जब बहादुरपुर के आसमान पर गूंजा ठहाकों का शोर, पेड़ों और छतों पर उमड़ी भीड़ ने देखा पवन सिंह की जुबान फिसली, ‘मुकेश सहनी जिंदाबाद’ की गलती पर मुस्कुराया मंच, और शाहनवाज़ हुसैन ने राहुल गांधी की रील राजनीति पर तीर चलाकर कहा बिहार की जनता अब नाटक नहीं, विकास का मंच चाहती है।

बिहार का चुनावी मौसम जैसे-जैसे अपने चरम की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे मंचों पर सिर्फ भाषण नहीं, बल्कि मनोरंजन, व्यंग्य और नाटकीयता का संगम देखने को मिल रहा है। शनिवार को दरभंगा जिले के बहादुरपुर विधानसभा क्षेत्र के तारालाही में भी कुछ ऐसा ही नज़ारा था जहाँ राजनीति और भोजपुरी सिनेमा का एक साथ मंचन हुआ। यहाँ के स्कूल परिसर में जब भोजपुरी सुपरस्टार पवन सिंह मंच पर पहुंचे, तो भीड़ का जोश मानो अपने उबाल पर था। किसी के सिर पर छत नहीं, किसी की गर्दन पर पेड़ की डाल लेकिन हर आँख में एक ही सवाल चमक रहा था, पवन भइया कहां हैं. पढ़े पूरी खबर......

जब बहादुरपुर के आसमान पर गूंजा ठहाकों का शोर, पेड़ों और छतों पर उमड़ी भीड़ ने देखा पवन सिंह की जुबान फिसली, ‘मुकेश सहनी जिंदाबाद’ की गलती पर मुस्कुराया मंच, और शाहनवाज़ हुसैन ने राहुल गांधी की रील राजनीति पर तीर चलाकर कहा बिहार की जनता अब नाटक नहीं, विकास का मंच चाहती है।
जब बहादुरपुर के आसमान पर गूंजा ठहाकों का शोर, पेड़ों और छतों पर उमड़ी भीड़ ने देखा पवन सिंह की जुबान फिसली, ‘मुकेश सहनी जिंदाबाद’ की गलती पर मुस्कुराया मंच, और शाहनवाज़ हुसैन ने राहुल गांधी की रील राजनीति पर तीर चलाकर कहा बिहार की जनता अब नाटक नहीं, विकास का मंच चाहती है।

दरभंगा: बिहार का चुनावी मौसम जैसे-जैसे अपने चरम की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे मंचों पर सिर्फ भाषण नहीं, बल्कि मनोरंजन, व्यंग्य और नाटकीयता का संगम देखने को मिल रहा है। शनिवार को दरभंगा जिले के बहादुरपुर विधानसभा क्षेत्र के तारालाही में भी कुछ ऐसा ही नज़ारा था जहाँ राजनीति और भोजपुरी सिनेमा का एक साथ मंचन हुआ। यहाँ के स्कूल परिसर में जब भोजपुरी सुपरस्टार पवन सिंह मंच पर पहुंचे, तो भीड़ का जोश मानो अपने उबाल पर था। किसी के सिर पर छत नहीं, किसी की गर्दन पर पेड़ की डाल लेकिन हर आँख में एक ही सवाल चमक रहा था, पवन भइया कहां हैं? लोग दीवारों, बांसों और पेड़ों तक पर चढ़कर देखने लगे मानो चुनावी सभा नहीं, कोई फिल्मी शूटिंग चल रही हो।

मुकेश सहनी जिंदाबाद और फिर ठहाकों का सैलाब: भीड़ के बीच लहराते हाथों और नारों के बीच पवन सिंह ने जैसे ही माइक संभाला, उनकी आवाज़ में वही सिनेमा वाला जोश था। लेकिन मंच पर मौजूद जदयू उम्मीदवार और मंत्री मदन सहनी का नाम लेते वक्त उनकी ज़ुबान फिसल गई "मुकेश सहनी जिंदाबाद!” भीड़ कुछ पल को चुप रही, फिर पीछे से किसी ने धीरे से कहा “भइया, मदन सहनी हैं…” तभी पवन सिंह ठहाका लगाते हुए बोले अरे गलती हो गई भाइयों, अब बोलिए… मदन सहनी जिंदाबाद! और बस, पूरा मैदान हँसी और तालियों की गूंज में डूब गया। मंच पर खड़े मदन सहनी भी मुस्कुराते हुए बोले “अब पहचान सही बैठी पवन जी!” यह क्षण राजनीति के तनाव में हँसी की फुहार बन गया जहाँ जनता ने देखा कि नेता भी कभी-कभी इंसान ही होते हैं।

भोजपुरी जोश में पवन का तंज यहाँ पवन की रील चलेगी, ड्रामा नहीं: हँसी के बाद पवन सिंह ने अपने फिल्मी तेवर में राजनीति का पन्ना पलटा। उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर सीधा वार करते हुए कहा तालाब में कूदकर मछली पकड़ने से वोट नहीं मिलते। बिहार की जनता कोई रील नहीं, सच्चाई देखती है! यहाँ सिर्फ पवन सिंह की रील चलेगी, ड्रामा नहीं। उनका हर वाक्य तालियों की गूंज में डूब गया। उन्होंने आगे कहा यह धरती मिथिला की है, जहाँ लोग मेहनत से पहचान बनाते हैं, दिखावे से नहीं।

शाहनवाज़ हुसैन का प्रहार जो पानी में कूदे, वो बिहार की गहराई नहीं जानता: पवन सिंह के बाद मंच पर पहुंचे भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज़ हुसैन, जिन्होंने भी राहुल गांधी पर करारा व्यंग्य किया। उन्होंने कहा जो नेता तालाब में कूदकर रील बनाता है, वह बिहार की गहराई क्या समझेगा? बिहार का दिल विकास चाहता है, नाटक नहीं। शाहनवाज़ ने आगे कहा 6 नवंबर को जनता मोदी जी के हाथों को मजबूत करेगी। यह चुनाव विकास बनाम ड्रामे का चुनाव है। उनकी आवाज़ में वही पुराना दम था वही आत्मविश्वास, जो उन्हें बिहार की राजनीति में एक भरोसेमंद चेहरा बनाता है।

मदन सहनी के लिए माहौल गरम, पर चुनौती बरकरार: इस पूरे कार्यक्रम का केंद्रबिंदु थे मदन सहनी जो बहादुरपुर से जदयू के प्रत्याशी हैं। पवन सिंह और शाहनवाज़ जैसे नामों की मौजूदगी ने सभा को रौनक तो दी, मगर मदन सहनी के लिए यह रैली सिर्फ मनोरंजन नहीं एक इम्तिहान थी। चुनाव का मैदान अब उतना आसान नहीं रहा। जनता हँसी भी चाहती है, और जवाब भी। सभा के बाद कई ग्रामीण कहते सुने गए मदन बाबू ठीक काम किए हैं, पर अब समय जनता के फैसले का है।

जब राजनीति में मनोरंजन घुल जाता है… बहादुरपुर की यह सभा यह साबित कर गई कि अब बिहार की राजनीति सिर्फ नीतियों और नारों तक सीमित नहीं रही। यहाँ मंच पर गीत भी हैं, गलती भी, ठहाके भी और तंज़ भी सबकुछ एक साथ। यह वही बिहार है जहाँ जनता अब सिर्फ सुनती नहीं, बल्कि हँसकर परखती है, सोचकर चुनती है।