवानी झा ने "ए पहुना मिथिले में रहू न" जैसे सधे हुए स्वरों में वह आत्मीयता उड़ेली कि जैसे माँ अपनी बेटी से कह रही हो — "जा, लेकिन भूलियो मत, मिथिला तुम्हारी भी माँ है।"

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बिक्रम बिहारी की “जोगिया ठाड़ मोर आँगनवा में” ने दर्शकों की आँखें नम कर दीं — और जुली झा के भगवती गीत ने माहौल में एक श्रद्धा और भक्ति की गहराई भर दी। संगीत की यह धारा रात तीन बजे तक बहती रही — जब डॉली सिंह, आयुष्मान शेखर, आलोक भारती, प्रवीण यादव, चांदनी झा चकोर, ममता ठाकुर, सुषमा झा, बिभा झा, राधे भाई, गौरांग चौधरी जैसे कलाकारों ने अपने सुरों से मंच को मंदिर बना दिया।

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पारस पंकज, राहुल शरण, चंद्रमणि झा, सुमंत सिंह जैसे संगत कलाकारों की संगति में गीतों ने केवल मनोरंजन नहीं किया, बल्कि यह प्रमाणित किया कि मैथिली सिर्फ भाषा नहीं, वह जीने की एक शैली है — वह आत्मा है, जो हर सुर में बसती है।

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इस सांस्कृतिक संकल्प को साकार करने में बासुकीनाथ झा, चौधरी हेमचंद्र रॉय, राजेश चौधरी, विजय कुमार यादव, रंजीत कुमार झा, सुजित आचार्य, प्रो. सुधीर कुमार झा, उज्ज्वल कुमार झा और अमितेस सिंह जैसे समर्पित कर्मियों की भूमिका प्रेरणादायक रही। यह महोत्सव समाप्त नहीं हुआ — यह शुरू हुआ है। यह मिथिला की आत्मा की पुनर्जागरण कथा है। यह माटी, माँ और मान की मिट्टी से उगा वह अंकुर है, जो एक दिन मिथिला को उसकी खोई हुई गरिमा लौटाएगा। यह स्मृति रहेगा — सुरों में, शब्दों में, और हर उस दिल में, जो मिथिला कहने से पहले खुद को गर्व से भर लेता है।