दरभंगा का काला अध्याय: एसएसपी दरभंगा के सामने उठे सवाल मब्बी थानाध्यक्ष रौशन कुमार और अनुसंधानक रविशंकर पाण्डेय की घोर सुस्ती ने 356 लीटर विदेशी शराब तस्करों को जमानत पर आज़ाद कर दिए, न्याय व्यवस्था पर कर दी गई खुली चुनौती

न्यायालय का दरबार एक बार फिर पुलिस की लापरवाही का आईना बन गया है। शराब तस्करी जैसे संगीन मामले में अदालत ने साफ शब्दों में यह दिखा दिया कि क़ानून की नज़र में कोई भी चूक बर्दाश्त नहीं की जाएगी। मगर विडंबना देखिए कि मब्बी थाना की लापरवाही से विदेशी शराब के बड़े कारोबारी काराधीन रहते हुए भी कानून की ढिलाई का लाभ उठाकर जमानत पर छूट गए। यह घटना न केवल पुलिसिया ढांचे की खोखली सच्चाई उजागर करती है, बल्कि यह भी बताती है कि किस तरह शराब माफिया और अपराधी प्रशासन की सुस्ती का मज़ाक उड़ाते हुए कानून को ठेंगा दिखा रहे हैं. पढ़े पुरी खबर.......

दरभंगा का काला अध्याय: एसएसपी दरभंगा के सामने उठे सवाल मब्बी थानाध्यक्ष रौशन कुमार और अनुसंधानक रविशंकर पाण्डेय की घोर सुस्ती ने 356 लीटर विदेशी शराब तस्करों को जमानत पर आज़ाद कर दिए, न्याय व्यवस्था पर कर दी गई खुली चुनौती
दरभंगा का काला अध्याय: एसएसपी दरभंगा के सामने उठे सवाल मब्बी थानाध्यक्ष रौशन कुमार और अनुसंधानक रविशंकर पाण्डेय की घोर सुस्ती ने 356 लीटर विदेशी शराब तस्करों को जमानत पर आज़ाद कर दिए, न्याय व्यवस्था पर कर दी गई खुली चुनौती

दरभंगा। न्यायालय का दरबार एक बार फिर पुलिस की लापरवाही का आईना बन गया है। शराब तस्करी जैसे संगीन मामले में अदालत ने साफ शब्दों में यह दिखा दिया कि क़ानून की नज़र में कोई भी चूक बर्दाश्त नहीं की जाएगी। मगर विडंबना देखिए कि मब्बी थाना की लापरवाही से विदेशी शराब के बड़े कारोबारी काराधीन रहते हुए भी कानून की ढिलाई का लाभ उठाकर जमानत पर छूट गए। यह घटना न केवल पुलिसिया ढांचे की खोखली सच्चाई उजागर करती है, बल्कि यह भी बताती है कि किस तरह शराब माफिया और अपराधी प्रशासन की सुस्ती का मज़ाक उड़ाते हुए कानून को ठेंगा दिखा रहे हैं।

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पकड़ से लेकर जेल तक और फिर जमानत तक: 27 जून 2025 को मब्बी थाना पुलिस ने बड़ी कार्रवाई का दावा करते हुए 356 लीटर विदेशी शराब से लदा एक ट्रक पकड़ा था। इस दौरान दो आरोपियों को दबोचा गया। सफीक खां, छोटे खां का पुत्र, निवासी ग्राम छेरत, थाना जमा, जिला अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) गणेश कुमार, युगल चौधरी का पुत्र, निवासी बसहा, थाना पिपरा, जिला सुपौल। गिरफ्तारी के बाद दोनों को न्यायालय में प्रस्तुत किया गया और न्यायिक हिरासत में जेल भेजा गया। उस वक्त पुलिस ने इसे शराब तस्करों के खिलाफ बड़ी उपलब्धि बताकर जनता और मीडिया के सामने शोर मचाया। मगर भीतर की हकीकत यही थी कि इस कार्रवाई का अंजाम बेहद शर्मनाक निकला।

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90 दिन का नियम और पुलिस की लापरवाही: क़ानून साफ कहता है कि काराधीन अभियुक्तों के खिलाफ 90 दिनों के भीतर अनुसंधान पूरा कर आरोप पत्र दाख़िल करना अनिवार्य है। यही न्याय प्रक्रिया का मूल है। मगर मब्बी थाना कांड संख्या 85/25 में अनुसंधानक रविशंकर पाण्डेय ने यह बुनियादी जिम्मेदारी भी नहीं निभाई। यह सिर्फ़ चूक नहीं, बल्कि घोर लापरवाही है। अदालत द्वारा बार-बार स्मरण दिलाए जाने के बावजूद आरोप पत्र दाख़िल नहीं किया गया। नतीजा यह हुआ कि अदालत को मजबूर होकर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167(2) का लाभ अभियुक्तों को देना पड़ा और दोनों शराब तस्करों को जमानत पर रिहा करना पड़ा।

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न्यायालय का कड़ा रुख़ पुलिस अधिकारियों पर गिरी गाज: उत्पाद अधिनियम के विशेष न्यायाधीश श्रीराम झा ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि मब्बी थाना की यह लापरवाही अस्वीकार्य है। अदालत ने थानाध्यक्ष रौशन कुमार और अनुसंधानक रविशंकर पाण्डेय को शो कॉज नोटिस जारी करते हुए आदेश दिया कि वे 8 अक्टूबर तक लिखित स्पष्टीकरण दाख़िल करें कि क्यों न उनके खिलाफ एसएसपी दरभंगा को कार्रवाई के लिए सूचित किया जाए। यह आदेश पुलिस अधिकारियों के लिए सिर्फ़ चेतावनी नहीं बल्कि उनके करियर पर तलवार की धार है। अगर स्पष्टीकरण संतोषजनक नहीं हुआ तो निश्चित ही एसएसपी स्तर से कार्रवाई होगी और यह मामला पूरे विभाग के लिए नज़ीर बनेगा।

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कानून का मज़ाक और जनता के साथ विश्वासघात: यह सवाल लाजिमी है कि जब शराबबंदी कानून पूरे बिहार में सख़्ती से लागू है और मुख्यमंत्री से लेकर उत्पाद विभाग तक इसके क्रियान्वयन का ढोल पीटा जाता है, तो ज़मीनी स्तर पर पुलिस की यह लापरवाही आखिर क्यों?क्या यह सिर्फ़ भूल है या फिर इसके पीछे मिलीभगत की बू आती है? क्या शराब माफिया की जड़ों तक पहुंचने से पहले ही पुलिस अपनी कमज़ोरियों से उन्हें मजबूत कर रही है? क्या दरभंगा की जनता का भरोसा इस तरह के मामलों से पूरी तरह टूट नहीं जाएगा? दरअसल, यह सिर्फ़ दो शराब तस्करों की जमानत का मामला नहीं है। यह उस पूरे सिस्टम का आइना है जहाँ अपराधियों से लड़ने वाली एजेंसी ही अपने कर्तव्य को निभाने में नाकाम रहती है और अपराधी न्यायालय से राहत पाकर कानून की हँसी उड़ाते हैं।

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लापरवाह पुलिस, बेबस कानून: दरभंगा की इस घटना ने साबित कर दिया कि अगर पुलिस अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाती तो सबसे बड़ा घाटा समाज और न्यायिक प्रक्रिया को होता है। पुलिस की इस घोर लापरवाही का प्रत्यक्ष लाभ शराब माफिया को मिल गया और वे जेल की सलाखों से बाहर आ गए। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या एसएसपी दरभंगा इस मामले को गंभीरता से लेते हैं और दोषी पुलिस अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई होती है या फिर यह मामला भी अन्य फाइलों की तरह रद्दी में दब जाएगा। एक बात साफ है अगर कानून के रखवाले ही सोते रहेंगे तो अपराधी उसी नींद में अपने साम्राज्य को और मजबूत करेंगे।