"बाल सुधार गृह में मौत या हत्या? अमरजीत की संदिग्ध मौत ने खोले सिस्टम के काले पन्ने, दरभंगा में जांच की आंच, प्रशासन के हाथों में सच की चाबी!"
दरभंगा के बाल सुधार गृह में उसकी मौत हुई — मगर यह मौत केवल पेट दर्द बताकर दफ्न नहीं की जा सकती। नहीं साहब, अब सवाल उठ खड़े हुए हैं… और ये सवाल सिर्फ सिस्टम से नहीं, हमारी सामाजिक आत्मा से भी हैं. पढ़े पुरी खबर......

दरभंगा। विशेष रिपोर्ट: आशिष कुमार, प्रधान संपादक मिथिला जन जन की आवाज एक किशोर… नाम: अमरजीत। आशा से भरा जीवन, जिसने शायद कुछ गलतियाँ की थीं… पर वह मौत की सज़ा का हक़दार नहीं था। दरभंगा के बाल सुधार गृह में उसकी मौत हुई — मगर यह मौत केवल पेट दर्द बताकर दफ्न नहीं की जा सकती। नहीं साहब, अब सवाल उठ खड़े हुए हैं… और ये सवाल सिर्फ सिस्टम से नहीं, हमारी सामाजिक आत्मा से भी हैं।
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11 अप्रैल की रात अमरजीत की तबीयत बिगड़ती है, उसे पेट दर्द की शिकायत बताई जाती है। लेकिन अगले ही पल उसकी नब्ज रुक जाती है। सुधार गृह के रजिस्टर में यह एक "स्वाभाविक" मौत के तौर पर दर्ज कर दी जाती है — मगर सुधार की यह दीवारें अब बोल उठी हैं।
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सवाल ये है कि क्या पेट दर्द इतनी जल्दी मौत बन सकता है?
या फिर सुधार गृह की दीवारों के पीछे कोई खामोश साजिश थी?
आज (13 अप्रैल) की सुबह दरभंगा का पूरा प्रशासन जागा — जब जिला पदाधिकारी राजीव रौशन, एसएसपी जगुनाथ रेड्डी जलारेड्डी, और जिला एवं सत्र न्यायाधीश बाल सुधार गृह पहुंचे। यह महज़ एक औपचारिक दौरा नहीं था, बल्कि हर ईंट से सच को खुरचने की कोशिश थी। निरीक्षण के दौरान अधिकारियों ने एक-एक बच्चे से बात की। कई चेहरों पर खामोशी की मोटी चादर थी, मगर कुछ निगाहें चीख रहीं थीं। कई बच्चों ने इशारों में कहा "जो हुआ, वह सिर्फ बीमारी नहीं थी।"
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क्या अमरजीत पर शारीरिक या मानसिक अत्याचार हुआ? क्या किसी रंजिश ने उसकी जान ले ली? या फिर ये सब कुछ किसी बड़े खेल का हिस्सा है, जिसमें सुधार गृह का नाम केवल एक मुखौटा है?
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एसएसपी जगुनाथ रेड्डी ने स्पष्ट किया—"मामले की गहन जांच हो रही है, और दोषी कोई भी हो, बख्शा नहीं जाएगा।"
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पर एक सवाल आज भी हवा में तैर रहा है: क्या जांच उतनी ही गहरी होगी जितनी गहराई में अमरजीत की आत्मा दफन की गई है??? जिला एवं सत्र न्यायाधीश की मौजूदगी ने जांच को गंभीरता जरूर दी है, लेकिन जब तक सच सामने नहीं आता, तब तक अमरजीत की मौत हर जागरूक नागरिक के दिल में एक टीस बनकर चुभती रहेगी।
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यह सिर्फ एक किशोर की मौत नहीं है। यह एक सिस्टम का शव परीक्षण है। यह एक न्याय की कसौटी है। और यह एक पत्रकार की जिम्मेदारी भी है—सच को सामने लाना, चाहे वो कितना भी असुविधाजनक क्यों न हो। मिथिला जन जन की आवाज इस मामले की तह तक जाएगी। हर परत को खोलेगी, हर सवाल को उठाएगी, जब तक ये तय न हो जाए कि अमरजीत की मौत ‘पेट दर्द’ थी या ‘साजिश’?