"शाम होते ही दीपों की उजास से जगमगाया विश्वविद्यालय परिसर, जैसे बाबा साहेब के विचारों ने धारण कर लिया हो प्रकाश का स्वरूप"
दरभंगा की ऐतिहासिक ज़मीन पर जब शाम ने अपना आँचल फैलाया, तो विश्वविद्यालय परिसर की धरती पर दीयों की कतारें केवल रोशनी नहीं बिखेर रहीं थीं—वो भारतीय लोकतंत्र के महान शिल्पकार डॉ. भीमराव अम्बेडकर के विचारों की लौ को अमर कर रही थीं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, दरभंगा नगर इकाई ने जिला सह संयोजक रवि यादव के नेतृत्व में एक अद्वितीय दीपोत्सव का आयोजन कर इतिहास और विचारों के उस महामानव को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्होंने अपने जीवन को समाज के अंतिम जन के उत्थान हेतु समर्पित कर दिया. पढ़े पुरी खबर.......

दरभंगा की ऐतिहासिक ज़मीन पर जब शाम ने अपना आँचल फैलाया, तो विश्वविद्यालय परिसर की धरती पर दीयों की कतारें केवल रोशनी नहीं बिखेर रहीं थीं—वो भारतीय लोकतंत्र के महान शिल्पकार डॉ. भीमराव अम्बेडकर के विचारों की लौ को अमर कर रही थीं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, दरभंगा नगर इकाई ने जिला सह संयोजक रवि यादव के नेतृत्व में एक अद्वितीय दीपोत्सव का आयोजन कर इतिहास और विचारों के उस महामानव को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्होंने अपने जीवन को समाज के अंतिम जन के उत्थान हेतु समर्पित कर दिया। यह आयोजन मात्र एक औपचारिक श्रद्धांजलि नहीं था—यह विचारों की पुनरुत्थान यात्रा थी, जिसमें हर दीपक एक उद्घोष था: "हम अम्बेडकर हैं, हम जीवित चेतना हैं।"
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कार्यक्रम में उत्तर बिहार के प्रांत शोध संयोजक उत्सव पराशर ने जब मंच संभाला, तो शब्दों से नहीं, भावों से बोले। उन्होंने कहा, “आधुनिक भारत की कल्पना बिना बाबा साहेब की सोच के संभव नहीं। उन्होंने जो दृष्टिकोण दिया, वह महज़ संविधान नहीं था, वह एक समतामूलक भारत का सपना था।” उनके स्वर में इतिहास की गूंज थी और भविष्य की प्रेरणा।
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प्रांत फार्मा विजन संयोजक राहुल कुमार ने बाबा साहेब की वैचारिक क्रांति को याद करते हुए कहा, “जहां बुद्ध हैं, वहां कार्ल मार्क्स की आवश्यकता नहीं। बौद्ध धर्म को अपनाना सिर्फ़ धार्मिक परिवर्तन नहीं था, बल्कि यह सांस्कृतिक पुनर्जागरण की घोषणा थी। उन्होंने उस मनुस्मृति को जलाया, जो सामाजिक विषमता का पोषण करती थी, जिसे अंग्रेजों ने छपवाया था—क्योंकि वे जानते थे, भारत को बाँटना हो तो ब्राह्मणवाद को जीवित रखना होगा। पर बाबा साहेब ने उस आग को हवा दी, जिसने सदियों पुरानी सामाजिक बेड़ियों को जलाया।”
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जिला संयोजक वागीश झा की वाणी में ओज और विश्वास था। उन्होंने कहा, “इतिहास में ऐसा भी दौर आया जब षड्यंत्र रचा गया कि अम्बेडकर के अस्तित्व को मिटा दिया जाए। पर उन्हें क्या मालूम था कि अम्बेडकर तो सूर्य की तरह हैं—धक जाते हैं, मगर कभी बुझते नहीं।” उनकी इस बात पर उपस्थित जनसमूह की आँखों में गर्व की नमी और संकल्प की चमक एक साथ उभरी।
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इस दीपोत्सव में जब हर छात्र अपने हाथ में एक दीप लिए बाबा साहेब की मूर्ति के समक्ष खड़ा था, तब वह दीप केवल मिट्टी का पात्र नहीं था, वह एक विचार की मशाल थी, जो अंधकार को चुनौती दे रही थी। परिसर में फैली रोशनी मानो कह रही थी—“बाबा साहेब, हम आपके हैं... और जब तक अंतिम व्यक्ति को न्याय नहीं मिलेगा, तब तक हम रुकेंगे नहीं।”
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इस अवसर पर अभाविप की विचार-सेना के कई कार्यकर्ता उपस्थित थे—सोनू कुमार पासवान, मुकेश राज, गौतम झा, विवेक सिंह, रंजन कुमार, अभिषेक कुमार, अभय कुमार, आनंद कुमार सिंह, रोहित कुमार यादव, लक्की आनंद और गणेश पासवान। इन सभी युवाओं की आंखों में देश को बदलने का सपना था, और बाबा साहेब की प्रेरणा उस सपने का ईंधन।
यह आयोजन दीपों का त्योहार था, पर असल में यह आत्मचेतना का उजाला था। यह दीपोत्सव नहीं, विचारोत्सव था। एक ऐसा क्षण जब बाबा साहेब के विचार दरभंगा की हवाओं में गूंजे, और हर युवा के दिल में अडिग आस्था बनकर बसे। जहां दीप जलते हैं विचारों के, वहां कभी अंधकार ठहर नहीं सकता। और जहां अम्बेडकर की आत्मा बोलती है, वहां समता, न्याय और करुणा का भारत खुद को पुनः रचता है।