कागज़ों के कब्रिस्तान और कंप्यूटरों की जमी धूल पर चलती पड़ी कप्तानी नजर : दरभंगा साइबर थाना में जब अचानक पहुंचे एसएसपी तो सन्नाटा बोल उठा 'सर, सब ठीक है!
जब सिस्टम के भीतर सन्नाटा पसरा हो, अपराध के आंकड़े बेहिसाब बढ़ते जाएं और थाने की फाइलें समाधान के बजाय बोझ बनती जाएं, तब जरूरी हो जाता है कि कोई नेतृत्व अपने पद से नहीं, ज़मीन से सवाल पूछे। ठीक यही हुआ जब दरभंगा के वरीय पुलिस अधीक्षक (SSP) ने बिना किसी पूर्व सूचना के साइबर थाना पहुंचकर एक चुप व्यवस्था के कानों में तेज़ सवालों की आवाज़ भर दी. पढ़े पुरी खबर.......

दरभंगा: जब सिस्टम के भीतर सन्नाटा पसरा हो, अपराध के आंकड़े बेहिसाब बढ़ते जाएं और थाने की फाइलें समाधान के बजाय बोझ बनती जाएं, तब जरूरी हो जाता है कि कोई नेतृत्व अपने पद से नहीं, ज़मीन से सवाल पूछे। ठीक यही हुआ जब दरभंगा के वरीय पुलिस अधीक्षक (SSP) ने बिना किसी पूर्व सूचना के साइबर थाना पहुंचकर एक चुप व्यवस्था के कानों में तेज़ सवालों की आवाज़ भर दी। इस औचक निरीक्षण की खबर भले ही एक साधारण प्रशासकीय कार्रवाई लगे, लेकिन दरभंगा के पुलिस कप्तान का यह दौरा, उस खोखली होती जा रही व्यवस्था पर करारा तमाचा था, जो केवल 'जय हिंद सर...' कह देने से संतुष्ट रहती है।
निरीक्षण की शुरुआत : जब सलामियों के बीच उठे सवाल: 14 जून की सुबह जब दरभंगा साइबर थाना की इमारत में पुलिसकर्मियों की चहलकदमी आम दिनों से कुछ अलग दिखी, तो किसी को अंदेशा नहीं था कि स्वयं वरीय पुलिस अधीक्षक थाने की चौखट पर दस्तक देने वाले हैं। और हुआ भी यही। जैसे ही एसएसपी परिसर में दाखिल हुए, एक के बाद एक थानेदार, दारोगा और सिपाही क्रमशः अनुशासन की पंक्तियों में खड़े हो गए। मगर इस बार वह सलामी औपचारिकता भर नहीं रही कप्तान के चेहरे पर मुस्कान नहीं, बल्कि प्रश्न थे। उन्होंने न वर्दियों की चमक देखी, न कुर्सियों की साज-सज्जा। उनका सीधा सवाल था "कितने केस लंबित हैं? और कितनों में कोई ठोस कार्रवाई हुई है?"
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लंबित मामलों की गठरी : सड़ती हुई फाइलों पर एसएसपी की कड़ी नजर: निरीक्षण के दौरान यह सामने आया कि साइबर थाना में दर्जनों केस ऐसे हैं जो कई महीनों से लंबित हैं। इनमें कुछ केस फिशिंग से जुड़े हैं, कुछ OTP फ्रॉड, सोशल मीडिया ब्लैकमेलिंग और फर्जी वेबसाइटों के माध्यम से ठगी के थे। कई मामलों में न तो चार्जशीट दाखिल हुई थी, न ही आरोपियों की गिरफ्तारी।एसएसपी ने प्रत्येक लंबित केस की फाइल को पलट-पलट कर देखा और संबंधित पदाधिकारियों से पूछा कि किन कारणों से देरी हो रही है? क्या तकनीकी संसाधनों की कमी है, या इच्छाशक्ति की?
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उनका स्पष्ट निर्देश था: "थाना अपराधों की कब्रगाह नहीं है। यह न्याय का प्रवेशद्वार है। यहाँ से कोई भी शिकायत मृत होकर नहीं जानी चाहिए।"
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फील्ड ड्यूटी पर सवाल : कुर्सी से नहीं, मैदान से होगी साइबर अपराध की रोकथाम: एसएसपी ने थाना के कार्यप्रणाली की समीक्षा करते हुए दो बातें प्रमुखता से कही एक, थानों को चाहिए कि तकनीकी संसाधनों का बेहतर प्रयोग करें; और दो, प्रतिनियुक्त कर्मियों को केवल रिपोर्टिंग या डाटा एंट्री तक सीमित न रखें। उन्होंने कहा, "अगर अपराध डिजिटल हो चुका है, तो पुलिसिंग को भी डिजिटल स्तर पर तेज़ करना होगा।" उन्होंने थानाध्यक्ष को निर्देश दिया कि डाटा एंट्री ऑपरेटर, प्रोग्रामर और तकनीकी सहायकों की क्षमता निर्माण पर ध्यान दें और समयबद्ध तरीके से सभी केसों की प्रगति रिपोर्ट सौंपें।
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महिलाओं और बच्चों से जुड़ी शिकायतों पर विशेष संवेदनशीलता का निर्देश: निरीक्षण के दौरान एसएसपी ने यह स्पष्ट किया कि महिलाओं, बच्चों और छात्रों से संबंधित साइबर अपराधों को प्राथमिकता के आधार पर देखा जाए। "हर वह शिकायत जिसमें महिला का अपमान, प्रताड़ना या निजता का उल्लंघन शामिल हो तुरंत कार्रवाई होनी चाहिए। फाइल नहीं, गिरफ्तारी दिखनी चाहिए।" उन्होंने पुलिस पदाधिकारियों को सख्त हिदायत दी कि ऐसे मामलों में पीड़िता को बार-बार बयान देने के लिए मजबूर न किया जाए, बल्कि एक ही बार में साक्ष्य संकलन कर उन्हें न्याय की प्रक्रिया में सहजता दी जाए।
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युवाओं में जागरूकता अभियान चलाने का निर्देश: दरभंगा एक विश्वविद्यालय और छात्र बहुल शहर है। इसे ध्यान में रखते हुए एसएसपी ने निर्देश दिया कि कॉलेजों, स्कूलों और संस्थानों में नियमित साइबर जागरूकता कैंप लगाए जाएं। उन्होंने कहा, "युवाओं को समझना होगा कि हर लिंक पर क्लिक करना, हर ओटीपी शेयर करना या हर फ्रेंड रिक्वेस्ट स्वीकार करना अब मासूमियत नहीं, बल्कि खतरे को न्योता है।" उन्होंने 'साइबर प्रहरी' जैसे अभियान शुरू करने के संकेत भी दिए, जिसमें तकनीकी छात्र स्वयं पुलिस के साथ मिलकर जागरूकता में भाग लें।
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थाना संसाधनों की समीक्षा और सुधार का आश्वासन: निरीक्षण के दौरान यह भी सामने आया कि थाना में कुछ तकनीकी उपकरण पुराने हो चुके हैं या फिर अपडेट की जरूरत है। एसएसपी ने अपने स्तर से इसकी समीक्षा कर आवश्यक संसाधन मुहैया कराने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि पुलिस कर्मियों को केवल कागज़ी प्रशिक्षण से नहीं, व्यावहारिक प्रयोगों और केस स्टडी के ज़रिए सिखाया जाए।
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जनभागीदारी और भरोसे की पुनर्स्थापना की पहल: एसएसपी ने एक गहरा वाक्य कहा "जब जनता को भरोसा हो जाए कि पुलिस उसकी सबसे पहली ढाल है, तब अपराध अपने आप कम हो जाते हैं।" इस कथन के साथ उन्होंने थानाध्यक्ष को यह निर्देश दिया कि साइबर फ्रॉड पीड़ित किसी भी हाल में यह महसूस न करे कि वह अकेला है। उसे टोल फ्री नंबर 1930 की जानकारी हो, NCRP पोर्टल तक पहुंच हो और हर थाने में एक साइबर हेल्प डेस्क संचालित हो।
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औचक निरीक्षण के सन्देश : केवल खबर नहीं, एक चेतावनी: यह निरीक्षण मात्र एक प्रशासनिक कार्यवाही नहीं थी। यह एक सशक्त सन्देश था कि अब केवल बैठकों और रिपोर्टिंग से नहीं, वास्तविकता से परिणाम मांगे जाएंगे। जो थाना, जो अधिकारी जनता के विश्वास को टूटने दे रहा है, वह अब ‘सिस्टम’ के दायरे में है। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की यह पहल एक स्पष्ट इशारा है कि साइबर अपराध, जो आम आदमी की जेब से लेकर आत्मसम्मान तक को लूटते हैं, अब उनके खिलाफ दरभंगा पुलिस की 'नींद खुल चुकी' स्थिति में है।
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क्या अब सचमुच बदलेगा सिस्टम? यह सवाल अब दरभंगा की जनता के सामने है। एसएसपी की पहल, उनकी सक्रियता और नेतृत्व की सजीवता एक नई उम्मीद जगाती है। लेकिन इस उम्मीद को विश्वास में बदलने के लिए हर स्तर पर जवाबदेही चाहिए। जब अगली बार कोई नागरिक 1930 पर कॉल करे, तो उसे सिर्फ़ 'रिकॉर्डिंग' न सुनाई दे, बल्कि कार्रवाई दिखे। जब अगली बार कोई छात्र सोशल मीडिया पर प्रताड़ित हो, तो पुलिस का हाथ उसके डर से पहले पहुँचे। जब कोई महिला अपनी निजता के उल्लंघन की रिपोर्ट करे, तो सिस्टम की संवेदनशीलता उसकी आवाज़ में शामिल हो। तभी यह औचक निरीक्षण, केवल एक 'खबर' नहीं, बल्कि 'क्रांति' बन सकेगा।